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Bihar Politics: सुबह क्या खाकर निकलते हैं जीतनराम मांझी? फिर दिन भर करते हैं ये काम; गली-मोहल्लों से पुरानी पहचान

Bihar News सुबह के नाश्ते में रोटी-सब्जी खाने के बाद जब चुनाव यात्रा शुरू होती है तो फिर कहीं चाय की एक-आध चुस्की और रास्ते में ही किसी के घर भोजन-पानी करते हुए शाम ढल जाती है। ये हैं पूर्व उप मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) के संस्थापक जो लोकसभा चुनाव में गया (अनुसूचित जाति सुरक्षित सीट) से प्रत्याशी हैं। उनका दल हम राजग का एक घटक है।

By pradeep kumar Edited By: Sanjeev Kumar Published: Wed, 10 Apr 2024 08:55 AM (IST)Updated: Wed, 10 Apr 2024 10:07 AM (IST)
जीतन राम मांझी की दिनचर्या (जागरण फोटो)

कमल नयन, गया। Bihar Politics News: सुबह के नाश्ते में रोटी-सब्जी खाने के बाद जब चुनाव यात्रा शुरू होती है तो फिर कहीं चाय की एक-आध चुस्की और रास्ते में ही किसी के घर भोजन-पानी करते हुए शाम ढल जाती है। ये हैं पूर्व उप मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी, हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) के संस्थापक, जो लोकसभा चुनाव में गया (अनुसूचित जाति सुरक्षित सीट) से प्रत्याशी हैं। उनका दल हम राजग का एक घटक है।

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चुनाव की गहमागहमी अब बढ़ चली है। दिन मंगलवार। सुबह के छह बज चुके हैं। बोधगया में सड़क पर चहल-पहल शुरू हो रही है। इक्का-दुक्का चालक अपने टोटो (ई-रिक्शा) को यूं ही घुमा रहे हैं। महाबोधि मंदिर के शिखर पर सूर्य अपनी लालिमा बिखेरने लगा है। बुद्ध भूमि पर मंदिरों में घंटे बज उठे हैं। इसी बोधगया के मुख्य पथ होते हुए कटोरवा मार्ग है।

कुछ दूर चलने के बाद दाहिनी ओर एक स्थान पर 'हम' के झंडे के साथ गई गाड़ियां खड़ी हैं। इससे आभास हो रहा कि जीतनराम मांझी का आवासन स्थल होगा, पर पता चलता है कि केवल वाहनों का पड़ाव स्थल है। कुछ दूर आगे बाईं ओर उनका फार्म हाउस है। प्रवेश द्वार अभी बंद था। बाहर कुछ लोग टहल रहे थे। वे लोग बताते हैं कि 'साहेब' से मिलने आए हैं। साहेब यानी जीतन राम मांझी।

उन्हें यहां हर लोग इसी उपनाम से जानते हैं। सात बजे के बाद फार्म हाउस के बगल का गेट खुलता है। दाहिनी ओर सुरक्षाकर्मियों का बैरक, सामने में जीतनराम का रेस्ट रूम और एक छोटा सभाकक्ष, जिसमें प्लास्टिक की कुर्सियां और तीन पंखे लगे हैं। सुबह की धूप कड़क हो गई है। लोगों का धीरे-धीरे आना शुरू हो गया है। दो लोग सबको बैठने की सलाह देते हैं।

8:45 बजे

सफेद धोती, कुर्ता और बंडी में जीतनराम मांझी का आगमन होता है। रोटी-सब्जी का नाश्ता कर बाहर निकले हैं। मिलने-जुलने के बाद सबसे गप-शप चलने लगता है। सिर्फ चुनावी गपशप ही नहीं, कुछ से हालचाल भी पूछते हैं। कुछ लोगों का परिचय जानना चाहते हैं। शेरघाटी से आए एक सज्जन ने तो यहां तक कह डाला कि आप बहुत लंबे मार्जिन से लीड कर रहे हैं।

चेहरे पर प्रसन्नता की एक झलक कुछ क्षण तक रही और फिर चाय बंटने लगी। चाय की चुस्की के साथ शेरघाटी से लेकर वजीरगंज तक और शहर का हालचाल लोग सुनाने लगते हैं। कुछ लोग तो मानो रटा-रटाया कुछ बोल देते हैं। सब लोग मूक श्रोता की तरह वैसे लोगों को सुन रहे हैं। यहां पर बात सिर्फ 'हम' की होती है।

9:45 बजे

जीतनराम अब कड़े सुरक्षा घेरे में क्षेत्र भ्रमण के लिए निकल रहे हैं। बुद्ध भूमि से होता हुआ काफिला निरंजना पुल से गुजरते हुए सुजाता स्तूप के पास पहुंचता है। इसके ठीक सामने समेकित बाल विकास परियोजना के बच्चे एक कक्ष में पढ़ रहे हैं। बाहर में तीन कुर्सियां और ठंडा पानी रखा है। वे बीच में बैठते हैं तो खड़े ग्रामीण कहने लगते हैं, आप यहां आ गए, यही बहुत है। सुजाता गढ़ बकरौर गांव का एक दर्शनीय स्थल है। यह वही गांव है, जहां राजकुमार सिद्धार्थ (जो गौतम बुद्ध हुए)को खीर खिलाने वाली सुजाता रहती थी।

फिर यह काफिला गांव के अंदर प्रवेश करता है। तंग गली से गुजरता हुआ पूरा गांव भ्रमण कर लिया जाता है। स्थानीय भाजपा नेता भोला मिश्र सहित कई लोग साथ-साथ दिखते हैं। सिलौंजा पुल पार कर सब बतसपुर पहुंचते हैं। गांव के उप मुखिया मनोरंजन प्रसाद समदर्शी के घर मातृ सदन में कुछ देर के लिए अंदर बैठते हैं।

उप मुखिया ग्रामीणों से उन्हें मिलाने का प्रयास करते हैं। जीतनराम उस घर की एक खिड़की पर चुनाव में खड़े एक उम्मीदवार का छोटा सा पोस्टर देखकर थोड़ा सा चौंकते जरूर हैं और अपने पीए को याद करने लगते हैं। यहां की महिलाएं माथे पर आंचल रखकर आती हैं। कई महिलाएं पैर छूकर उनका आशीष भी लेती हैं। यहां लोगों से मिलने-जुलने के बाद अब आगे बढ़ते हैं।

11 बजे

बोधगया की सीमा को लांघकर अब कारवां मोहनपुर के गुरियावां में प्रवेश कर गया है। लगभग दो दर्जन वातानुकूलित वाहन से लोग चुनावी संपर्क में लगे थे। गुरियावां के मुखिया सिद्धार्थ भारद्वाज के घर संपर्क के दौरान सभी ने कोल्ड ड्रिंक का आनंद लिया तो थोड़े से आगे बढ़कर एक पेड़ के नीचे हम के एक कार्यकर्ता ने नाश्ता कराया। फिर जयप्रकाशनगर के पास लोगों से मिले और उन्हें कहा कि सभी लोग 19 अप्रैल को जलपान के पहले मतदान का कर्तव्य पूरा करें।

12 बजे

टेशवार स्कूल के सामने एक छोटे से पंडाल में पहुंचने पर अंगवस्त्र से स्वागत किया जाता है। वहां महिलाएं कहती हैं कि नदी में बालू अधिक खोद दिया गया है, जिसके कारण घटना घट सकती है। यह हमलोग के लिए बहुत ही दिक्कत वाली बात है। मोती बाबू ने कहा कि जीतनराम हमलोगों के प्रेरणास्रोत रहे हैं। इनका घर भले ही महकार में हो, लेकिन कर्मभूमि मोहनपुर है। जीतनराम मांझी ने यहां खुलकर कुछ बातें रखीं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के योगदान की बार-बार याद दिलाते रहे।

फिर कहते हैं, हमारी कार्यशैली को 44 वर्ष से आप जानते हैं। पिछले सांसद ने कुछ काम आपलोगों का नहीं किया। पूरे गया का कई महत्वपूर्ण कार्य बाकी है। यह तय मान लीजिए कि विष्णुपद और बुद्ध मंदिर का कारिडोर बनाने के लिए प्रयास करेंगे। यह बात प्रधानमंत्री के समक्ष रखी जाएगी। 16 अप्रैल को प्रधानमंत्री आ रहे हैं। उनके सामने गया की प्रमुख समस्याओं को रखेंगे। लोग तालियां बजाते हैं।

एक बजे

गांव निदानी का स्मृति भवन। लड़कों की भीड़ जमा हो जाती है। गुलाटीचक में नारे खूब लगते हैं। अब मोटरसाइकिलों का काफिला भी साथ-साथ चलने लगा और गाड़ियों की संख्या 50 से अधिक हो गई। दो बजे तक लखैपुर बाजार पहुंचते हैं। जहां छोटी सी सभा में अपनी बात कहने के बाद यह संपर्क कारवां मोहनपुर पहुंचता है। मोहनपुर इस क्षेत्र का बड़ा बाजार है। जहां से बांदेगढ़ा जाया जाता है।

बांदेगढ़ा में हम के राष्ट्रीय सचिव और मुखिया संघ के अध्यक्ष कमलेश सिंह द्वारा सभी कार्यकर्ताओं को दिन का भोजन कराया जाता है। यहां पर मोहनपुर के प्रमुख दीपक कुमार सिंह, लाडू के मुखिया अजय शर्मा उर्फ पप्पू सिंह, बुमुआर के मुखिया जयनंदन कुमार के अतिरिक्त सैकड़ों की संख्या में उपस्थित लोग स्वागत में खड़े थे।

पांच बजे के आसपास यह कारवां डंगरा पहुंचता है। यहां हम की विधायक ज्योति देवी के विरोध में नारे लगने लगते हैं। डंगरा से हमजापुर रोड बनाने की मांग को लेकर लोग कई वर्ष से परेशान हैं। इसी को लेकर विरोध के स्वर उभरे थे, जिसका भी बचाव जीतनराम मांझी ने किया।

वे लोगों को समझाते हैं। बोधगया के वार्ड पार्षद राजेश पाल कहते हैं कि प्रतिदिन कारवां इसी तरह जनसंपर्क को निकलता है और शाम को यहां आकर पूरे दिन की समीक्षा होती है। फिर यह यात्रा पुन: बोधगया की ओर चल देती है।

बीच में बातचीत के क्रम में जीतनराम मांझी कहते हैं कि वे गया के लोगों से आज से नहीं जुड़े हैं। गली-गली, खेत-खेत जाना-पहचाना है। यहां के लिए जितना कुछ कर सकते थे, किए हैं। आगे अवसर मिलता है तो और करेंगे। भोजन-पानी पर बोलते हैं, लोग मिलते हैं तो भूख उसी से समाप्त हो जाती है।

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