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    वैदिक ज्योतिष क्या है? यहां जानिए इससे जुड़ी प्रमुख बातें

    Updated: Sat, 19 Jul 2025 01:52 PM (IST)

    वैदिक ज्योतिष जिसे ज्योतिष शास्त्र भी कहते हैं वेदों पर आधारित एक प्राचीन ज्ञान है। यह सितारों और ग्रहों की चाल के माध्यम से जीवन को दिशा देने का प्रयास करता है। यह भविष्य बताने वाला विज्ञान नहीं बल्कि जीवन के लक्ष्य और राह को दिखाने वाला आईना है। कुंडली मिलान से विवाह और संबंधों में सामंजस्य का पता चलता है।

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    वैदिक ज्योतिष भविष्य का आईना या जीवन का मार्गदर्शक?

    आनंद सागर पाठक, एस्ट्रोपत्री। वैदिक ज्योतिष, जिसे हम ज्योतिष शास्त्र भी कहते हैं, एक ऐसा प्राचीन ज्ञान है जो वेदों पर आधारित है। इसमें हम सितारों और ग्रहों की चाल को देखकर यह समझने की कोशिश करते हैं कि वे हमारे जीवन को कैसे दिशा दे रहे हैं। पश्चिमी ज्योतिष जहां एक अलग राशि चक्र पर चलता है, वहीं वैदिक ज्योतिष नक्षत्रों यानी तारों के आधार पर काम करता है। इसी वजह से इसकी गणनाएं खगोलीय सच्चाई से और भी ज़्यादा जुड़ी होती हैं।

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    लोग सदियों से इसका सहारा लेते आए हैं कभी करियर के लिए, कभी रिश्तों के लिए, तो कभी आत्मिक शांति पाने के लिए। यह सिर्फ भविष्य बताने वाला विज्ञान नहीं, बल्कि एक ऐसा आईना है जो आपके जीवन के लक्ष्य और राह दोनों को दिखा सकता है।

    वैदिक ज्योतिष को समझना

    वैदिक ज्योतिष (ज्योतिष शास्त्र) एक ऐसी विद्या से जुड़ा अभ्यास है जिसमें किसी व्यक्ति के जीवन को विभिन्न खगोलीय पिंडों की स्थिति के आधार पर समझा जाता है। “ज्योतिष” संस्कृत शब्द “ज्योति” (प्रकाश) से निकला है, और इसे अक्सर “प्रकाश का विज्ञान” कहा जाता है क्योंकि यह व्यक्ति के पूरे जीवन पथ पर प्रकाश डालने की शक्ति रखता है।

    वैदिक ज्योतिष की उत्पत्ति

    ज्योतिष कैसे आरंभ हुआ इस रहस्य को समझने के लिए हमने कुछ प्राचीन तथ्यों और प्रमाणों का अध्ययन किया। आज की वैज्ञानिक बुद्धि के अनुसार, मानव सभ्यता लगभग 7000 से 10000 वर्ष पुरानी मानी जाती है।

    भगवान श्रीराम के पिता अयोध्या के प्रतापी राजा दशरथ ने एक बार शनि देव से प्रार्थना करते हुए एक स्तोत्र की रचना की थी। यह स्तोत्र इस उद्देश्य से रचा गया था कि जब शनि देव रोहिणी नक्षत्र में गोचर करें, तो वे कष्ट न दें। यह स्तोत्र "शनि नील स्तोत्र" के नाम से प्रसिद्ध है और शनि दशा या गोचर के दौरान आने वाली परेशानियों में अत्यंत प्रभावशाली उपाय माना जाता है।

    श्रीरामजी की कुंडली का भी ज्योतिषीय आधार पर विश्लेषण किया गया है। खगोलीय गणनाओं के आधार पर यह पाया गया कि भगवान राम का जन्म ईसा पूर्व 5114 में हुआ था यानी आज से लगभग 7000 वर्ष पहले। इससे यह स्पष्ट होता है कि ज्योतिष विद्या उस काल में भी विद्यमान थी।

    यहां हम एक बहुत रोचक बात साझा करना चाहेंगे भगवान श्रीराम की कथा जितनी प्राचीन है, उतनी ही प्राचीन है काल का वह विस्तृत आयाम, जिसमें से ज्योतिष का उद्भव हुआ। यह हमें समय के विस्तार की गहराई समझाता है और यह भी संकेत देता है कि ज्योतिष की जड़ें कितनी गहरी और प्राचीन हो सकती हैं।

    वैदिक ज्योतिष के मुख्य सिद्धांत

    वैदिक ज्योतिष कई महत्वपूर्ण तत्वों पर आधारित है जैसे- 12 राशियां, 9 ग्रह, 12 नक्षत्र, कुंडलीयां आदि

    • राशियां - मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ और मीन।
    • नव ग्रह - सूर्यदेव, चंद्रदेव, मंगलदेव, बुधदेव, बृहस्पतिदेव, शुक्रदेव, शनि देव, राहु देव और केतु देव।
    • नक्षत्र - अश्विनी, भरणी, कृतिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसू, पुष्य, अश्लेषा, मघा, पूर्वा फाल्गुनी, उत्तर फाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तर भाद्रपद और रेवती।
    • कुंडलीयां - जन्म कुंडली, चंद्र कुंडली और नवांश कुंडली।

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    ग्रहों की गतियों की भूमिका-

    दशा प्रणाली

    दशा प्रणाली जीवन को विभिन्न ग्रहों की अवधियों में विभाजित करती है, जिनमें विशिष्ट अनुभव होते हैं:

    महादशा- जीवन की मुख्य अवधि, जिसमें कोई एक ग्रह कई वर्षों तक प्रमुख रूप से असर डालता है। (समय: सालों में मापी जाती है)

    अंतरदशा - महादशा के भीतर की उप-अवधि, जो यह दिखाती है कि उस समय महादशा में कौन सा ग्रह साथ दे रहा है या चुनौती दे रहा है। (समय: महीनों में मापी जाती है)

    प्रत्‍यंतर दशा - अंतरदशा के अंदर की और भी सूक्ष्म अवधि, जो किसी घटना के सटीक समय को दर्शाती है। (कुछ दिनों से लेकर कुछ हफ्तों तक होती है)

    ग्रहों के गोचर की अवधि-

    • चंद्र देव- लगभग 2.25 दिन प्रति राशि
    • बुध देव - लगभग 14 से 30 दिन (गति पर निर्भर)
    • शुक्र देव -लगभग 23 से 27 दिन
    • सूर्य देव - लगभग 1 महीना (30 दिन)
    • मंगल देव- लगभग 45 दिन से 2 महीना
    • बृहस्पति देव - लगभग 1 वर्ष (12-13 महीने)
    • शनि देव - लगभग 2.5 वर्ष (ढाई साल)
    • राहु देव और केतु देव - लगभग 18 महीने (एक राशि में)

    वैदिक ज्योतिष का उपयोग किसलिए किया जाता है?

    आत्म-खोज के लिए

    जन्म कुंडली के माध्यम से हम अपनी भीतरी ताकत, कमज़ोरियाँ और जीवन का उद्देश्य समझ सकते हैं। यह हमें आत्म-चेतना की ओर ले जाता है।

    विवाह और संबंधों के लिए

    कुंडली मिलान के जरिए यह जाना जा सकता है कि दो व्यक्तियों के बीच भावनात्मक और मानसिक सामंजस्य कैसा रहेगा, जिससे संबंध स्थिर और संतुलित बनते हैं।

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    करियर और आर्थिक दिशा के लिए

    ग्रहों की स्थिति यह संकेत देती है कि कौन-सा पेशा, कब अवसर, और कहाँ प्रगति संभव है। यह सही दिशा चुनने में मदद करता है।

    स्वास्थ्य के संकेत जानने के लिए

    कुंडली में स्वास्थ्य संबंधित भावों और ग्रहों के योग से यह जाना जा सकता है कि किस काल में किस तरह की सावधानी आवश्यक होगी।

    आध्यात्मिक विकास के लिए

    वैदिक ज्योतिष सिर्फ बाहरी जीवन नहीं, बल्कि आंतरिक यात्रा, कर्म के पाठ, और आत्मिक शांति की दिशा भी दिखाता है।

    समापन

    ज्योतिष संभवतः उन दिव्य अंतर्दृष्टियों में से एक है, जो हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों को आत्मचिंतन और तपस्या के माध्यम से प्राप्त हुई होंगी। हमें उन सभी महापुरुषों के प्रति कृतज्ञ होना चाहिए, जिन्होंने इन गूढ़ ज्ञान को सामान्य जन के समझने योग्य भाषा में रूपांतरित किया।

    ज्योतिष को हमें केवल भविष्य जानने का माध्यम नहीं, बल्कि जीवन को बेहतर बनाने का एक मार्गदर्शक उपकरण मानना चाहिए। इस ज्ञान के माध्यम से न केवल हम अपने जीवन में सुधार ला सकते हैं, बल्कि इस संसार को एक अधिक करुणामय और सुन्दर स्थान भी बना सकते हैं।

    लेखक: आनंद सागर पाठक, Astropatri.com। Astropatri.com अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए hello@astropatri.com पर संपर्क करें।

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