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    Chhath Puja 2021: भगवान सूर्य को अर्घ्‍य देने के साथ छठ महापर्व संपन्‍न

    By Ajit KumarEdited By:
    Updated: Thu, 11 Nov 2021 06:48 AM (IST)

    सूर्य उदय के साथ ही भगवान को अर्घ्य अर्पित क‍िया गया। इस तरह से चार द‍िवसीय छठ महापर्व गुरुवार को संपन्‍न हो गया। आस्‍था और उत्‍साह का अद़भुत संयोग आज छठ घाटों पर देखने को म‍िला। लोग बहुत पहले यहां पहुंच गए थे।

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    छठ घाट पर पहुंच रहे लोगों में गजब का उत्साह देखा जा रहा है। फोटो- जागरण

    मुजफ्फरपुर, आनलाइन डेस्क। लोक आस्था का महापर्व छठ भगवान सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही संपन्न हो गया। आज चौथा और अंतिम दिन था। आज सुबह करीब 06 बजकर 41 मिनट पर सूर्योदय होने के साथ ही अर्घ्यदान का क्रम आरंभ हो गया था। इसके बाद व्रती व उनके स्वजनों ने भगवान भास्कर को अर्घ्य देकर खुद के लिए और समाज व देश के हित की कामना की। इससे पहले गुरुवार की अलसुबह से ही श्रद्धालु पास के छठ घाटों पर पहुंचने लगे थे। इन घाटों पर रोशनी की बेहतर व्यवस्था होने से यहां का दृश्य मनोहारी था।

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    गायत्री मंत्र का उच्चारण करते अर्घ्यदान उत्‍तम

    छठ में प्रात:कालीन अर्घ्य का विशेष महत्व है। यह प्रत्यक्ष देवों में एक भगवान भास्कर को अर्पित किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि पूरी आस्था के साथ अर्घ्य अर्पित करने वालों पर भगवान सूर्य की विशेष कृपा होती है। वे उसे अपने जैसा तेज प्रदान करते हैं। रोगों को हर लेते हैं। परिवार में सुख व शांति प्रदान करते हैं। फलित दर्शन ज्योतिष अनुसंधान केंद्र के पंडित प्रभात मिश्र का कहना है कि भगवान सूर्य को अर्घ्य देने से अनेक लाभ हैं। यह ऊर्जा प्रदायक है। रोगनाशक है। कोरोना के इस विषम काल में भगवान की आराधना से इंसान व्याधियों से मुक्त हो सकेगा। इसलिए परंपरा है कि व्रती सूर्योदय के बाद अपने साथ ही साथ स्वजनों से भी अर्घ्यदान कराती हैं। तांबे के पात्र में जल, एक चुटकी रोली, चंदन, हल्दी, अक्षत व लाल पुष्प डालकर गायत्री मंत्र का उच्चारण करते हुए सूर्य देव को अर्घ्य देने से सरकारी पद, स्वास्थ्य, धन व सामाजिक प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है। उनका कहना है कि अर्घ्य में प्रयुक्त होने वाले सारी सामग्री औषधीय गुणों से परिपूर्ण होती है।

    दीयमान भगवान भास्कर को अर्घ्य देने के साथ लोक आस्था का चार दिवसीय महापर्व छठ गुरुवार को संपन्न हो गया। भक्ति भाव माहौल में विधि-विधान से सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रती अपने-अपने घरों की ओर लौट गए। विभिन्न घाटों पर व्रती कोई पैदल चलकर तो कोई अपनी सवारियों से आए तो कोई पैदल चलकर दूर के इलाकों से ठेला टेंपों से पहुंचे थे। इधर गंडक किनारे के घाटों पर, पड़ाव पोखर घाट, साहु पोखर घाट सहित जिले के विभन्न घाटों पर कुछ श्रद्धालु कोसिया भरने को लेकर पूरी रात मौजूद रहे। इस दौरान गाना-बजाना का भी दौड़ चला। कुछ पूजा समितियों के तरफ से सजाए गए थे कुछ लोगों ने अपने घाटों को अपने तरीके से सजाए थे। जिन लोगों के घर से तलाब और नदी की दूरी अधिक थी वे लोग अपने घर-आंगन या फिर छत पर घटों का निर्माण कर सजाए और भगवान भास्कर को अर्ध्य दिए।

    8 नवंबर से शुरू हुआ था चार दिवसीय अनुष्ठान

    लोक आस्था के महापर्व छठ का शुभारंभ 8 नवंबर यानी सोमवार से नहाय खाय के साथ शुरू हुआ था। इसके अगले दिन 9 नवंबर को खरना का व्रत था। खरना की पूजा के बाद 36 घंटे का कठिन निर्जला व्रत शुरू हुआ। 10 नवंबर की शाम छठ घाटों पर व्रतियों ने अस्तचलगामी भास्कर को अर्घ्य दिया। गुरुवार की सुबह उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही छठ महापर्व संपन्न हो गया।

    बुधवार को घाटों पर आने लगे व्रतियों का कारवां

    तड़के तीन बजे से ही व्रतियों के कारवां ने घाटों पर पहुंच सूर्य देवता और छठी माई की उपासना शुरू कर दी थी। इसके बाद सूर्योदय होते ही अर्घ्य देने का सिलसिला शुरू हो गया। जिले का तापमान भी नीचे गिरा हुआ था। हल्की ठंड के बावजूद भी देर रात तक श्रद्धालु घाटों से नहीं डिगे। गुरुवार को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने के समय जितनी भीड़ घाटों पर उमड़ी थी, उतने ही श्रद्धालु उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने को भी आतुर दिखे। अपना और परिवार के अन्य सदस्यों का सूप चढ़ाने के बाद सुहागिनों ने एक दूसरे की मांग भरी और उनके खोइंचा में ठेकुआ, खजूर व फल का प्रसाद डाला। इस अवसर पर पटाखे भी खूब फूटे। घाटों पर माइक से व्रतियों और श्रद्धालुओं को शारीरिक दूरी बनाए रखने की हिदायत भी दी जा रही थी।