फरीदाबाद में मतदान जारी, मोदी के मंत्री कृष्णपाल गुर्जर का भविष्य EVM में होगा कैद; कांग्रेस के महेंद्र प्रताप सिंह से है कड़ा मुकाबला
कृष्णपाल गुर्जर लगातार तीसरी बार इस सीट से भाजपा उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतरे हैं। उनकी सीधी टक्कर कांग्रेस प्रत्याशी महेंद्र प्रताप सिंह से है जो पूर्व में प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे हैं। इन दोनों दलों के अलावा बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी किशन ठाकुर इनेलो के सुनील तेवतिया व जजपा के नलिन हुड्डा सहित अन्य 19 प्रत्याशी भी यानी कुल 24 प्रत्याशी मैदान में हैं।
सुशील भाटिया, फरीदाबाद। लोकसभा चुनाव क्षेत्र के तहत फरीदाबाद संसदीय क्षेत्र में शनिवार सुबह सात बजे से मतदान शुरू हो चुका है। इस सीट पर केंद्रीय भारी उद्योग एवं ऊर्जा राज्य मंत्री कृष्णपाल गुर्जर का भविष्य दांव पर लगा है।
कृष्णपाल गुर्जर लगातार तीसरी बार इस सीट से भाजपा उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतरे हैं। उनकी सीधी टक्कर कांग्रेस प्रत्याशी महेंद्र प्रताप सिंह से है, जो पूर्व में प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे हैं।
पांच बार विधानसभा का चुनाव जीत चुके महेंद्र प्रताप सिंह पहली बार लोकसभा के चुनावी रण में उतरे हैं। फरीदाबाद संसदीय क्षेत्र में 2436637 मतदाता हैं। इनमें 1324705 पुरुष और 11 11 813 महिला मतदाता है, इसके अलावा 119 थर्ड जेंडर वोटर हैं। इनके लिए 2274 मतदान केंद्र बनाए गए हैं।
कृष्णपाल गुर्जर और महेंद्र प्रताप सिंह के बीच रोचक मुकाबला
भाजपा प्रत्याशी कृष्णपाल गुर्जर और कांग्रेस प्रत्याशी महेंद्र प्रताप सिंह के बीच रोमांचक मुकाबला दिख रहा है। इन दोनों दलों के अलावा बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी किशन ठाकुर, इनेलो के सुनील तेवतिया व जजपा के नलिन हुड्डा सहित अन्य 19 प्रत्याशी भी यानी कुल 24 प्रत्याशी मैदान में हैं।
खैर हम बात कर रहे हैं हाट सीट बन चुकी अपने संसदीय क्षेत्र के चुनावी रण में मुख्य प्रत्याशी सत्तारूढ़ भाजपा के कृष्णपाल गुर्जर और प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस के प्रत्याशी महेंद्र प्रताप सिंह के बीच हो रही लड़ाई की।
भाजपा ने दिया था 10 लाख पार वोटों का नारा
शुरू में जब मार्च माह के मध्य में पीएम मोदी की सरकार में केंद्रीय भारी उद्योग एवं ऊर्जा राज्य मंत्री कृष्णपाल गुर्जर को जब टिकट मिला ताे उस समय उनके सेक्टर-28 स्थित कार्यालय में समर्थको का हुजूम देख कर भाजपा कार्यकर्ताओं को लग रहा था कि यह लड़ाई एकतरफा होने वाली है। तब भाजपा ने दस लाख पार यानी 400 सीट पार की तर्ज पर 10 लाख पार वोटों का नारा दिया था।
ऐसा इसलिए क्योंकि 2019 के चुनाव में मौजूदा सांसद कृष्णपाल ने 913222 वोट लिए थे। अब यह लक्ष्य दस लाख का तय किया गया था। खैर जब 25 अप्रैल की रात को कांग्रेस ने नौ बार विधानसभा चुनाव लड़े और पांच बार चुनाव जीत कर विधायक बन पूर्व में चौधरी भजन लाल व फिर भूपेंद्र सिंह हुड्डा की प्रदेश सरकार में कैबिननेट मंत्री रहने वाले महेंद्र प्रताप सिंह को टिकट थमाई और वो अगले दिन से ही मैदान में उतर आए, तो उसके बाद चुनावी समीकरण बदलते चले गए।
कांग्रेसियों को एकजुट कर बड़ी चुनौती से पार पाया
महेंद्र प्रताप सिंह के समक्ष उस समय सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि उसे गुटों में बिखरी हुई अपनी पार्टी कांग्रेस के नेताओं को एकजुट कर एक मंच पर लाना था।
इसके लिए उनके स्तर पर प्रयास शुरू हुए और नामांकन पत्र जमा कराने वाले दिन सेक्टर-12 के मैदान में प्रदेशाध्यक्ष उदयभान व प्रदेश प्रभारी दीपक बाबरिया की उपस्थिति में हुई जनसभा में जब पूर्व प्रदेशाध्यक्ष कुमारी सैलजा व पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा गुट के नेता एक मंच पर नजर आए तो इससे महेंद्र प्रताप एक बड़ी चुनौती से पार पाते नजर आए।
कृष्णपाल गुर्जर ने मोदी के चेहरे को आगे रखकर लड़ा चुनाव
वर्ष 2014 में पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ने वाले भाजपा के कृष्णपाल गुर्जर ने तब 652516 वोट लिए थे और कांग्रेस प्रत्याशी अवतार सिंह भड़ाना को 466873 वोटों के अंतर से हराया था। विगत चुनाव यानी 2019 में कृष्णपाल गुर्जर ने 913222 वोट लेकर अवतार भड़ाना को ही 638239 वोटों के अंतर से हराया था।
तब अवतार सिंह भड़ाना पूरे संसदीय क्षेत्र से मात्र 274983 वोट ही ले पाए थे। इस बार भी जिला भाजपा ने दस लाख पार का नारा देते हुए चुनाव लड़ा, साथ ही मतदाताओं के बच यह कहते हुए गए हैं कि मोदी नहीं तो कौन।
शहरी क्षेत्र में मजबूत है भाजपा, कांग्रेस का भी जोर
कृष्णपाल गुर्जर पिछले चुनाव में फरीदाबाद, तिगांव, बड़खल, बल्लभगढ़, एनआइटी, पृथला, पलवल व होडल से भारी लीड लेकर निकले थे, जबकि हथीन में कांग्रेस प्रत्याशी से अच्छा मुकाबला हुआ था, पर बढ़त तब भी भाजपा ने ली थी।
इस बार गांवों में गुर्जर और जाट मतदाताओं के बीच से बराबर की आवाज निकल कर आ रही है, पर शहरी क्षेत्र में भाजपा हमेशा की तरह मजबूत नजर आई। कांग्रेस के पक्ष में यह नजर आया कि शहरी क्षेत्र में भी उनकी उपस्थिति इस बार ठीक दिख रही है।
जिला स्तर पर संगठन व बूथ प्रबंधन की बदौलत भाजपा मजबूत
भाजपा के पक्ष में एक बड़ी बात यह जा रही है कि उसका जिला स्तर पर मजबूत संगठन है। साथ ही साथ पन्ना प्रमुख, बूथ प्रमुख व शक्ति केंद्र प्रमुखों के साथ उनकी नियमित बैठकों से उन्होंने कार्यकर्ताओं को चुनाव के लिए हमेशा तैयार किए रखा।
यही कार्यकर्ता घर-घर जाकर मतदाताओं से संपर्क साध रहे हैं और शनिवार को साइलेंट वोटर्स को घरों से निकाल कर मतदान केंद्र तक लेकर आने का काम करेंगे और अपने पक्ष में वोट डालने की अपील भी करेंगे। इसके साथ-साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पदाधिकारियों की अलग से बैठकें हुई और मतदाताओं तक उन्होंने संदेश पहुंचाया है। यह भाजपा का मजबूत पक्ष है।
संगठन न होना कांग्रेस का नकरात्मक पक्ष
दूसरी ओर कांग्रेस का पिछले दस साल से जिले में कोई संगठन नहीं है। संगठन न होने का ही परिणाम था कि पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी का विभिन्न बूथों के बाहर मेज-कुर्सी पर बैठ कर बस्ता संभालने वाला भी कोई नहीं था।
मतदाताओं के बीच इससे नकारात्मक संदेश गया था और कई मतदाता भाजपा की ओर शिफ्ट हो गए थे। हालांकि इस बार कांग्रेस ने अपनी गुटबाजी दूर कर कांग्रेस कार्यकर्ताओं को संजोया है और उचित व्यवस्था की बात कर रही है, पर मतदान के दिन यह देखने वाली बात होगी कि बूथ कार्यकर्ताओं की उपस्थिति कितनी है।
यही फर्क दोनों प्रत्याशियों के बीच जीत और हार का कारण बनेगा। यह भी देखना रोचक होगा कि बसपा, जजपा व इनेलो के मतदाता किन-किन क्षेत्रों में कितना प्रभाव छोड़ने में सफल रहे और इसका लाभ किसको मिलता है।