मंदी से हांफ रहा ऑटो सेक्टर, नहीं दिख रही उम्मीद की किरण
ऑटो कंपनियों के संगठन सियाम के मुताबिक बीते 10 महीने से पैसेंजर कारों की बिक्री लगातार घट रही है और यह चिंताजनक स्तर तक पहुंच गई है
नई दिल्ली, ऑटो डेस्क। नई दिल्ली भारतीय ऑटोमोबाइल सेक्टर की स्थिति कैसी है, इसे समझने के लिए सेक्टर के तीन बड़े संगठनों की ताजा रिपोर्ट बेहद अहम हैं। ऑटो कंपनियों के संगठन सियाम के मुताबिक बीते 10 महीने से पैसेंजर कारों की बिक्री लगातार घट रही है और यह चिंताजनक स्तर तक पहुंच गई है। इस वर्ष जून में पैसेंजर कारों की बिक्री में 25 फीसद से ज्यादा की गिरावट आई है और यह कार बाजार की पिछले एक दशक की सबसे बड़ी गिरावट है। कार डीलरों के संगठन फाडा के मुताबिक बिक्री में हो रही इस गिरावट के नतीजतन बीते डेढ़ साल में 282 डीलरशिप बंद हो गई। जबकि ऑटोमोबाइल उद्योग के लिए कंपोनेंट बनाने वाली कंपनियों के संगठन एक्मा ने कहा है कि बिक्री में गिरावट इसी तरह बनी रही तो कंपोनेंट उद्योग में बड़ी संख्या में नौकरियां जाने का खतरा बढ़ जाएगा।
घरेलू ऑटोमोबाइल बाजार की यह मंदी इसलिए भी ज्यादा चिंताजनक है कि पिछले करीब दो वर्षो में इसने उद्योग को पूरी तरह अपनी चपेट में ले लिया है। हालांकि पिछले वर्ष की शुरुआत में बिक्री बढ़ने के कुछ संकेत मिले थे, लेकिन वे क्षणिक साबित हुए। ऑटो उद्योग की बिक्री में गिरावट की रफ्तार इतनी सतत रही है कि बीते साल जून के मुकाबले पैसेंजर कारों की बिक्री इस साल जून में 18.42 फीसद घट गई है। जबकि वाणिज्यिक वाहनों में 9.53 फीसद, दोपहिया वाहनों में 11.68 फीसद, तिपहिया वाहनों में 7.35 फीसद की गिरावट हुई है। पिछले पांच वर्षो से ग्राहकों के बीच बेहद लोकप्रिय हो रहे एसयूवी (स्पोर्ट्स यूटिलिटी व्हीकल्स) सेग्मेंट की बिक्री भी इन तीन महीनों में 4.50 फीसद नीचे आई है।
हालत यह हो गई है कि मारुति सुजुकी, टाटा मोटर्स, महिंद्रा एंड महिंद्रा जैसी प्रमुख बड़ी कार कंपनियों को उत्पादन घटाना पड़ रहा है। एक अनुमान है कि कार कंपनियों के पास करीब 30 हजार करोड़ रुपये का स्टॉक है। यह अगर अगले कुछ महीनों में नहीं बिक पाया तो कुछ कंपनियों की वित्तीय स्थिति बेहद खस्ताहाल हो सकती है।
कार उद्योग की इस मंदी की गहराई को इस तथ्य से भी मापा जा सकता है कि पहली बार हुआ है कि ऑटो उद्योग के प्रत्येक वर्ग में बिक्री में कमी आई है। ऑटो उद्योग के लिए परेशानी का सबब केवल बिक्री गिरना ही नहीं, बल्कि इससे जुड़े कई नीतिगत मसले भी हैं। एक्मा के प्रेसिडेंट राम वेंकटरमानी मानते हैं कि सरकार की तरफ से नीतिगत अनिश्चितता भी उद्योग की दिक्कत बढ़ा रही है।
मंदी में जा रहा ऑटोमोबाइल उद्योग निकट भविष्य में मौजूदा हालात बदलने को लेकर भी आश्वस्त नहीं है। कंपनियां आने वाले त्योहारी सीजन को लेकर बहुत उत्साहित नहीं हैं क्योंकि सब कुछ मानसून की स्थिति और ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर निर्भर करेगा। कारों के साथ साथ दोपहिया वाहन बाजार में भी सन्नाटा पसरा है। वर्ष 2022-23 के बाद पेट्रोल-डीजल से चलने वाले 150 सीसी तक के दोपहिया वाहनों की बिक्री बंद होने के एलान के बाद से ही इन कंपनियों को होश उड़े हुए हैं।
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