मां बाला त्रिपुर सुंदरी बड़हिया लखीसराय: इस पौराणिक सिद्ध शक्तिपीठ का मां वैष्णो देवी जम्मू कश्मीर से भी है रिश्ता
बड़हिया लखीसराय में पौराणिक सिद्ध शक्तिपीठ है। मां बाला त्रिपुर सुंदरी का यहां भव्य मंदिर है। मां वैष्णो देवी जम्मू कश्मीर के संस्थापक श्रीधर ओझा ने इसकी स्थापना की थी। इसकी पहचान प्रदेश एवं राष्ट्रीय स्तर पर है। दुर्गा पूजा की यहां काफी संख्या में लोग आते हैं।
संवाद सूत्र, बड़हिया (लखीसराय)। मां वैष्णो देवी जम्मू कश्मीर के संस्थापक श्रीधर ओझा द्वारा स्थापित सिद्ध मंगलापीठ मां बाला त्रिपुर सुंदरी जगदंबा मंदिर बड़हिया (लखीसराय) की पहचान प्रदेश एवं राष्ट्रीय स्तर पर है। लोक आस्था का केंद्र मां बाला त्रिपुर सुंदरी मंदिर ऐतिहासिक और पौराणिक गाथा से लबरेज है। मां बाला त्रिपुर सुंदरी का भव्य और विशाल मंदिर के साथ यहां भक्त श्रीधर ओझा आश्रम का निर्माण करोड़ों रुपये की लागत से किया गया है। सफेद संगमरमर का विशाल 151 फीट ऊंचा मंदिर के गुंबज पर सजे स्वर्ण कलश दूर से ही श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है।
मंदिर का इतिहास
पौराणिक मान्यता के अनुसार बड़हिया ग्राम की स्थापना पालवंश के काल में हुआ माना जाता है। पंडित श्रीधर ओझा बड़हिया के ही मूल निवासी थे। हिमालय की गुफा में तपस्या करने के दौरान मां वैष्णो देवी की स्थापना के बाद उन्होंने बड़हिया में मां जगदंबा को स्थापित किया था। उस वक्त बड़हिया गांव के पूरब में गंगा तथा पश्चिम में हरूहर नदी बहती थी एवं यह क्षेत्र जंगलों से घिरा था। सैकड़ों विषधर सर्प भी प्रवास करते थे। ग्रामीणों की सर्पदंश से हो रही मौत से निजात दिलाने के लिए भक्त शिरोमणि श्रीधर ओझा ने अराध्य देवी की आराधना की। भक्त की पुकार सुनकर मा बाला त्रिपुर सुंदरी प्रकट हुई। मां से श्रीधर ओझा ने सर्पदंश से निजात दिलाने की मांग की। मां बाला त्रिपुर सुंदरी ने सर्पदंश से मुक्ति का उपाय बताया। भक्त श्रीधर ओझा ने मां को बड़हिया में स्थापित किया और मा बाला त्रिपुर सुंदरी द्वारा बताए गए मंत्र से सर्प दंश से पीडि़त लोगों का उपचार करने लगे।
मंदिर की विशेषताएं
- मंदिर का 151 फिट ऊंचा गुंबज कोसों दूर से नजर आता है, यहां मिट्टी के पिंड की पूजा होती है।
- सर्पदंश से पीडि़त व्यक्ति के मंदिर परिसर पहुंचने पर वह चंगा हो जाता है।
- मंदिर का गर्भ गृह जमीन से लगभग 12 फिट ऊंचा है।
- मंदिर को नवरात्र के अवसर पर भव्य रूप से कोलकाता के कारीगरों द्वारा सजाया जाता है।
- मंदिर में मंगलवार एवं शनिवार को दूर दराज से हजारों श्रद्धालु का मेला लगता है।
- करोड़ों रुपये की लागत से मंदिर के समीप भक्त श्रीधर सेवाश्रम की खूबसूरती देखते बनती है।
- सच्चे मन से मां के दरबार में आकर अराधना करने वाले को मां कभी निराश नहीं करती है।
- मंदिर की ऊपरी तल पर मां दुर्गा के नौ रूपों की स्थापित प्रतिमा श्रद्धालुओं के लिए आस्था बन चुका है।
- मां जगदंबा यहां महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के साथ पिंड स्वरूप में विराजती हैं।
- माता का दैनिक पुष्प श्रृंगार एवं प्रात: व संध्या आरती का स्वरूप अलौकिक होता है।
पूजारी विनय कुमार झा ने कह कि यह मंदिर सिद्ध शक्तिपीठ है। यहां स्वच्छ एवं पवित्र मन से मांगी गई हर मुरादें मां जरूर पूरी करती है। मनोकामनाओं से फलीभूत होने वाले आस्थावान श्रद्धालु इस मंदिर को कामना पूर्ति मंदिर भी कहते हैं। त्रिपुर सुंदरी मां दुर्गा का ही रूप हैं। मां जगदंबा यहां महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के साथ पिंड स्वरूप में विराजती हैं। ऐसी मान्यता है कि बाल स्वरूप में विराजने वाली मां सहज ही अपने भक्तों की पुकार को सुनकर मुराद पूरी करती है। इसी का प्रतिफल है कि हर मंगलवार व शनिवार को दूर दूर से श्रद्धालु मां के दर्शन पूजन को पहुंचते हैं। शारदीय और वासंती नवरात्र के दिनों में श्रद्धालुओं की संख्या में वृद्धि हो रही है।
मंदिर कमेटी सदस्य ललित झा ने कहा कि ऐसी मान्यता है कि जो भी भक्त श्रद्धा व भक्ति से यहां पहुंचकर आराधना करते हैं उनकी मनोकामना पूर्ण होती है। बड़हिया वासी हर शुभ कार्य मां के दरबार से ही शुरू करते हैं। वहीं लोगों को जब भी कोई संकट या विपत्ति आती है तो मां के दर्शन मात्र से ही वह टल जाता है। बाला त्रिपुर सुंदरी माता की पूजा-अर्चना के लिए यहां काफी संख्या में आसपास एवं दूर दराज से भी महिला एवं पुरुष श्रद्धालुओं का आगमन होता रहता है। यहां नवरात्र में काफी भीड़ जुटती है। इसके अलावा मुंडन और उपनयन संस्कार के लिए भी लोग आते हैं। मंदिर ट्रस्ट ने भक्तों के लिए श्रीधर सेवाश्रम की स्थापना की है। इसमें धार्मिक आयोजन के साथ ही श्रद्धालुओं के ठहरने की उत्तम व्यवस्था की गई है।