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Gaya News: हमारे साथियों को जहर क्यों दिया? यह कहते हुए नक्सलियों ने दी थी सजा ए मौत

महेंद्र और सत्येंद्र की मां सोमरिया देवी ने बताया कि 16 मार्च 2021 को चार नक्सली पुलिस मुठभेड़ में मारे गए थे। नक्सलियों का आरोप है कि वे मुठभेड़ में नहीं मारे गए थे बल्कि हमारे परिवार ने जहर देकर मार दिया था। यह सच नहीं है।

By Prashant KumarEdited By: Published: Tue, 16 Nov 2021 09:12 AM (IST)Updated: Tue, 16 Nov 2021 09:12 AM (IST)
नक्‍सल संगठन के प्रति फूट रहा लोगों का आक्रोश। प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर।

संवाद सहयोगी, शेरघाटी (गया)। नक्सल प्रभावित डुमरिया थाना क्षेत्र के मोनबार गांव में शनिवार की रात नक्सलियों ने चार ग्रामीणों को यह कहते हुए फांसी पर लटका दिया था कि उन्होंने उनके साथियों की जहर देकर हत्या की है। नक्सली माओवादी संगठन (एमसीसी) से जुड़े थे। ग्रामीणों ने दबी जुबान में कहा कि नक्सलियों का आरोप गलत था। उनके साथियों की मौत पुलिस से मुठभेड़ में हुई थी, पर वे कुछ सुनने को तैयार नहीं थे। गांव में सोमवार को भी सन्नाटा पसरा था। लोग दहशत में थे। वहीं, पुलिस ने नक्सलियों द्वारा अंजाम दी गई इस घटना को कायराना बताते हुए उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की बात कही है।

इधर, नक्सली संगठन इलाके में पर्चा चिपकाकर यह बताने की कोशिश कर रहा है कि उनका वर्चस्व अभी कायम है। घटना के संबंध में बताते हुए प्रत्यक्षदर्शी रहे ग्रामीण राजेंद्र कुमार फफक पड़ते हैं। उनके चेहरे पर दहशत साफ दिखाई दे रहा था। उन्होंने बताया कि नक्सली करीब 40 की संख्या में थे। सभी हथियारों से लैस थे। उनलोगों ने सबसे सरजू सिंह के बारे में पूछा। वे घर में नहीं थे। इसके बाद उनके बेटे महेंद्र सिंह भोक्ता और सत्येंद्र सिंह भोक्ता को बाहर बुलाया। नक्सली दस्ते को देखते ही सभी के होश उड़ गए थे।

नक्सलियों ने दोनों की पत्नियों को बाहर बुलाया। इसके बाद घर के सारे सदस्यों को बाहर निकालकर एक कमरे में बंद कर दिया। वे लोग मारपीट करते हुए यह कबूल करने पर मजबूर कर रहे थे कि उनके साथियों की हत्या उन्हीं लोगों ने जहर देकर की थी, न कि वे पुलिस मुठभेड़ में मारे गए थे। आखिरकार महेंद्र और सत्येंद्र के साथ दोनों की पत्नियों को फांसी पर लटका दिया।

जहर देने की बात गलत, पुलिस मुठभेड़ में मारे गए थे नक्सली

महेंद्र और सत्येंद्र की मां सोमरिया देवी ने बताया कि 16 मार्च, 2021 को चार नक्सली पुलिस मुठभेड़ में मारे गए थे। नक्सलियों का आरोप है कि वे मुठभेड़ में नहीं मारे गए थे, बल्कि हमारे परिवार ने जहर देकर मार दिया था। यह सच नहीं है। उन्होंने बताया कि नक्सली उस दिन गांव में ठहरे हुए थे। कई घरों में खाना खाया था। इस बीच पुलिस पहुंच गई और गांव को घेर लिया। बाद में नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया। उसके बाद हमलोगों को वहां से भगा दिया गया। वहां क्या हुआ उसके बारे में कुछ पता नहीं है, पर नक्सलियों को शक है कि गांव के लोगों ने ही पुलिस के समर्थन में जहर देकर हत्या कराई थी। नक्सलियों ने जिन ग्रामीणों को मारा, उन्हीं के घर में छिपे नक्सली मारे गए थे।

महेंद्र की मां ने कहा, कोई जन अदालत नहीं लगी थी

सोमरिया देवी ने कहा कि उनके बेटे और बहू को नक्सलियों ने फांसी पर लटका दिया। वे निर्दोष थे। वे पुलिस और नक्सली दोनों की प्रताडऩा के शिकार हुए। सोमरिया और उनकी एक रिश्तेदार ने बताया कि नक्सलियों ने कोई जन अदालत नहीं लगाई थी। कहीं भी जन अदालत नहीं लगी है। पहले लगा करती थी, जिसमें कई गांव के लोग शामिल होते थे। जनता और नक्सली संयुक्त रूप से कोई निर्णय लेते थे। इस बार न तो कोई जन अदालत लगी और न ही किसी प्रकार का फरमान जारी किया गया। मार्च की घटना के बाद सुमरिया परिवार सहित घर छोड़ चुकी थीं, लेकिन नक्सलियों ने आश्वस्त किया था कि जब उनलोगों ने कोई गलती नहीं की है तो घर में आराम से रहे। इस आश्वासन पर करीब तीन माह घर लौट आए थे। अपना काम-धंधा करते हुए जीवन बसर कर रहे थे, लेकिन शनिवार की रात नक्सलियों का दस्ता पहुंचा और अचानक इस घटना को अंजाम दे दिया।


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