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    Nirmala Devi: सुजनी कला को विदेशों तक दिलाई पहचान, 76 साल की निर्मला देवी को मिलेगा पद्मश्री

    Updated: Sun, 26 Jan 2025 12:08 PM (IST)

    पद्म श्री से सम्मानित गायघाट भूसरा निवासी निर्मला देवी सुजनी कला को मुकाम देने के लिए अथक प्रयास किया। निर्मली देवी ने कहा कि उन्होंने यह काम अपनी मां जानकी देवी से सीखा। भूसरा महिला विकास समिति बनाकर इस काम को कर रही हैं।आज इस कला को वह गांव से निकालकर विदेश तक पहुंचा रही हैं। कई विद्यार्थी अब सुजनी कला को सीखने गांव पहुंच रहे हैं।

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    निर्मला देवी को मिलेगा पद्मश्री पुरस्कार। ( फोटो जागरण)

    जागरण संवाददता, मुजफ्फरपुर। केंद्र सरकार ने गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर शनिवार को पद्म पुरस्कार 2025 के विजेताओं की घोषणा की।

    इसमें पद्मश्री के लिए सुजनी कला को मुकाम देने वाली गायघाट भूसरा निवासी निर्मला देवी (76) को चुना गया। शनिवार सुबह ही उन्हें दिल्ली से कॉल आई।

    इसके बाद जिलाधिकारी के यहां से भी काल आई। निर्मली देवी ने कहा कि जब जिला प्रशासन से उनको जानकारी मिली, उसके बाद से लगातार कॉल आने लगी। निर्मला देवी ने कहा कि सपना पूरा हुआ। यह हमारी पुरानी कला का सम्मान है।

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    निर्मला ने कहा, सुजनी कला पहले गांव में लोग शौकिया बनाते थे। एक लकड़ी या स्टील के फ्रेम में एक कपड़े पर सुई व धागा से डिजाइन तैयार की जाती थी।

    उससे पर्दा, टेबल क्लाथ, बेड सीट आदि बनती थी। 1988 में उनके गांव में अदिति नामक एक गैर-लाभकारी संस्था से बीजी श्रीनिवासन आईं। वह इस गांव में गरीबी को देखकर वहां पर महिलाओं से बात की।

    बीजी श्रीनिवासन को सुजनी कला के बारे में जानकारी मिली। उन्होंने कहा कि इस कला को व्यावसायिक रूप दिया जाएगा। सुजनी कढ़ाई का पुनरुद्धार शुरू किया। गैर-लाभकारी संस्था ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बनाने और उन्हें आजीविका का एक स्रोत देने का संकल्प दिलाया।

    निर्मला ने कहा कि उसके बाद वह उनसे जुड़ गईं। निर्मला ने कहा पहले वह जुड़ीं, उसके बाद तीन महिलाओं की टीम बनी। बीजी दीदी ने कपड़ा और धागा लाकर दिया। एक बेडसीट तीन लोग मिलकर बनाते थे।

    उस समय मात्र 75 रुपये मिलते थे। उनकी मदद से देश के अलग-अलग प्रदर्शनी में सुजनी कला से बनी बेडशीट और अन्य सामान बिकने लगे। एक साल में 700 महिलाएं जुड़ गईं। धीरे-धीरे इसका नेटवर्क बढ़ा। अभी उनके साथ 200 महिलाएं जुड़कर इस काम को कर रही हैं।

    मां से सीखी थी सुजनी कला, पहले चरखा से कातती थीं सूत

    निर्मली देवी ने कहा कि वह मां जानकी देवी से इस काम को सीखा। वह भी शौकिया काम करती थीं। वहीं इस काम को वह 1989 से काम कर रही हैं।

    अपनी बेटी के साथ निर्मला देवी।

    वह जब पढ़ाई कर रही थीं, तभी इस काम से जुड़ीं और उसके बाद महिलाओं को ट्रेनिंग भी दी। बाद में वह भूसरा महिला विकास समिति बनाकर इस काम को कर रही हैं। बताया कि उनकी एक बेटी विभा कुमारी है। वह दरभंगा में रहती है।

    दो बार गईं विदेश

    निर्मला देवी ने बताया कि वह 1991 व 2003 में विदेश गईं। पहली बार लंदन और उसके बाद अमेरिका में जाकर सुजनी कला का डेमो दिया। उन्होंने बताया कि अभी उनकी टीम बेडशीट, कुशन कवर, साड़ी, दुपट्टा बनाती हैं।

    उनके तैयार उत्पाद जयपुर, अहमदाबाद, रायपुर, दिल्ली जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि हर साल 10 से 12 लाख के कपड़े तैयार हो रहे हैं। उसमें से उनको 20 प्रतिशत की आमदनी होती।

    इस काम में उनको सबका सहयोग मिल रहा है। पद्मश्री सम्मान के लिए अप्रैल व मई में बुलाने की बात जिला प्रशासन के अधिकारियों ने बताई है।

    सुजनी कला के विकास की कहानी

    कोई विशेष तकनीक नहीं। सुई-धागा की मदद से कपड़े पर अलग-अलग डिजाइन की कढ़ाई और नया लुक सामने। इसके लिए कोई प्रशिक्षण ना तकनीक।

    मां और दादी को देखकर यह सुजनी कला पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ी, मगर मशीन ने इसे एक तरह से समाप्त कर दिया। अब कई पुरानी चीजों को नई तकनीक के साथ बाजार में उतारा जा रहा है तो एक संभावना जगी है।

    गायघाट की निर्मला देवी का प्रयास भी पिछले कुछ वर्षों से गति दे रहा है। अब निर्मला देवी को इस कला के लिए भारत सरकार ने पद्मश्री सम्मान से सम्मानित करने का फैसला किया है।

    सुजनी कला को पहला पद्म सम्मान मिलने के बाद अब इसके विकास की नई कहानी लिखी जाएगी। कला घर से बाहर निकलेगी। बेहतर प्रशिक्षण के साथ समूह में यह कार्य शुरू हो चुका है।

    अब नई पीढ़ी का इसके प्रति बढ़ेगा आकर्षण

    राष्ट्रीय फलक पर एक नाम सामने आने से नई पीढ़ी का इसके प्रति आकर्षण बढ़ेगा। इस कला के समाप्त होने के पीछे इसके प्रति आकर्षण कम होना भी रहा।

    इसके अलावा प्रशिक्षण या कोई तकनीक विकसित नहीं हुई। मुजफ्फरपुर को सुजनी का जीआई टैग मिलने के बाद इसके विकास के लिए काम शुरू हुए हैं। समूह बनाए गए हैं। देश से लेकर विदेश तक इस कला को पहुंचाया गया है।

    संसाधन के साथ उत्पाद को बाजार उपलब्ध कराया गया है। साड़ी के साथ अन्य ड्रेस में सुजनी कला की कढ़ाई हो रही है। इसकी कीमत भी मिल रही है।

    मधुबनी पेंटिंग की तरह आकर्षण हो तो महिलाओं की आर्थिक स्थिति को यह कला बेहतर अवसर देगी। नेशनल इंस्टीट्यूट आफ फैशल टेक्नाेलाजी (निफ्ट) की ओर से पहल की गई है। पटना के निफ्ट सेंटर के विद्यार्थी सुजनी कला सीखने के लिए गांव पहुंच रहे हैं।

    मुजफ्फरपुर से जुड़ीं तीन विभूतियों को पद्म सम्मान

    इस वर्ष पद्म सम्मान के लिए बिहार के सात विभूतियों का चयन किया गया है। इन सात विभूतियों में तीन का मुजफ्फरपुर से जुड़ाव रहा है।

    पद्म विभूषण से सम्मानित दिवंगत लोकगायिका शारदा सिन्हा की ननिहाल मुजफ्फरपुर के मड़वन में है। उनका बचपन यहीं बीता। नाना जगदीश चंद्र शास्त्री विद्या विहार स्कूल के प्रधानाध्यापक थे।

    जगदीश चंद्र शास्त्री अनुशासन के लिए प्रसिद्ध थे। इसी स्कूल में उनकी पुत्री भी शिक्षक थीं। देर से आने पर पुत्री को हाजिरी बनाने से रोक दिया था। नाना के पास बचपन में रहीं शारदा सिन्हा पर उनका प्रभाव रहा।

    दूसरी विभूति आचार्य किशोर कुणाल का जन्म मुजफ्फरपुर जिले के बरूराज कोठियां गांव में हुआ था। महावीर मंदिर न्यास के सचिव रहे कुणाल रामचंद्र प्रसाद शाही के पुत्र थे।

    गांव के स्कूल से लेकर शहर के एलएस कॉलेज में पढ़ाई की। वर्ष 1972 में गुजरात कैडर में भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के अधिकारी बने। पटना सचिवालय कर्मी बाबी हत्याकांड से वह अधिक लोकप्रिय हुए।

    तीसरी विभूति सुजनी कला को सम्मान दिलाने वाली निर्मला देवी हैं। गायघाट के भुसरा की निर्मला देवी ने मां से सुजनी कला सीखी। आज इस कला को वह गांव से निकालकर विदेश तक पहुंचा रही हैं।

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