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यदि वीटीआर में होती इलाज की व्यवस्था तो बच जाती बाघिन की जान

जानवरों को पकडऩे से लेकर उपचार तक की व्यवस्था के लिए रेस्क्यू सेंटर नहीं। एक वर्ष पहले तैनात दो पशु चिकित्सक सिर्फ प्राथमिक उपचार व पोस्टमार्टम कर पाते। पटना जाने में लगे करीब पांच घंटे उसके जीवन पर भारी पड़ गए। वहां इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई।

By Ajit kumarEdited By: Published: Sat, 20 Feb 2021 10:33 AM (IST)Updated: Sat, 20 Feb 2021 01:52 PM (IST)
यदि वीटीआर में होती इलाज की व्यवस्था तो बच जाती बाघिन की जान
वीटीआर क्षेत्र में फिलहाल बाघों व शावकों की संख्या 50 के आसपास है।

पश्चिम चंपारण, जासं। वाल्मीकि टाइगर रिजर्व ( वीटीआर) में अगर जानवरों के इलाज की मुकम्मल व्यवस्था होती तो जख्मी बाघिन (टी-3) को बचाया जा सकता था। हालांकि, पकडऩे के साथ ही उसकी स्थिति देख संजय गांधी जैविक उद्यान, पटना भेजने की पहल की गई थी। लेकिन, पटना जाने में लगे करीब पांच घंटे उसके जीवन पर भारी पड़ गए। वहां इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई। 

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वीटीआर क्षेत्र में फिलहाल बाघों व शावकों की संख्या 50 के आसपास है। इनके अतिरिक्त तेंदुआ व भालू समेत अन्य कई जानवर हैं। बाघों की सुरक्षा के लिए 80 ट्रैकरों की तैनाती तो है, लेकिन सेहत की देखभाल के लिए व्यवस्था नहीं है। एक वर्ष पहले दो पशु चिकित्सकों की पदस्थापना हुई थी, लेकिन वे प्राथमिक उपचार व मृत जानवरों का पोस्टमार्टम ही कर पाते हैं। यहां विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमी खटकती है। इनके अलावा दो सहायकों और एक अनुसेवी का पद खाली होने से भी व्यवस्था प्रभावित होती है।

शेड में होता है जख्मी जानवरों का उपचार

किसी भी आरक्षित वन में रेस्क्यू सेंटर होता है, वहीं जानवरों को पकडऩे से लेकर उपचार तक की आधुनिक व्यवस्था होती है। वीटीआर में यह व्यवस्था नहीं है। इसका खामियाजा जख्मी व उम्रदराज जानवरों को भुगतना पड़ता है। फिलहाल, यहां प्राथमिक उपचार की ही व्यवस्था है। अगर, किसी जानवर को पकड़कर लाया जाता है तो वैन में लगे ङ्क्षपजरे या वन क्षेत्र के शेड में ही प्राथमिक उपचार किया जाता है। क्षेत्र निदेशक हेमकांत राय रेस्क्यू सेंटर को अनिवार्य मानते हुए उसके लिए प्रस्ताव भेजने की बात बताते हैं।  

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