Bihar Politics: बिहार के 16 फीसदी दलित वोट पर कांग्रेस की नजर, 'रूठों' को मनाने के लिए अपनाई ये खास रणनीति
Bihar Congress बिहार में कांग्रेस को दलितों की उपेक्षा करने की आलोचना का सामना करना पड़ा। हाल ही में जिलाध्यक्षों की नियुक्ति के बाद कांग्रेस पर फिर से आरोप लगे। इसके बाद पार्टी ने दलित वोटों को साधने के लिए रणनीति बदल ली है।
सुनील राज, पटना। लोकसभा चुनाव का बिगुल बजने का वक्त जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, तमाम राजनीतिक दल अतीत में की गई गलतियों से सबक लेते हुए वोटरों को साधने में जुट गए हैं। बिहार कांग्रेस भी अपनी रणनीति बदल रही है।
पहले अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्यों के नामों की सिफारिश, इसके बाद जिलाध्यक्षों को चुनने के दौरान कथित तौर पर दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों की उपेक्षा करने को लेकर कांग्रेस को आलोचना का सामना करना पड़ा। अब पार्टी खुद की छवि बदलने में जुटी है।
असल में कांग्रेस का हमेशा से दावा रहा है कि दलित-मुस्लिम वोटर उसके पारंपरिक वोटर रहे हैं। हालांकि, क्षेत्रीय पार्टियों के उदय के साथ कांग्रेस का यह कोर वोटर उससे अलग होता गया। कई मौकों पर कांग्रेस पर भी दलितों और अल्पसंख्यकों की अनदेखी के आरोप लगते रहे हैं।
जिलाध्यक्षों की नियुक्ति को लेकर उठे सवाल
ताजा उदाहरण जिलों में नियुक्त किए गए जिलाध्यक्षों का है। जिन 39 नेताओं को यह पद सौंपा गया, उनमें अकेले भूमिहार जाति से आने वाले 11 नेता हैं। इनके अलावा आठ ब्राह्मण, छह राजपूत, एक कायस्थ, पांच अल्पसंख्यक समुदाय के, चार यादव तीन अनुसूचित जाति और एक अन्य पिछड़ी जाति को यह इस पद की जिम्मेदारी सौंपी गई।
जाहिर है पार्टी के इस फैसले को लेकर आवाज उठनी थी और उठी भी। दबी जुबान से पार्टी के अंदर और यहां तक की पार्टी के बाहर भी इस निर्णय को लेकर काफी सवाल उठाए गए।
इसके तत्काल बाद कांग्रेस ने आनन-फानन में अपनी रणनीति बदल कांग्रेस ने दलित सम्मेलन आयोजित किया। इससे यह संकेत देने की कोशिश हुई कि किस तरह से सबसे पुरानी पार्टी मुश्किल समय में दलित तबके के साथ खड़ी थी।
राज्य कांग्रेस रिसर्च समिति के प्रमुख आनंद माधव कहते हैं कि कांग्रेस देश में एकमात्र ऐसी पार्टी है, जो दलित-अल्पसंख्यकों की हितैषी है। इस समुदाय से आने वाले जो कल हमसे बिछड़ गए थे, अब हम वापस उन्हें अपने करीब लाने की कोशिश कर रहे हैं।
प्रदेश की 16 प्रतिशत आबादी दलित
कांग्रेस के अंदरखाने के सूत्रों की माने तो बिहार की राजनीति में दलितों को लुभाने की अपनी वजहें हैं। प्रदेश की आबादी में दलितों की आबादी करीब 16 प्रतिशत है। इस वोट की अपनी ही अहमियत है। चुनाव में सभी पार्टियों को दलितों के इस वोट की जरूरत होगी।
दलित मतदाता निभा सकते हैं निर्णायक भूमिका
सभी 243 विधानसभा क्षेत्र करीब-करीब 40 से 50 हजार दलित मतदाता हैं। जो किसी की भी जीत में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं। कांग्रेस भी इस बात को भलीभांति समझती है। लिहाजा, पार्टी ने अनी पुरानी रणनीति में बदलाव करते हुए सवर्ण की बजाय अब वापस अपना ध्यान दलितों पर केंद्रित किया है।
बता दें कि अगर दलित समाज कांग्रेस के साथ खड़ा होता और वोटों का ध्रुवीकरण नहीं होता है, 2024 में कांग्रेस के लिए बिहार में जीत की राह काफी आसान और सुगम हो जाएगी।