आपके पैसों का कैसे होता है फर्जीवाड़े से ट्रांजेक्शन? जानिए
आपको ये जानना चाहिए कि कहीं आपके एकाउंंट से कोई फर्जीवाड़ा तो नहीं हो रहा? हो सकता है आपके बैंक एकाउंट से कोई लेन-देन हो रहा और अापको इसकी खबर भी नहीं।
पटना [वेब डेस्क]। बैकों से ही मनी ट्रांजक्शन के फर्जीवाड़े की वारदात को अंजाम दिया जाता है। इसकी जानकारी के लिए बिहार और झारखंड में कुछ एेसे मामले सामने आए हैं जिनमें पता चला है कि बैंककर्मियों की मिलीभगत से ही फर्जीवाड़े को अंजाम दिया जाता है। आयकर विभाग की छापेमारी में यह बात खुलकर सामने आई है।
नवादा में फर्नीचर के एक बड़े व्यवसायी के यहां छापेमारी हुई, तो इनके एकाउंट में दो दिनों में 19 करोड़ से ज्यादा का ट्रांजेक्शन हुआ था और व्यापारी को इसकी जानकारी भी नहीं थी। जांच में पता चला कि बैंक मैनेजर ने बिना इनकी जानकारी के सेविंग एकाउंट में 19 करोड़ रुपये डाले और दो दिन बाद निकाल लिए।
दरअसल 31 मार्च को टारगेट पूरा करने के चक्कर में मैनेजर ने यह रिस्क लिया, लेकिन टारगेट तो पूरा हो गया, लेकिन इसी दौरान व्यवसायी के यहां आयकर की छापेमारी हो गयी, जिसमें पूरे मामले का खुलासा हो गया।
वैसे ही पटना में कुछ समय पहले आयकर विभाग ने इसी तरह के अपराधी और व्यवसायी के बैंक एकाउंट में चार-पांच कंपनी से पैसे का ट्रांजेक्शन पकड़ा था, जो करीब 10 करोड़ का था। ये रुपये कर्ज के रूप में दिखाये गये थे।
परंतु हकीकत में यह बात सामने आयी कि जिन कंपनियों से ये पैसे आये थे, सभी कंपनी फर्जी हैं और इनके एकाउंट भी फर्जी हैं। फर्जी एकाउंट का ऑपरेशन बैंक वालों की मदद से नहीं हो सकता है, इस अपराधी का ही ब्लैक मनी अलग-अलग माध्यम से अनेकों बार करके जमा किया गया था।
पटना में ही एक व्यापारी के यहां आयकर और इडी की संयुक्त छापेमारी हुई थी। इस दौरान करीब पांच बैंक एकाउंट्स में 15 करोड़ से ज्यादा ब्लैक मनी के ट्रांजेक्शन की बात सामने आयी थी। जांच में पता चला कि बैंक वालों की जानकारी में पूरा लेन-देन होता था।
चूंकि उस व्यापारी का काफी बड़ा रकम बैंक में हमेशा रहता था, तो बिजनेस और टारगेट के चक्कर में बैंक वाले इसमें मदद ही करते थे. रुपये को अलग-अलग प्राइवेट कंपनियों के एकाउंट से रूट करके इनके एकाउंट में पहुंचाया जाता था। सभी फर्जी कंपनियों के एकाउंट इसी बैंक में थे और समय-समय पर इससे पैसे निकाल कर उसमें किया जाता था।
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इस तरह देते हैं फर्जीवाड़े को अंजाम
कोई एक बड़ा व्यापारी जिसे अपनी ब्लैक मनी व्हाइट करनी होती है। वह पहले अलग-अलग लोगों के नाम से कई प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बनाता है। इसके बाद इन कंपनियों का फरजी एकाउंट एक ही बैंक में या अलग-अलग बैंकों में खोला जाता है। फिर एक बैंक खातों से दूसरे, फिर तीसरे से चौथे और इसी तरह आगे के बैंक खातों में होते हुए यह पैसा अंत में मूल एकाउंट में आता है।
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वास्तव में सभी फर्जी प्राइवेट लिमिटेड कंपनी में एक ही व्यक्ति का पैसा लगा होता है. इस काम में बैंक वाले पूरी तरह से मदद करते हैं. इसके अलावा एक अन्य तरीके से में किसी दूसरे पैन या फर्जी प्रूफ के आधार पर बैंक एकाउंट खोल देते हैं। इस फर्जी एकाउंट में पहले पैसे को डाला जाता है, फिर इससे मूल व्यक्ति के एकाउंट में ट्रांसफर कर दिया जाता है। इस तरह के कई फर्जी एकाउंट से रुपये का ट्रांसफर होता है। इस काम में बैंक वालों की मिली भगत होती है।