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    कभी पंजाब मेल और तूफान जैसी ट्रेनें होती थी रेलवे की शान, अब वंदे भारत की स्पीड दे रही नया अहसास

    Updated: Sat, 13 Apr 2024 05:28 PM (IST)

    Bihar News in Hindi पटना से अयोध्या होकर लखनऊ के बीच चल रही वंदे भारत एक्सप्रेस यात्रियों को एक नया अनुभव दे रही है। लालकिला और तूफान एक्सप्रेस जैसी ट्रेनों का दौर गुजरने के बाद रेलवे खुद को नए स्वरूप में ढाल रहा है। इसमें विश्व स्तरीय सुविधाएं समय पर परिचालन और कम समय में यात्रा जैसी बुनियादी बातें शामिल हैं।

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    तूफान और लालकिला का दौर गुजरा, अब वंदे भारत में नया अहसास। (फाइल फोटो)

    शुभ नारायण पाठक, बक्सर। पटना से अयोध्या होकर लखनऊ के बीच चल रही 22345-6 वंदे भारत एक्सप्रेस (Patna Lucknow Vande Bharat Train) स्थानीय रेल यात्रियों को एक नया अनुभव दे रही है। लालकिला और तूफान एक्सप्रेस जैसी ट्रेनों का दौर गुजरने के बाद रेलवे खुद को नए स्वरूप में ढालने लगा है। इसमें विश्व स्तरीय सुविधाएं, समय पर परिचालन, कम समय में यात्रा जैसी बुनियादी बातें शामिल हैं।

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    इस मुकाम तक पहुंचने में रेलवे को काफी वक्त लगा है। नई पीढ़ी को पुराने जमाने की ट्रेन सेवाओं की जानकारी नहीं है। गत 10-15 साल के अंदर जन्म लेने वाले बच्चों को उन ट्रेनों का नाम तक पता नहीं होगा, जो एक वक्त इस रेलखंड की शान हुआ करती थीं।

    बक्सर में रेल सुविधाओं का विकास वर्ष 1862 में ही हो चुका था। आजादी के वक्त इस मार्ग से चलने वाली सबसे महत्वपूर्ण और लंबी दूरी की ट्रेन पंजाब मेल हुआ करती थी।

    आजादी के पहले यह ट्रेन मौजूदा पाकिस्तान के शहर लाहौर से खुलकर हावड़ा के बीच चलती थी। वर्ष 1943 की समय सारिणी के मुताबिक, यह ट्रेन बक्सर में रुकती थी।

    लखनऊ में 20 मिनट ठहराव के बाद वहां से यह ट्रेन दिन के 1.55 बजे खुलती थी और रात को 10.16 बजे बक्सर पहुंचती थी। इस तरह इस ट्रेन को लखनऊ से बक्सर आने में आठ घंटे 21 मिनट का वक्त लगता था। वंदे भारत यह दूरी छह घंटे 34 मिनट में ही पूरी कर लेती है।

    पंजाब मेल से तब दानापुर, पटना और हावड़ा जाने में क्रमश: दो घंटे चार मिनट, दो घंटे 24 मिनट और 14 घंटे 59 मिनट लगते थे।

    तब इस ट्रेन का मुगलसराय नया नाम डीडीयू से दानापुर के बीच केवल बक्सर में ही ठहराव था। एक और जानकारी आपके लिए नई हो सकती है कि तब तूफान एक्सप्रेस पटना की बजाय गया के रास्ते चला करती थी।

    आजादी के बाद मिली दिल्ली के लिए सीधी ट्रेन

    ब्रिटिश हुकूमत के दौरान सीमित ट्रेनों में ही वातानुकूलित कोच और रेस्तरां की सुविधा उपलब्ध थी। एक और दिलचस्प तथ्य यह है कि कई ट्रेनों के आने के लिए संबंधित प्लेटफार्म का नंबर भी तब रेलवे समय सारिणी में ही तय हो जाता था।

    उदाहरण के लिए 1943 में पंजाब मेल हावड़ा स्टेशन से अप में सात नंबर प्लेटफार्म से खुलती और छह नंबर पर आती थी।

    इसके अलावा, बक्सर के रास्ते हावड़ा-मुगलसराय पैसेंजर और हावड़ा-मुगलसराय एक्सप्रेस दो अन्य ट्रेनें भी खुलती थीं। पटना, आरा, बक्सर के लोगों को दिल्ली जाने के लिए मुगलसराय जाना मजबूरी थी।

    हावड़ा से खुलने वाली बांबे मेल और दिल्ली मेल जैसी दो ट्रेनें तब गया, सासाराम, मुगलसराय के रास्ते चला करती थीं। इस तरह यात्री ट्रेनों के मामले में डीडीयू-पटना की बजाय डीडीयू-गया अधिक सुविधाजनक था।

    आजादी के बाद बक्सर को मिलीं नई ट्रेनें

    वर्ष 1966 की रेलवे समय सारिणी के मुताबिक, तब तक बक्सर के रास्ते हावड़ा से वाराणसी होते हुए जौनपुर तक एक ट्रेन चलने लगी थी।

    तब मुगलसराय से पटना के बीच भोजपुर शटल चलती थी। साथ ही बक्सर से वाराणसी के बीच पैसेंजर ट्रेन भी चलने लगी थी। हावड़ा से दिल्ली के लिए पटना, बक्सर के रास्ते दिल्ली के लिए दो एक्सप्रेस ट्रेनें चलने लगी थीं।

    इनमें एक जनता एक्सप्रेस थी, जिसमें केवल तृतीय श्रेणी के कोच लगते थे। तब तूफान एक्सप्रेस भी बक्सर, पटना के रास्ते चलने लगी थी। इसी के साथ अपर इंडिया और आसाम मेल भी इस मार्ग से चलती थी।

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