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श्रृंगीऋषि धाम लखीसराय : जंगलों व पहाड़ों की कंदराओं में आध्यात्मिक, पौराणिक व रमणीक स्थल, हर मनोकामना पूर्ण

श्रृंगीऋषि धाम लखीसराय जंगली व पहाड़ी बियाबान घने जंगलों में आध्यात्मिक पौराणिक व रमणीक स्थल बाबा श्रृंगीऋषि धाम है। ऋषि श्रृंगी के अलावा शिवल‍िंग और अन्‍य देवी-देवताओं की प्रतिमा स्थापित हैं और मंदिर भी है। सावन में काफी खासियत है।

By Dilip Kumar ShuklaEdited By: Published: Thu, 21 Jul 2022 07:50 AM (IST)Updated: Thu, 21 Jul 2022 07:50 AM (IST)
श्रृंगीऋषि धाम लखीसराय : सावन में यहां काफी संख्‍या में श्रद्धालु पूजा पाठ करते आते हैं।

जागरण संवाददाता, लखीसराय। श्रृंगीऋषि धाम, लखीसराय : लखीसराय जिला मुख्यालय से लगभग 23 किलोमीटर उत्तर-पूरब जंगली व पहाड़ी बियाबान घने जंगलों के बीच पहाड़ों की कंदराओं में आध्यात्मिक, पौराणिक व रमणीक स्थल बाबा श्रृंगीऋषि धाम है। यहां ऋषि श्रृंगी के अलावा शिवल‍िंग स्थापित हैं और छोटा सा मंदिर भी है। बाबा श्रृंगीऋषि धाम में अवस्थित शिवल‍िंग पर हर मौके पर जलाभिषेक किया जाता है। बगल में पार्वती, बजरंगबली, बाबा श्रृंगीऋषि सहित कई अन्य मंदिर भी है। मंदिर के बगल में पहाड़ों से सालों भर पानी गिरते झरना है और वहीं पर कुंड भी है। इसमें स्नान करके लोग वहां पूजा करते हैं। यहां मोरवे डैम भी है जो लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है।

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मंदिर का इतिहास

यहां मंदिर की भव्यता नहीं धाम की पौराणिकता है। छोटे-छाटे मंदिरों में यहां भोलेनाथ सहित अन्य देवी देवताएं विराजमान हैं। यह स्थल त्रेतायुगीन है। अयोध्या के राजा दशरथ और श्रीराम सहित उनके चार पुत्रों से जुड़ा यह स्थल है। श्रृंगीऋषि की पहाडिय़ां, झरने और कुंड आकर्षण का केंद्र है। मोरवे डैम के बड़े क्षेत्र में नीली झील पहाडिय़ों पर से देखकर बहुत ही मनोरम लगता है। पौराणिक पुस्तकों के अनुसार यहां पुत्र प्राप्ति के लिए राजा दशरथ ने यज्ञ किया था। और, भगवान राम सहित चारों पुत्र भरत, लक्ष्मण एवं शत्रुघ्न के अवतरित होने के बाद उन चारों का मुंडन संस्कार भी यहीं कराया था।

मंदिर की विशेषता

बाबा श्रृंगीऋषि धाम की विशेषता यह है कि अब भी यहां पुत्र रत्न की प्राप्ति के साथ ही अन्य मनोरथ के लिए दूर-दूर से लोग यहां पहुंचते हैं। यहां सालों भर अनुष्ठान और हवन का कार्यक्रम चलते रहता है। वसंत पंचमी का मेला यहां का ऐतिहासिक होता है जिसमें दूर दराज के क्षेत्र से भी लोग पहुंचते हैं। प्रत्येक दिवस विशेष एवं पर्व त्योहार में लोग स्वत: खींचे चले जाते हैं। झरने के कुंड में स्नान करने से सारे पापों से मुक्ति मिल जाती है और चर्म रोग का नाश भी होता है। चूंकि यह स्थल ऋषि श्रृंगी की रही है इस कारण यह तपोभूमि है।

राजा रोमपाद ने अपनी दत्तक पुत्री शांता, जो राजा दशरथ से गोद लिया था उनसे ऋषि श्रृंगी का विवाह रचाया। यह क्षेत्र रामपाद के अधीन था। विवाह के बाद राजा ने ऋषि को यह जंगली क्षेत्र अपनी तप एवं साधना के लिए दे दिया था। तब से यह स्थल श्रृंगीऋषि धाम कहलाया। यहां आने वाले श्रद्धालुओं एवं सनातन धर्मावलंबियों की सभी मनोकामनाएं भोले बाबा पूरा करते हैं। - पंडित चतुरानंद पाठक, पुजारी।

यह कलियुग है। श्रृंगीऋषि धाम त्रेतायुग के समय का है। पहाड़ों के बीच स्थित रहने के कारण यह पौराणिक के साथ ही रमणीक भी है। बाबा श्रृंगीऋषि धाम मंदिर में मन्नतें मांगने वाले की हर मुराद पूरी होती है। हालांकि सबकुछ के बावजूद यह स्थल जिला प्रशासन, राज्य सरकार एवं पर्यटन विभाग से उपेक्षित है। इसे श्रीराम सर्किट से जोडऩे की पहल करनी चाहिए। - पंडित मृत्युंजय कुमार झा, पुजारी।


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