क्या होती हैं दशाएं और कितनी होती है अवधि, यहां पढ़ें इसका पूरा गणित
महादशा अन्तर्दशा और प्रत्यंतर दशा मिलकर यह संकेत देती हैं कि कौन-सा ग्रह कब सक्रिय है और वह जीवन को किस ओर मोड़ सकता है। इस लेख में हम जानेंगे कि दशाएं क्या होती हैं उनकी अवधि (mahadasha duration) कितनी होती है और वे हमारी जीवन यात्रा में क्या भूमिका निभाती हैं।

आनंद सागर पाठक, एस्ट्रोपत्री। वैदिक ज्योतिष में दशाएं (dasha system astrology) किसी भी व्यक्ति के जीवन की घटनाओं के समय को समझने का प्रमुख माध्यम हैं। जन्म कुंडली दिशा दिखाती है, लेकिन कब क्या घटेगा, इसका उत्तर दशा प्रणाली देती है।
महादशाएं
ज्ञानी ज्योतिषी जब किसी जातक को परामर्श देते हैं, तो वे मुख्य कुंडली, वर्ग कुंडलियां (जैसे नवांश आदि), नक्षत्र, दशाएं और गोचर इन सभी का संयोजन उपयोग करते हैं ताकि किसी निष्कर्ष पर पहुंच सकें।
दशा प्रणाली के 3 पहलू होते हैं जिनके नाम हैं महादशा, अंतरदशा और प्रत्यंतरदशा (antaradasha pratyantaradasha)। महादशा एक बहुवर्षीय प्रक्रिया होती है और इसे जातक के जीवन से जुड़ी भविष्यवाणी करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण उपकरणों में से एक माना जाता है।
ग्रह महादशा- अवधि
- सूर्यदेव- 6 वर्ष
- चंद्रदेव- 10 वर्ष
- मंगलदेव- 7 वर्ष
- बुधदेव- 17 वर्ष
- बृहस्पतिदेव- 16 वर्ष
- शुक्रदेव- 20 वर्ष
- शनि देव- 19 वर्ष
- राहु देव- 18 वर्ष
- केतु देव- 07 वर्ष
नौ ग्रहों की महादशा की अवधि-
नौ ग्रहों की महादशाओं का संक्षिप्त विवरण ज्योतिषीय ग्रंथ “बृहत् पराशर होरा शास्त्र” के प्रकाश में नीचे दिया गया है। किसी दशा के प्रभाव को समझने के लिए कई कारकों पर विचार करना आवश्यक होता है जैसे दशा स्वामी की स्थिति, वह किस राशि में स्थित है, वह जिन भावों का कारक है, उसकी शक्ति या दुर्बलता जैसे उच्च, स्वगृह, शत्रु राशि या नीच स्थिति आदि।
दशाएं कितने प्रकार की होती हैं?
महादशा → अंतर्दशा → प्रत्यंतर दशा → सूक्ष्म दशा
इस प्रकार, यह प्रणाली कई परतों में विभाजित होती है। सूक्ष्म दशाए (Sub Periods) क्यों कम उपयोग होती हैं? अधिकांश ज्योतिषाचार्य केवल महादशा और अंतरदशा तक ही अपनी भविष्यवाणी सीमित रखते हैं। इसका मुख्य कारण है जन्म समय की सटीकता की कमी।
केवल 3 मिनट का अंतर भी सूक्ष्म दशा (Pratyantar Dasha) को बदल सकता है, जिससे परिणामों में भिन्नता आ सकती है। इसलिए जब तक जन्म समय एकदम सटीक न हो, सूक्ष्म दशाओं का प्रयोग सीमित रहता है।
संक्षेप में:-
महादशा – उस पुस्तक के मुख्य अध्यायों के समान होती है, जहां प्रत्येक अध्याय जीवन का एक महत्वपूर्ण और व्यापक विषय दर्शाता है।
अंतरदशा – हर अध्याय के भीतर के अनुभागों की तरह होती है, जो मुख्य विषय के अधिक विशिष्ट पहलुओं पर केंद्रित होती है।
प्रत्यंतर दशा – इन अनुभागों के भीतर के पैराग्राफ के समान होती है, जो विशिष्ट घटनाओं या विषयों को विस्तार से दर्शाती है।
सूक्ष्म दशा – हर पैराग्राफ के भीतर की पंक्तियों जैसी होती है, जो और भी गहराई से जानकारी देती है।
कुछ संभावनाएं ये भी हो सकती हैं की:-
अगर जीवन को एक बड़ी फिल्म के रूप में देखा जाए तो महादशा और अंतरदशा उस फिल्म की मुख्य कहानी और उपकथाओं (Plot और Sub-Plot) की तरह होती हैं, जबकि प्रत्यंतर दशा और सूक्ष्म दशा उन उपकथाओं के दृश्य (Scenes) के समान होती हैं।
प्रत्यंतर दशा और सूक्ष्म दशा विशेष रूप से तब उपयोगी होती हैं जब किसी विशेष घटना के सटीक समय को जानना हो।
ये दशाएं "यह घटना कब घटेगी?" जैसे प्रश्नों का सही और सटीक उत्तर देने में मदद करती हैं।
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लेखक: आनंद सागर पाठक, Astropatri.com अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए hello@astropatri.com पर संपर्क करें।
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