ग्रहण के समय क्यों बंद होते हैं मंदिर के कपाट? जानें इससे जुड़ी प्रमुख बातें
ग्रहण एक खगोलीय घटना ही नहीं बल्कि आंतरिक हलचल का संकेत भी है। यह समय आत्मा को आईना दिखाता है जिससे पुराने दर्द और अधूरी इच्छाएं फिर से जाग उठती हैं। मन अशांत और विचार उलझे हुए रहते हैं इसलिए निर्णय लेने से बचना चाहिए। ग्रहण के दौरान मंदिर के कपाट बंद रहते हैं क्योंकि नकारात्मक ऊर्जा बढ़ जाती है तो आइए इससे जुड़ी प्रमुख बातों को जानते हैं।

दिव्या गौतम, एस्ट्रोपत्री। हर साल जब सूर्य या चंद्रमा पर छाया पड़ती है, तो हम उसे बस एक खगोली घटना मानते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है यह छाया केवल आकाश की नहीं होती, बल्कि हमारे भीतर की भी होती है? ग्रहण वह क्षण होता है जब ब्रह्मांड हमारी आत्मा को एक आईना दिखाता है। यह डराने के लिए नहीं आता यह हमें थमने, सोचने और भीतर की गहराइयों से जुड़ने का न्यौता देता है।
इस लेख में जानिए कि ज्योतिष में ग्रहण को कैसे देखा जाता है, यह आपके जीवन को किस तरह प्रभावित करता है, और इसे साधना और आत्म-परिवर्तन का अवसर कैसे बनाया जा सकता है।
ग्रहण क्या है?
विज्ञान के अनुसार जब सूर्य या चंद्रमा पर कोई छाया पड़ती है, तब उसे ‘ग्रहण’ कहा जाता है, लेकिन ज्योतिष में, यह सिर्फ आकाश में घटने वाली घटना नहीं, बल्कि जीवन में आने वाली आंतरिक हलचल का संकेत भी है।
- सूर्य ग्रहण: जब चंद्रमा, सूर्य को ढक लेता है।
- चंद्र ग्रहण: जब पृथ्वी, चंद्रमा पर अपनी छाया डालती है।
इन दोनों घटनाओं के पीछे होते हैं राहु देव और केतु देव । यही कारण है कि ग्रहणों को छाया ग्रहों का परिणाम माना जाता है।
ग्रहण के समय क्या-क्या बदलता है?
जब आकाश में सूर्य या चंद्रमा ढकते हैं, तो हमें लगता है कि यह बस एक खगोली घटना है। लेकिन सच यह है कि ग्रहण सिर्फ बाहर नहीं होता, वह हमारे भीतर भी होता है।
यह ऐसा समय होता है, जब भीतर की गहराइयाँ हिल उठती हैं जैसे कोई छुपा हुआ सच हमें खुद से मिलने बुला रहा हो।
1. पुराने पन्ने फिर पलटते हैं
ग्रहण का समय हमारे अवचेतन मन (subconscious mind) को सतह पर ले आता है। बचपन की बातें, भूले-बिसरे दर्द, अधूरी इच्छाएं सब कुछ जैसे फिर से जीवित हो उठता है। यह कोई संयोग नहीं, बल्कि ब्रह्मांड का तरीका है आपको आत्म-चिकित्सा की ओर ले जाने का।
2. मन अशांत, संवेदनशील और बेचैन हो जाता है
इस समय भावनाएं बहुत गहराई से सक्रिय हो जाती हैं। छोटी-छोटी बातें भी मन को छूने लगती हैं। यह मानसिक बेचैनी आपको भीतर देखने के लिए प्रेरित करती है आप खुद से सवाल पूछते हैं जिन्हें आप सामान्य दिनों में टालते रहते हैं।
3. विचार उलझते हैं, भविष्य धुंधला लगता है
ग्रहण के दौरान मन अकसर स्पष्ट नहीं होता। निर्णय लेना कठिन लगता है, और भविष्य को लेकर भ्रम पैदा होता है। यह कोई कमजोरी नहीं यह संकेत है कि अभी समय निर्णय का नहीं, निरीक्षण का है।
ग्रहण का कुंडली पर क्या असर होता है?
अगर ग्रहण आपकी जन्मकुंडली के किसी महत्वपूर्ण ग्रह या भाव के पास घटता है, तो इसका असर और गहरा, और कभी-कभी दीर्घकालिक हो सकता है महीनों या वर्षों तक।
उदाहरण के लिए:
अगर सूर्य ग्रहण आपकी कुंडली के दशम भाव (कर्म और प्रतिष्ठा) में हो, तो पेशेवर जीवन में बड़ा मोड़ आ सकता है
अगर चंद्र ग्रहण चतुर्थ भाव (घर, मां, भावनात्मक नींव) में हो, तो घरेलू जीवन में उथल-पुथल या गहन भावनात्मक बदलाव संभव है
यदि यह आपके चंद्रमा, लग्न या दशा में चल रहे ग्रह के पास हो तो आपका पूरा अनुभव अंदर-बाहर बदल सकता है
ग्रहण के समय मंदिर के कपाट क्यों बंद रहते हैं?
मंदिर सिर्फ एक इमारत नहीं होता, वह एक ऊर्जा का केंद्र होता है। जिसमें केवल मूर्तियां नहीं, बल्कि गर्भगृह में भगवान की चेतन ऊर्जा वास है। ग्रहण के समय वातावरण में नकारात्मक ऊर्जा बढ़ जाती है। इस दौरान तमोगुण और रजोगुण हावी हो जाते हैं, जो मंदिर की शुद्ध ऊर्जा को असंतुलित कर सकते हैं।
इसलिए मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं, ताकि भगवान की दिव्यता और वहां की सकारात्मक शक्ति ग्रहण के असर से बची रहे और पवित्रता बनी रहे।
ग्रहण के समय ये काम न करें
- भोजन न बनाएं, न खाएं
- ग्रहण काल में वातावरण में सूक्ष्म अशुद्ध ऊर्जा सक्रिय रहती है।
- इस समय पाचन शक्ति कमजोर होती है, जिससे शरीर और मन दोनों पर असर पड़ता है।
- यदि भोजन पहले से बना हो, तो उसमें तुलसी का पत्ता डालें यह उसकी ऊर्जा को शुद्ध करता है।
- शुभ कार्य और नई शुरुआत से बचें
- विवाह, सगाई, गृहप्रवेश जैसे मांगलिक कार्य टालें।
- बिज़नेस लॉन्च, नई यात्रा या बड़े निर्णय ग्रहण के दौरान न करें।
- यह समय स्पष्टता नहीं, आत्ममंथन के लिए उपयुक्त है।
- गर्भवती महिलाएं विशेष सावधानी रखें
- ग्रहण के दौरान बाहर न निकलें और ग्रहण को सीधे न देखें।
- पेट पर धातु (जैसे नारियल, चाकू, चाबी) रखने की परंपरा थी ऊर्जात्मक सुरक्षा के लिए।
- यह कोई अंधविश्वास नहीं, बल्कि भावी जीवन की रक्षा का सूक्ष्म प्रयास था।
- क्रोध और विवाद से बचें
- ग्रहण काल में मन और भावनाएं असंतुलित हो सकती हैं।
- छोटी बातें भी बड़ी लग सकती हैं इसलिए झगड़ा, नाराज़गी या बहस से दूरी बनाएं।
- जो भाव इस समय उत्पन्न होते हैं, वे गहराई से असर डाल सकते हैं।
नोट- ग्रहण काल में मौन, ध्यान, मंत्र जाप और साधना से मन शांत होता है।
लेखक: दिव्या गौतम, Astropatri.com अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए hello@astropatri.com पर संपर्क करें।
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