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बिहार-ओडिशा प्रांत के PM के गांव अब नहीं आता कोई नेता, अपनी मर्जी से गांव वाले डाल देते हैं वोट

Patna News पटना के नौबतपुर के नक्सल प्रभावित गांव पनहारा के ग्रामीणों को अब भी विकास का इंतजार है। यहां के लोगों को स्‍वास्‍थ्‍य और सिंचाई सुविधाओं की उम्‍मीद है क्‍योंकि यहां की आबादी मूल रूप से कृषि पर ही निर्भर है। 1990 के दौर तक नक्सल प्रभाव के कारण गांव सहमा रहता था लेकिन इसके बाद तस्‍वीर बदली।

By Vyas Chandra Edited By: Arijita Sen Published: Mon, 29 Apr 2024 09:32 AM (IST)Updated: Mon, 29 Apr 2024 09:32 AM (IST)
पनहारा के किसान नवनिर्मित आई आई टी भवन

संतोष कुमार, नौबतपुर। गोलियों की गूंज और स्कूल में पुलिस चौकी वाले नौबतपुर के नक्सल प्रभावित गांव पनहारा के किसान चाहते हैं कि शिक्षा और चिकित्सा सेवा में सुधार हो। 1990 के बाद नक्सली घटनाएं थमी तो स्कूलों में बच्चों की आवाजाही होने लगी है। सड़कें बनी, पावर ग्रिड, आईटीआई की स्थापना हुई, लेकिन स्वास्थ्य, सिंचाई की सुविधा की कमी लोग गिनाते हैं।

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गांव के लोगों को शिक्षा में सुधार की उम्‍मीद

स्वतंत्रता के पहले सन 1912 में बिहार-ओडिशा प्रांत के प्रधानमंत्री मो. यूनुस इसी गांव के रहने वाले थे। यहां की आबादी कृषि पर निर्भर है, लेकिन उनके लिए खेती करना आसान नहीं है, क्योंकि सिंचाई की व्यवस्था ध्वस्त होती चली गई। एक भी सरकारी नलकूप चालू नहीं है।

शिक्षा में सुधार के लिए गांव के लोग उम्मीद लगाए हैं। बुजुर्ग किसान गनौरी प्रसाद कहते हैं कि 1912 में बिहार के प्रधानमंत्री बने मो. यूनुस उनके ही गांव के थे। हालांकि, उनके जैसे व्यक्तित्व के बाद भी गांव का समुचित विकास नहीं हुआ।

गांव में नही है कोई चिकित्‍सकीय सुविधा

सोहन यादव कहते हैं कि यहां कोई नेता नहीं आते। अपनी इच्छा से हम वोट करते हैं। जगेश्वर कुमार को गांव में सामुदायिक भवन की कमी खलती है।

कहते हैं कि शादी हो या अन्य सामूहिक आयोजन, गांव के लोग परेशान होते हैं।  मुखिया रूपक शर्मा बताते हैं कि पंचायती राज से गली-नाली, हर घर नल का जल, आवास योजना पहुंची है। स्वास्थ्य उपकेंद्र नहीं है।

किसान तौफीक आलम उर्फ बबलू कहते हैं कि गांव में सुविधाएं बढ़ी हैं, लेकिन अभी बहुत काम होना बाकी है। विनय कुमार कहते हैं कि शिक्षा की स्थिति बेहद खराब है।

सड़क, बिजली और पुनपुन नदी पर पुल बनाने का काम हुआ है, लेकिन बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं मिलती। स्वास्थ्य की कोई व्यवस्था नहीं है। इलाज के लिए नौबतपुर या मसौढ़ी जाना पड़ता है।

अनहोनी की आशंका में सहमे रहते ग्रामीण

1990 के दौर में नौबतपुर का पनहारा, सेलारपुर, बारा उग्रवाद का दंश झेल रहा था। ग्रामीण अनहोनी की आशंका से सहमे रहते थे। गांव में आने-जाने के लिए सड़क नहीं थी। खेतों और पगडंडियों से लोगों को गुजरना पड़ता था।

बिजली आपूर्ति नहीं थी। खेती का कोई साधन नहीं था। कभी बाढ़ तो कभी सुखाड़ के कारण फसलें बर्बाद होती थीं। अगर बाजार जाना रहता तो एक मात्र सहारा नाव रहता था।

नाव से पुनपुन नदी को पार करके मसौढ़ी या पास में बाजार में जरूरत का सामान खरीदने जाते थे। हालांकि, अब काफी कुछ बदला है।

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