सार्वजनिक रूप से अपराध न होने पर SC/ST एक्ट लागू नहीं: इलाहाबाद हाई कोर्ट
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि अपराध सार्वजनिक रूप से नहीं हुआ है तो एससी/एसटी की धारा लागू नहीं होगी। एससी/एसटी एक्ट की धारा 3(1)(आर) के तहत अपराध तभी माना जाएगा जब कथित कृत्य सार्वजनिक स्थल पर जानबूझकर अपमान करने अथवा डराने-धमकाने की नीयत से किया गया हो। यह टिप्पणी न्यायमूर्ति विक्रम डी चौहान तीन याचिकाओं को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए की है।
विधि संवाददाता, प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि अपराध सार्वजनिक रूप से नहीं हुआ है तो एससी/एसटी की धारा लागू नहीं होगी। एससी/एसटी एक्ट की धारा 3(1)(आर) के तहत अपराध तभी माना जाएगा जब कथित कृत्य सार्वजनिक स्थल पर जानबूझकर अपमान करने अथवा डराने-धमकाने की नीयत से किया गया हो।
यह टिप्पणी न्यायमूर्ति विक्रम डी चौहान ने पिंटू सिंह उर्फ राणा प्रताप सिंह व दो अन्य की याचिका आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए की है। याचीगण के खिलाफ बलिया के नगरा थाने में नवंबर 2017 में आइपीसी की धारा 147, 452, 323, 504, 506 और एससी/एसटी अधिनियम की धारा 3(1)(आर) के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी।
याचिका दाखिल कर धारा हटाने की मांग
आरोप है कि उन्होंने शिकायत करने वाले के घर में घुसकर जातिगत टिप्पणी की और घर के सदस्यों के साथ मारपीट भी की। पुलिस ने आरोपपत्र दाखिल किया है। याचिका दाखिल कर प्राथमिकी रद करने की मांग की गई कि एससी/एसटी की धारा हटाई जाए। इस कानून के तहत अपराध नहीं बनता।
कहना था कि अपराध जिस स्थान पर हुआ वह सार्वजनिक स्थान नहीं है। इसलिए एससी/एसटी की धारा 3 (1) (आर) के तहत कोई अपराध नहीं बन रहा है। साथ ही कृत्य अपमानित करने या अपमानित करने के इरादे से नहीं किया गया है।
सहायक शासकीय अधिवक्ता (एजीए) ने याचियों की अर्जी पर विरोध जताया। कोर्ट ने कहा, सीआरपीसी की धारा 161 के तहत दर्ज बयान और प्राथमिकी के अवलोकन से पता चलता है कि जिस घर में कथित घटना घटी है, वहां कोई भी दूसरा सदस्य नहीं था।