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उपज बढ़ी पर देसी धान विलुप्त होने के कगार पर

खगड़िया सरकारी प्रोत्साहन के बाद धान की उपज में वृद्धि तो हुई है लेकिन उपज बढ़ाने के च

By JagranEdited By: Published: Tue, 20 Jul 2021 11:10 PM (IST)Updated: Tue, 20 Jul 2021 11:13 PM (IST)
उपज बढ़ी पर देसी धान विलुप्त होने के कगार पर

खगड़िया : सरकारी प्रोत्साहन के बाद धान की उपज में वृद्धि तो हुई है, लेकिन उपज बढ़ाने के चक्कर में संकर किस्म के बीजों के प्रयोग से देसी किस्मों के धान विलुप्त होने के कगार पर हैं। खरीफ में भी 20 हजार हेक्टेयर में धान की खेती का लक्ष्य है। अधिकांश जगहों पर उत्पादकता को लेकर संकर किस्म के बीज का इस्तेमाल किया जा रहा है। पहले क्षेत्र में खुशबूदार धान की किस्मों की खेती जमकर होती थी। 50 प्रकार से अधिक धान की किस्मों की खेती फरकिया में होती थी। पर अब ये किस्में यादों में ही है। कृषि विभाग के अधिकारियों के अनुसार देसी धान की किस्मों में समय अधिक लगने के साथ उत्पादकता कम है, जिसे लेकर किसान इससे किनारा कर रहे हैं। वैसे कुछ समृद्ध किसान अपने उपयोग के लिए देसी धान की खेती करते हैं। ये किस्में हुई विलुप्त

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धान की परंपरागत किस्मों में देसरिया, बरोगर, सीता, चाननचूड़, बकोल, रानी, चौतिस, परवापांख, जल्ली, आरआरएट, भदई, तुलसी मंजरी आदि विलुप्त हो चुके हैं। तुलसी मंजरी और चाननचूड़ अपनी सुंगध के लिए विख्यात था। अतिथियों को तुलसी मंजरी और चाननचूड़ का भात परोसा जाता था। किसान विकास ट्रस्ट के संगठक कृष्णमोहन सिंह 'मुन्ना' कहते हैं- देसरिया और बरोगर पानी के हिसाब से बढ़ती थी। खगड़िया बाढ़ प्रभावित क्षेत्र है इसलिए यहां इसकी खूब खेती होती थी। कहावत थी- अगर खेत में 10 हाथ पानी बढ़ता था, तो देसरिया और बरोगर 12 हाथ बढ़ जाती थी। लेकिन, अब यह सुनहरा अतीत मात्र है। कोट

परंपरागत धान की किस्मों को संरक्षित करने को लेकर फिलहाल कोई योजना नहीं है।

शैलेश कुमार, जिला कृषि पदाधिकारी, खगड़िया। कोट

पौधों की किस्मों का संरक्षण और किसान अधिकार अधिनियम के तहत ऐसे किसान या किसानों के समूह, जो फसल की किस्मों कई जर्मप्लाज्म (जनन द्रव्य) बनाए रखे हैं, उन्हें पुरस्कृत करने का प्रावधान है।

डा. अनिता, प्रधान, कृषि विज्ञान केंद्र, खगड़िया।


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