तमन्नाओं में उलझाया गया हूं...जानिए मशहूर शायर शाद अजीमाबादी को
मशहूर शायर शाद अजीमाबाद की कल पुण्यतिथि मनाई जाएगी। एेसा शायर जो जिंदगी को सरलता से पेश करता था। उसकी शायरी आम लोगों से जुड़ी होती थी। जानिए मशहूर शायर शाद अजीमाबादी को...
पटना [अहमद रजा हाशमी]। तमन्नाओं में उलझाया गया हूं, खिलौने दे के बहलाया गया हू' हूं इस कूचे के हर ज़र्रे से आगाह' इधर से मुद्दतों आया गया हूं... इस शेर के अल्फाज हैं ज़िंदगी में सहजता को तलाशने वाले शायर 'शाद' अज़ीमाबादी के। वे परेशनियों और तकलीफ़ों पर रोने और ग़मज़दा रहने के बजाए उनमें सहजता ढूंढ लेते थे।
तमन्नाओं में उलझाया गया हूँ
खिलौने दे के बहलाया गया हूँ
हूँ इस कूचे के हर ज़र्रे से आगाह
इधर से मुद्दतों आया गया हूँ
नहीं उठते क़दम क्यूँ जानिब-ए-दैर
किसी मस्जिद में बहकाया गया हूँ
दिल-ए-मुज़्तर से पूछ ऐ रौनक़-ए-बज़्म
मैं ख़ुद आया नहीं लाया गया हूँ
सवेरा है बहुत ऐ शोर-ए-महशर
अभी बेकार उठवाया गया हूँ
सताया आ के पहरों आरज़ू ने
जो दम भर आप में पाया गया हूँ
न था मैं मो'तक़िद एजाज़-ए-मय का
बड़ी मुश्किल से मनवाया गया हूँ
लहद में क्यूँ न जाऊँ मुँह छुपा कर
भरी महफ़िल से उठवाया गया हूँ
कुजा मैं और कुजा ऐ 'शाद' दुनिया
कहाँ से किस जगह लाया गया हूँ
पटना सिटी में जन्मे और यहीं के लंगर गली में बनी मजार
पटना सिटी के हाजीगंज स्थित लंगर गली में जन्मे इस महान शायर की मजार यहीं है। यहां हर वर्ष सात जनवरी को पुण्यतिथि एवं आठ जनवरी को जयंति पर साहित्यकारों एवं उर्दू और शाद से मोहब्बत करने वालों का जमघट लगता है।
इस बार भी लगेगा जमघट, लेकिन सबके लबों पर एक बार फिर शाद और उनकी स्मृतियों की उपेक्षा का शिकवा होगा। 1846 में पैदा हुए 'शाद' अज़ीमाबाद (पटना सिटी) के रहने वाले थे। उनका मूल नाम सैयद अली मुहम्मद था। वह एक बुलंद मर्तबे के शायर थे।
अब भी इक उम्र पे जीने का न अंदाज़ आया
ज़िंदगी छोड़ दे पीछा मिरा मैं बाज़ आया
मुज़्दा ऐ रूह तुझे इश्क़ सा दम-साज़ आया
नकबत-ए-फ़क़्र गई शाह-ए-सर-अफ़राज़ आया
पास अपने जो नया कोई फ़ुसूँ-साज़ आया
हो रहे उस के हमें याद तिरा नाज़ आया
पीते पीते तिरी इक उम्र कटी उस पर भी
पीने वाले तुझे पीने का न अंदाज़ आया
दिल हो या रूह ओ जिगर कान खड़े सब के हुए
इश्क़ आया कि कोई मुफ़सिदा-पर्दाज़ आया
ले रहा है दर-ए-मय-ख़ाना पे सुन-गुन वाइ'ज़
रिंदो हुश्यार कि इक मुफ़सिदा-पर्दाज़ आया
दिल-ए-मजबूर पे इस तरह से पहुँची वो निगाह
जैसे उस्फ़ूर पे पर तोल के शहबाज़ आया
क्यूँ है ख़ामोश दिला किस से ये सरगोशी है
मौत आई कि तिरे वास्ते हमराज़ आया
देख लो अश्क-ए-तवातुर को न पूछो मिरा हाल
चुप रहो चुप रहो इस बज़्म में ग़म्माज़ आया
इस ख़राबे में तो हम दोनों हैं यकसाँ साक़ी
हम को पीने तुझे देने का न अंदाज़ आया
नाला आता नहीं कन-रस है फ़क़त ऐ बुलबुल
मर्द-ए-सय्याह हूँ सुन कर तिरी आवाज़ आया
दिल जो घबराए क़फ़स में तो ज़रा पर खोलूँ
ज़ोर इतना भी न ऐ हसरत-ए-परवाज़ आया
देखिए नाला-ए-दिल जा के लगाए किस से
जिस का खटका था वही मुफ़सिदा-पर्दाज़ आया
मुद्दई बस्ता-ज़बाँ क्यूँ न हो सुन कर मिरे शेर
क्या चले सेहर की जब साहिब-ए-एजाज़ आया
रिंद फैलाए हैं चुल्लू को तकल्लुफ़ कैसा
साक़िया ढाल भी दे जाम ख़ुदा-साज़ आया
न गया पर न गया शम्अ का रोना किसी हाल
गो कि परवाना-ए-मरहूम सा दम-साज़ आया
एक चुपकी में गुलू तुम ने निकाले सब काम
ग़म्ज़ा आया न करिश्मा न तुम्हें नाज़ आया
ध्यान रह रह के उधर का मुझे दिलवाता है
दम न आया मिरे तन में कोई दम-साज़ आया
किस तरह मौत को समझूँ न हयात-ए-अबदी
आप आए कि कोई साहिब-ए-एजाज़ आया
बे-'अनीस' अब चमन-ए-नज़्म है वीराँ ऐ 'शाद'
हाए ऐसा न कोई ज़मज़मा-पर्दाज़ आया
मशहूर शायर की रविवार को मनाई जाएगी पुण्यतिथि
ऐसी शायरी से दीवान भरा है। मोहब्बत, देशभक्ति, मिट्टी से प्रेम, भाईचारा, इंसानियत की बातें हर एक शेर से सरेआम करने वाले उर्दू साहित्य के अन्तरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त शायर सैयद अली मोहम्मद शाद अजीमाबादी की 90 वीं पुण्यतिथि पटना में रविवार को मनाई जाएगी।
ग़म-ए-फ़िराक़ मय ओ जाम का ख़याल आया
सफ़ेद बाल लिए सर पे इक वबाल आया
मिलेगा ग़ैर भी उन के गले ब-शौक़ ऐ दिल
हलाल करने मुझे ईद का हिलाल आया
अगर है दीदा-ए-रौशन तो आफ़्ताब को देख
उधर उरूज हुआ और इधर ज़वाल आया
लुटाए देते हैं इन मोतियों को दीदा-ए-शौक़
भर आए अश्क कि मुफ़लिस के हाथ माल आया
लगी नसीम-ए-बहारी जो मअरिफ़त गाने
गुलों पे कुछ नहीं मौक़ूफ़ सब को हाल आया
पयाम-बर को अबस दे के ख़त उधर भेजा
ग़रीब और वहाँ से शिकस्ता-हाल आया
ख़ुदा ख़ुदा करो ऐ 'शाद' इस पे नख़वत क्या
जो शाइरी तुम्हें आई तो क्या कमाल आया
एकेडमी और स्मारक की मांग अधूरी
नवशक्ति निकेतन के बैनर तले जमा होने वाले साहित्यकार, समाजसेवी, राजनीतिज्ञ, शिक्षाविद और उर्दू से मोहब्बत करने वाले शाद को हर साल याद करते हैं। आठ जनवरी 1846 को जन्मे और सात जनवरी 1927 को दुनिया छोड़ गए शाद की याद में उनके जन्म स्थल पर शाद एकेडमी तथा शाद स्मारक स्थापित करने की मांग आज तक अधूरी है।
पटना सिटी में जन्मे शाद की रचनाओं को एकत्रित कर शाद समग्र के रूप में प्रकाशित करने की भी मांग साहित्यकार मुद्दतों से करते आ रहे हैं। इनके दुर्लभ ग्रंथों का दोबारा प्रकाशन एवं ङ्क्षहदी समेत भारतीय भाषाओं में अनुवादित कर प्रकाशित कराने की भी मांग भी हुई।
शाद अजीमाबाद की स्मृतियों की उपेक्षा का दर्द चाहने वालों की सुकून में खलल डाल रहा है। शाद के नाम से गली का नामांकरण करने, इनके नाम के पार्क से अवैध कब्जा हटा कर उसे बनवाने, राज्य सरकार द्वारा इनके नाम से पांच लाख की राशि का पुरस्कार घोषित करने, सरकारी आयोजन करने, उनके नाम का डाक टिकट जारी करने तथा उर्दू अकादमी द्वारा शाद समग्र प्रकाशित करने की मांग आज तक गुजारिश की राह पर ही खड़ी है।