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कंपनियां भारी खर्च उठाकर भी क्यों करती गाड़ियों का रिकॉल, जानें भारत में क्या हैं इससे जुड़े नियम

Car Recall के बारे में हमने बहुत सुना है। अक्सर कंपनियां अपनी गाड़ियों को रिकॉल या वापस बुलाते रहती है और उनमें पाए जाने वाली खराबियों को ठीक करती है। पर क्या आप जानते हैं कि इतना खर्च उठाकर भी वे ऐसा क्यों करती है?

By Sonali SinghEdited By: Mon, 05 Dec 2022 11:23 PM (IST)
कंपनियां भारी खर्च उठाकर भी क्यों करती गाड़ियों का रिकॉल, जानें भारत में क्या हैं इससे जुड़े नियम
Why Companies Recall Their Vehicles, Know Rules In India

नई दिल्ली, ऑटो डेस्क। अभी कुछ दिन पहले ही खबर आई थी कि वाहन निर्माता कंपनी Mahindra ने अपने XUV700 और Scorpio-N मॉडल के करीब 19,000 यूनिट्स को वापस बुलाया है। इससे पहले भी कंपनियां अपनी गाड़ियों को रिकॉल करते आई है। जैसे कि हम जानते हैं कि गाड़ियों में होने वाली खराबियों की वजह से उन्हे वापस बुलाया जाता है। इसमें कंपनियों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है क्योंकि वापस बुलाने की सारी प्रक्रिया का खर्च कंपनी खुद उठाती है।

पर सवाल उठता है कि आखिर कंपनियां इतना खर्च उठा कर भी गाड़ियों को रिकॉल क्यों करती है और अगर वें ऐसी नहीं करेंगी तो क्या होगा? चलिए भारत में गाड़ियों के रिकॉल से जुड़े नियमों के बारे में जानते हैं।

क्या होती है रिकॉल?

वाहनों को वापस बुलाने की प्रक्रिया या रिकॉल से जुड़े नियमों को जानने से पहले यह समझना जरूरी है कि आखिर यह होती क्या है। सामान्य शब्दों में कहें तो जब कोई कंपनी अपने वाहनों में किसी तरह की खराबी पाती है तो बिना किसी सरकारी निर्देश के खुद से उन्हे वापस बुलाने की घोषणा करती है। इसे ही रिकॉल कहा गया है। कंपनी आमतौर पर कार को नुकसान से बचाने और यात्रियों या अन्य सड़क उपयोगकर्ताओं के बीच किसी तरह के एक्सीडेंट के जोखिम को कम करने के लिए ऐसा करती है।

भारत में Recall से जुड़े नियम

मोटर वाहन अधिनियम के तहत ऑटोमोटिव रिकॉल प्रक्रिया कानूनी दायरे में आता है और इसके तहत, केंद्र सरकार किसी वाहन निर्माता को किसी वाहन को वापस बुलाने का आदेश दे सकती है। साथ ही, सरकार के पास प्रभावित वाहनों को पूरी तरह से बदलने के लिए कार निर्माता को निर्देशित करने की पावर भी है।

यहां ध्यान देने वाली बात है कि सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स (SIAM) द्वारा जारी निर्देशों के अनुसार ऑटोमेकर्स द्वारा रिकॉल स्वेच्छा से शुरू किया गया था और 2019 तक इससे जुड़े कोई नियम नहीं थे। हालांकि, अब अगर इस बात का सबूत है कि गाड़ियों में पाई जाने वाली खराबी पर्यावरण, इसमें रहने वालों या सड़क उपयोगकर्ताओं को नुकसान पहुंचा सकता है तो सरकार इसे रिकॉल करने का आदेश जारी कर सकती है। अगर कंपनी ऐसा नहीं करती है तो उन्हे भारी जुर्माना देना पड़ सकता है।

क्यों करती है कंपनियां खुद से रिकॉल?

कंपनियों द्वारा खुद से रिकॉल किए जाने के पीछे कई कारण हैं। सबसे पहले अगर कंपनियां खुद से रिकॉल कर गाड़ी में पाई पाने वाली खराबी को ठीक करती है तो इससे ग्राहकों में इस ब्रांड के प्रति विश्वास बढ़ता है। इसके अलावा, गाड़ी में पाई जाने वाली खराबी से अगर किसी की जान जाती है तो कंपनी को कोर्ट के चक्कर भी लगाने पड़ते हैं, जिससे बाजार में ब्रांड की छवि खराब होती है। इसलिए कंपनियां ऐसा करती है।

दूसरी तरफ, खराबी का पता चलने के बाद भी अगर कंपनी कॉस्ट को बचाने के लिए चुप-चाप बैठी रहती है तो इससे सरकार द्वारा भारी जुर्माना भी कंपनी को देना पड़ सकता है।

ग्राहक भी कर सकते हैं रिकॉल की मांग

सड़क सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए लगातार इससे जुड़े नियमों में बदलाव किए जा रहे हैं। पिछले साल ही सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (MoRTH) ने परिवहन वेबसाइट पर वाहन रिकॉल पोर्टल लॉन्च किया था। इसमें रजिस्ट्रेशन करवाने के बाद उपयोगकर्ता अपने वाहन में निर्माण संबंधी खामियों के बारे में शिकायत दर्ज करा सकते हैं।

अगर आपका वाहन सात साल से कम पुराना हो और उसमें किसी तरह की खराबी आ रही है तो आप इस पोर्टल पर जाकर शिकायत दर्ज करवाया जा सकता है। वहीं, राष्ट्रीय राजमार्ग यातायात सुरक्षा प्रशासन (NHTSA) एजेंसी आवश्यक समझे जाने पर दोषों की जांच, निगरानी और सुधार करती है।

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