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    Daridra Yog: कुंडली में क्या है दरिद्र योग? जानें गरीबी और आर्थिक संकट के ज्योतिषीय कारण

    Updated: Sun, 20 Jul 2025 09:48 AM (IST)

    ज्योतिष के अनुसार दरिद्र योग व्यक्ति के जीवन में आर्थिक तंगी और कष्ट लाता है। यह योग तब बनता है जब लग्न या लग्नेश कमजोर होता है। कुछ प्रमुख दरिद्र योगों में ग्रहों का नीच राशि में होना षष्ठ अष्टम द्वादश भाव के स्वामियों से ग्रहों का संबंध और लग्नेश का त्रिक भावों में होना शामिल हैं। चंद्रमा और केतु का पीड़ित होना भी दरिद्रता का कारण बनता है।

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    Daridra Yog:यहां जानें दरिद्र योग से जुड़ी प्रमुख बातें।

    आनंद सागर पाठक, एस्ट्रोपत्री। दरिद्र योग वे विशेष योग होते हैं जो व्यक्ति के जीवन में गरीबी, आर्थिक संकट और कष्ट लेकर आते हैं। यदि कुंडली में लग्न या लग्नेश कमजोर और पीड़ित हो, तो ये योग स्वास्थ्य समस्याएं भी पैदा कर सकते हैं। इसलिए कई बार दरिद्र योग और अरिष्ट योग एक-दूसरे से जुड़े हुए प्रतीत होते हैं, क्योंकि दोनों ही जीवन में दुख और बाधाएं लाते हैं।

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    कुछ प्रमुख दरिद्र योग जो शास्त्रों में बताए गए हैं

    • यदि सभी ग्रह नवांश  कुंडली में नीच राशि में या शत्रु राशि में स्थित हों, भले ही वे जन्म कुंडली (राशि कुंडली) में उच्च के हों तो ऐसा जातक दूसरों की सेवा कर के, भीख मांग कर या गलत कामों से जीवन यापन करता है।
    • यदि ग्रह षष्ठ (छठे), अष्टम (आठवें) और द्वादश (बारहवें) भाव के स्वामियों से जुड़े हों, या मारक (दूसरे और सातवें भाव के स्वामी) ग्रहों से संबंध रखते हों, और पंचम व नवम भाव के स्वामियों की दृष्टि या प्रभाव न हो तो ऐसे ग्रह अपनी दशा में भारी कष्ट देते हैं।
    • यदि लग्नेश द्वादश भाव में हो और द्वादश भाव का स्वामी लग्न में हो, और इन दोनों पर मारक ग्रहों का प्रभाव हो तो यह भी दरिद्र योग बनता है।
    • लग्नेश छठे भाव में हो और छठे भाव का स्वामी लग्न में हो, और इन पर मारक ग्रह प्रभाव डालें तब भी दरिद्रता आती है।
    • यदि लग्न या चंद्रमा केतु से पीड़ित हो और लग्नेश अष्टम भाव में हो तथा किसी मारक ग्रह से पीड़ित हो तो भी जातक को दरिद्रता और स्वास्थ्य संबंधी परेशानियाँ झेलनी पड़ती हैं।

    एक व्याख्या के अनुसार, यदि चंद्रमा लग्न में हो और केतु आदि ग्रहों से पीड़ित हो, तो यह दरिद्र योग बनाता है -

    • यदि लग्नेश त्रिक भावों (छठा, आठवां, बारहवां) से जुड़ा हो और द्वितीय भाव का स्वामी नीच का हो या छठे भाव में हो तो यह योग राजघराने में जन्मे व्यक्ति को भी दरिद्र बना सकता है।
    • यदि पंचम भाव का स्वामी छठे भाव में हो और नवम भाव का स्वामी द्वादश भाव में हो और दोनों पर मारक ग्रहों का प्रभाव हो तो भी भारी कष्ट आते हैं।
    • यदि नवम और दशम भाव के स्वामी को छोड़कर अन्य पाप ग्रह लग्न में स्थित हों और उन पर मारक ग्रहों का प्रभाव हो तो यह भी दरिद्र योग होता है।
    • जब शुभ भावों में पाप ग्रह हों और पाप भावों में शुभ ग्रह हों तो यह योग भी दरिद्रता देता है।
    • यदि चंद्रमा की नवांश कुंडली में जो राशि आती है, उसका स्वामी किसी मारक ग्रह से जुड़ा हो या किसी मारक भाव में स्थित हो तो यह योग भी कष्टकारी होता है।
    • चंद्रमा नवांश कुंडली में जिस राशि में स्थित है, उस राशि का स्वामी ही उसका नवांश स्वामी कहलाता है।
    • यदि लग्नेश या नवांश लग्न का स्वामी त्रिक भावों (छठा, आठवां, बारहवां) में स्थित हो और उस पर किसी मारक ग्रह की दृष्टि हो या वह उसके साथ युति में हो तो यह भी दरिद्रता देता है।
    • यदि मंगल और शनि दोनों द्वितीय भाव में हों तो यह धन का नाश करने वाला योग होता है।

    यह भी पढ़ें: तत्वों की शक्ति: आपकी राशि और उसका छुपा हुआ सार

    लेखक: आनंद सागर पाठक, Astropatri.com प्रतिक्रिया देने के लिए संपर्क करें: hello@astropatri.com

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