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कितनी बदली जिंदगी: दिन हो या रात, अब महिलाओं को नहीं लगता डर, पहले गैंगवार से लोग थे परेशान और अब...

आज शहर का हृदय गोलघर हो पिकनिक स्पाट रामगढ़ताल का किनारा हो रात 12 बजे भी युवतियों की टोली टहलते या खुशियां मनाते नजर आ जाएगी। यह बदलाव इसलिए नजर आ रहा है कि खलल डालने वालों के मन में कानून का डर बैठ चुका है। यह असर गोरखपुर व बस्ती मंडल के सभी जिलों में दिख रहा है। बदलाव को दिखाती सतीश पांडेय की रिपोर्ट...

By Jagran News Edited By: Vivek Shukla Published: Sat, 11 May 2024 03:00 PM (IST)Updated: Sat, 11 May 2024 03:00 PM (IST)
गोरखपुर-बस्ती मंडल के सभी जिलों में दिख रहा है। सुरक्षा से महिलाओं में आत्मविश्वास बढ़ा तो स्थिति बदल गई।

 मल्लिका, शाहपुर थानाक्षेत्र के रामजानकी नगर मोहल्ले में रहती हैं। वह अक्सर रात 11 से 12 बजे सिविल लाइंस में रहने वाली अपनी मां के यहां से घर लौटती हैं। स्कूटी पर साथ होते हैं उनके दो बच्चे। एक समय था जब शाम के बाद अकेले निकलना नहीं चाहती थीं। यह डर यूं ही नहीं था। वह 2016 की एक घटना का जिक्र करती हैं।

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होली के अगले दिन अपने पति व दोनों बच्चों के साथ गोलघर से रामजानकी नगर लौट रही थीं। रात करीब आठ बजे का वक्त था। मेडिकल रोड पर पासपोर्ट कार्यालय से करीब 100 मीटर पहले बाइक सवार बदमाशों ने उनके कंधे पर टंगा पर्स खींच लिया और आंखों से ओझल हो गए थे। उनका पूरा परिवार गिरते-गिरते बचा था। इस घटना ने अंदर तक झकझोर दिया था।

करीब एक साल बाद सरकार बदली और शोहदों, मनबढ़ों, अराजकतत्वों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई शुरू हई। महिलाओं से जुड़े अपराधों में कड़ी सजा मिलने लगी तो उनका हौसला बढ़ गया और आज बेफिक्र होकर वह अकेले कहीं भी आ जा सकती हैं, फिर चाहे दिन हो या रात। मल्लिका जैसी सैकड़ों कहानियां हैं, जो बदलाव को बयां करती हैं।

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गोरखपुर वही शहर है जिसकी पहचान कभी गोलीबारी वाले शहर के नाम की थी। जहां माफिया की तूती बोलती थी। बदमाशों को रंगदारी देकर भी व्यापारी भयाक्रांत रहते थे तो आम जन की अपनी निजी संपत्ति तक सुरक्षित नहीं थी। माफिया अपराध के बड़े कारनामे में लिप्त थे तो उनके संरक्षण में शोहदे और उच्चकों की ऐसी लंबी कतार तैयार हो गई थी, जिनका खौफ शहर के प्रमुख इलाकों के साथ मोहल्लों व गलियों तक फैला था।

उनमें एक विश्वास था कि वे कोई भी गलत काम करेंगे, उनके संरक्षक उन्हें बचा ले जाएंगे। कई मामलों में तो थानों में केस ही दर्ज नहीं किए जाते थे। महिला अपराध से जुड़े ऐसे मामले भी आते थे, जिनमें उन्हें ही दोषी ठहरा दिया जाता था। स्थिति यह थी कि शहर से बाहर जाने पर लोग स्वयं को गोरखपुर से जुड़ा हुआ बताने में संकोच करते थे। अब स्थिति बिल्कुल बदल चुकी है। माफिया स्वयं पनाह मांगते नजर आते हैं।

प्रदेश में सात साल पहले शुरू हुआ बदलाव

शहर की आपराधिक छवि में सात साल पहले बदलाव आना शुरू हुआ। अपराधियों के खिलाफ पुलिसिंग से जुड़े कानून संगत प्रविधानों को अमल में लाने के साथ ही पहली बार बुलडोजर की इंट्री हुई। मकसद था माफिया या बदमाश की अपराध से की गई कमाई से तैयार आर्थिक साम्राज्य को नेस्तनाबूद कर देना।

अपराधियों को चुन-चुन कर सबक सिखाने के साथ बुलडोजर ने ऐसा काम शुरू किया कि उसकी आर्थिकी के साथ उसका खौफ मिट्टी में मिल जाए। आम जन को कानून की बुलडोजर प्रणाली काफी व्यावहारिक लगने लगी। अब उनके मन में यह विश्वास पैदा हुआ कि उनकी जिंदगी बिना किसी हस्तक्षेप के शांतिपूर्वक चलेगी। कानून का बुलडोजर अब शांति पसंद लोगों को भी खूब भा रहा है।

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आधी रात तक गुलजार रहता है महानगर का नौकायन

रामगढ़ताल का क्षेत्र कभी ऐसा था कि यहां दिन में जाने में भी डर लगता था। शव मिलने, किसी महिला के साथ दुर्व्यवहार की खबरें आम थीं। नया सवेरा के रूप में जब इसका विकास शुरू हुआ तो लोगों को सुरक्षा की चिंता थी। लेकिन सख्त कानून व्यवस्था ने पिकनिक स्पाट के रूप में विकसित इस क्षेत्र की दशा ही बदल दी।

महिलाओं का समूह भी अब रात को यहां आकर मस्ती कर रहा है। बर्थडे मनाया जा रहा है और आसपास के मोहल्लों की महिलाएं खुली हवा में आराम से टहल पा रही हैं। यदि कोई शोहदा या मनबढ़ दुर्व्यवहार करने की कोशिश करता है तो तुरंत पकड़ा जाता है और उसे ऐसी सख्ती सजा मिलती है कि दूसरे भी इससे सबक लेते हैं। तारामंडल क्षेत्र की रहने वाली रितिका कहती हैं कि खाना खाने के बाद वह अपनी मम्मी के साथ टहलती हैं। राप्तीनगर की आकांक्षा कुछ दिन पहले अपने परिवार के साथ नौकायन पर आई थीं। उनका बर्थडे था तो यहीं केक काटकर मस्ती की।

इस वर्ष अब तक हुई कार्रवाई

  • 571 अपराधियों को आर्म्स एक्ट में जेल भेजा।
  • 208 तस्कर मादक पदार्थ के साथ पकड़े गए।
  • 1,418 बदमाशों पर गुंडा एक्ट की कार्रवाई हुई।
  • 161 ग्रुप पर Gengester एक्ट का मुकदमा दर्ज हुआ।
  • 2,57,433 पर यातायात नियम तोड़ने व अतिक्रमण करने पर कार्रवाई हुई।

शैबा को मिला कानून का साथ, ग्रुप पहुंचा हवालात

यह कहानी गोरखनाथ की रहने वाली शैबा अनवर की है। उनके पति पर दुष्कर्म व पाक्सो एक्ट के तहत पांच फर्जी मुकदमे दर्ज कराए गए थे। इसके विरुद्ध शैबा ने कानून की मदद से लड़ाई लड़ी। इस कानूनी लड़ाई में अधिकारियों का भी सहयोग मिला और उनके पति को फंसाने वाला पूरा ग्रुप पकड़ा गया।

सभी फर्जी मुकदमे खारिज हो गए। शैबा ने कहा कि इस समय हालात बदले हैं तभी मेरी सुनवाई हो पाई। मेरी न्याय की लड़ाई थी और सभी ने मेरा साथ दिया। जब अपराधियों की तूती बोलती थी, वह वक्त होता तो न जाने मेरा क्या होता।

महिलाओं में बढ़ा आत्मविश्वास, रात में घर जाने को पुलिस से नहीं मांगी मदद

महिला अगर अकेली है और किसी कारण रात को घर पहुंचने में देरी हो जाती है तो पुलिस घर तक पहुंचाती है। इसके लिए महिला को यूपी पुलिस की 112 सेवा पर फोन कर अपनी समस्या बतानी होती है।

इसके बाद पुलिस मौके पर पहुंचकर मदद करती है। लेकिन सुरक्षा के चलते महिलाओं में आत्मविश्वास बढ़ा है। यही कारण है कि जिले में पिछले सात वर्ष से यह व्यवस्था लागू होने के बावजूद रात को किसी भी महिला ने घर पहुंचाने के लिए मदद नहीं मांगी है।

मजबूत पैरवी से मिल रही सजा

  • 675 मामलों में इस वर्ष न्यायालय ने फैसला सुनाया।
  • गोरखपुर जोन में 1,097 अपराधियों काे सजा मिली।
  • 169 को आजीवन कारावास हुआ।
  • 160 आरोपितों को 10 वर्ष से ऊपर की सजा हुई। एक को मृत्यु दंड दिया गया।
  • 84 अपराधियों को 10 वर्ष से कम सजा मिली। 179 को छह वर्ष से कम सजा हुई।
  • 438 अपराधियों को तीन वर्ष से कम की सजा हुई।

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