कश्मीरी हिंदुओं के बच्चों को आधुनिक और संस्कारित शिक्षा से जोड़ने की पहल, वृंदा को स्कूलों की हर तरफ हो रही तारीफ
राजेंद्र नगर निवासी व एमबीए और कानून की शिक्षा ग्रहण करने वाली वृंदा ने ये दोनों स्कूल खुद के पैसों से स्थापित किए हैं। साथ ही स्कूल में बच्चों को भेजने के मद्देनजर अभिभावकों को प्रेरित करने के लिए न्यूनतम फीस रखी गई है वहीं गरीब छात्रों के लिए शिक्षा निःशुल्क है। वृंदा ने विस्थापित हिंदुओं के बच्चों के लिए उधमपुर और रामनगर में वर्ष 2020 में स्कूल स्थापित किए।
नेमिष हेमंत, नई दिल्ली। वर्ष 1947 में गुलाम कश्मीर से विस्थापन का दौर हो या वर्ष 1989 के बाद पाक परस्त आतंकवाद के चलते हजारों हिंदुओं का अपने देश के विभिन्न राज्यों में कश्मीर से पलायन।
जम्मू में अभी भी विस्थापित बस्तियों में हजारों हिंदू शरण पाए हुए हैं, जिनमें से कई परिवारों की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है।
ऐसे में जब जम्मू-कश्मीर को देश से जोड़ने में बाधा बन रहे अनुच्छेद 370 व 35 -ए को माेदी सरकार ने हटाने का ऐतिहासिक निर्णय लिया तब ऐसे विस्थापितों के बीच दिल्ली की वृंदा खन्ना जैसे युवाओं को भी कुछ करने का रास्ता आखिरकार प्रशस्त हुआ है।
2020 में उधमपुर और रामनगर में स्थापित किए स्कूल
समाज में समृद्धि का रास्ता शिक्षा से जाता है। सो, वृंदा ने जम्मू के उधमपुर और रामनगर में वर्ष 2020 में ऐसे दो स्कूल स्थापित किए, जिसमें विस्थापित हिंदुओं के साथ ही गरीब घरों के बच्चों को आधुनिक और संस्कारित शिक्षा दी जा रही है। मौजूदा समय में इन दोनों स्कूलों में एक हजार से अधिक छात्र शिक्षा पा रहे हैं।
राजेंद्र नगर निवासी व एमबीए और कानून की शिक्षा ग्रहण करने वाली वृंदा ने ये दोनों स्कूल खुद के पैसों से स्थापित किए हैं।
साथ ही स्कूल में बच्चों को भेजने के मद्देनजर अभिभावकों को प्रेरित करने के लिए न्यूनतम फीस रखी गई है, वहीं गरीब छात्रों के लिए शिक्षा निश्शुल्क है।
स्कूल के माध्यम से इस अभिनव प्रयोग को खुद स्कूल भ्रमण कर जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा व केंद्रीय मंत्री डा. जीतेंद्र सिंह ने सराहा है। क्योंकि, इन स्कूलों में जरूरतमंद के बच्चों को विज्ञान, खेल के साथ संस्कार और संस्कृति की भी शिक्षा दी जा रही है।
बच्चों के साथ वृंदा खन्ना
चार वर्षों में अब तक इन दोनों स्कूलों से 1,500 से अधिक बच्चे लाभांवित भी हुए हैं। उधमपुर का स्कूल 10वीं तक तथा राम नगर का आठवीं तक है। उधमपुर के स्कूल में कोई 1700 तो राम नगर के स्कूल में 300 बच्चे वर्तमान में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं।
जम्मू से उधमपुर डेढ़ घंटे तो राम नगर ढाई घंटे की दूरी पर है। उधमपुर के स्कूल अटल इनोवेशन लैब भी है। साथ ही आधुनिक शिक्षा के लिए दिल्ली से भी समय-समय पर अध्यापक जाते हैं।
वृंदा बताती हैं कि जम्मू के स्कूलों में पढ़ने वाले 30 से 40 प्रतिशत बच्चे विस्थापित हिंदू परिवारों से हैं। साथ ही कई स्थानीय मुस्लिम परिवार से भी हैं, जो काफी गरीब हैं, लेकिन उनमें बेहतर शिक्षा की कामना है। उन्हें एनसीसी, फुटबाल समेत विज्ञान की राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं से जोड़ा जा रहा है। प्रत्येक दिन का आरंभ सरस्वती पूजा से होती है। जबकि, योग की कक्षाएं लगती हैं।
दिल्ली से जम्मू का सफर नहीं था आसान
दिल्ली से जम्मू तक का सफर वृंदा के लिए आसान नहीं था। वह बताती है कि करीब 10 वर्ष पहले उन्होंने समाज में बेहतर शिक्षा का उजियारा फैलाने के लिए हरियाणा के पानीपत के सेवा बस्ती में एक स्कूल शुरू किया था। वह अभी भी चल रहा है। इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर की यात्रा में वहां के लोगों तथा विस्थापित परिवारों की स्थिति को देखा।
साथ ही सेना पर पत्थर फेंकते किशोर और युवाओं की वो तस्वीरें भी देखी, जो हर किसी को विचलित और चिंतित करती थी। स्थानीय लोगों ने भी उनसे आग्रह किया, तब वहां भी कुछ करने का बीड़ा उठाया। उधमपुर का स्कूल अब 10 एकड़ में है, जमीन खरीदने में अनुच्छेद 370 व 35 ए का हटना सहायक बना।
जब वहां स्कूल शुरू किया तो रास्ता भी नहीं था। यहीं हाल राम नगर का भी था। जहां अधिकांश आबादी गरीब है। उनके इस प्रयासों के बाद अब समाज भी मदद को आगे आ रहा है।
खुद भी विस्थापित परिवार से
वृंदा खुद विस्थापित परिवार से हैं। बंटवारे के वक्त उनका परिवार अब के पाकिस्तान से आया था। दादा खैराती लाल खन्ना ने पाकिस्तान से दिल्ली आकर अपने परिश्रम से खुद को स्थापित किया। उनके पुत्र कपिल खन्ना समाज सेवा व उद्योग के क्षेत्र में हैं। वहीं, संस्कार बेटी वृंदा को भी मिले हैं। न सिर्फ शिक्षा के क्षेत्र में बल्कि 10 वर्ष पूर्व पाकिस्तान से जान बचाकर दिल्ली में आकर शरणार्थी बस्तियों में रह रहे हिंदू परिवारों के बीच भी उनका सहयोग का कार्य जारी है।
देश के असली हीरो को करती हैं सम्मानित
परदादा संत राम खन्ना व परदादी ईश्वरी देवी के नाम पर शुरू संत ईश्वर सम्मान उन देश के असली हीरो तथा संस्थाओं को दिया जाता है, जो बिना बिना किसी चमक दमक के समाज में बदलाव की राह बना रहे हैं। खास बात कि इस सम्मान के लिए आवेदन मंगाए नहीं जाते, बल्कि देशभर में उनकी तलाश की जाती है और उन्हें दिल्ली बुलाकर पुरस्कृत किया जाता है।
अब तक 118 से अधिक ऐसे साधकों को सम्मानित किया जा चुका है।। संत ईश्वर फाउंडेशन की संचालक वृंदा खन्ना बताती है कि पुरस्कृत लोगों की सूची को केंद्र सरकार को भी भेजा जाता है। संत ईश्वर सम्मान से सम्मानित कई विभूतियों को बाद में पद्म पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है।