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नाबालिगों को 'गुड टच' और 'बैड टच' सिखाना पर्याप्त नहीं, उन्हें 'वर्चुअल टच' को लेकर भी करें जागरूक: दिल्ली HC

दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि आज के डिजिटल दौर में नाबालिगों को वर्चुअल टच के बारे में भी जागरूक किया जाना चाहिए। उन्हें सिर्फ गुड टच और बैड टच के बारे में पढ़ाना पर्याप्त नहीं है। कोर्ट ने कहा कि नाबालिगों को डिजिटल दुनिया में कैसा व्यवहार करना चाहिए इसे लेकर माता-पिता और शिक्षक उन्हें जागरूक करें। यह उनकी जिम्मेदारी है।

By Agency Edited By: Abhishek Tiwari Published: Tue, 07 May 2024 12:27 PM (IST)Updated: Tue, 07 May 2024 12:27 PM (IST)
नाबालिगों को 'गुड टच', 'बैड टच' सिखाना पर्याप्त नहीं, उन्हें 'वर्चुअल टच' को लेकर भी करें जागरूक: HC

पीटीआई, नई दिल्ली। दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि आज के डिजिटल दौर में नाबालिगों को 'वर्चुअल टच' के बारे में भी जागरूक किया जाना चाहिए। उन्हें सिर्फ 'गुड टच' और 'बैड टच' के बारे में पढ़ाना पर्याप्त नहीं है। इसमें वर्चुअल टच को लेकर उन्हें उचित ऑनलाइन व्यवहार सिखाना, हिंसक व्यवहार के चेतावनी संकेतों को पहचानना और गोपनीयता सेटिंग्स और ऑनलाइन सीमाओं के महत्व को समझना शामिल है।

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दिल्ली हाई कोर्ट ने यह टिप्पणी एक महिला (कमलेश देवी) की जमानत याचिका को खारिज करते हुए की। महिला पर एक नाबालिग लड़की का अपहरण करने और उसे देह व्यापार में धकेलने के बाद उसके यौन उत्पीड़न में अपने बेटे की मदद करने का आरोप है।

कोर्ट ने कहा कि नाबालिगों को डिजिटल दुनिया में कैसा व्यवहार करना चाहिए, इसे लेकर माता-पिता और शिक्षक उन्हें जागरूक करें। साथ ही स्कूलों और कॉलेजों, दिल्ली राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण और दिल्ली न्यायिक अकादमी जैसे संस्थानों को इस मामले पर कार्यक्रम, कार्यशालाएं और सम्मेलन आयोजित करने के लिए मैसेज भेजना भी समय की मांग है।

क्या है मामला?

एक 16 वर्षीय लड़की का कथित तौर पर राजीव ने अपहरण कर लिया था, जिसने सोशल मीडिया पर उससे दोस्ती की और जब वह उससे मिलने आई तो उसने उसका अपहरण कर लिया। इसके बाद लड़की को मध्य प्रदेश ले जाया गया और कई दिनों तक वहीं रखा गया। कथित तौर पर आरोपी और अन्य लोगों द्वारा उसका यौन उत्पीड़न किया गया।

कोर्ट ने कहा कि नाबालिगों को डिजिटल दुनिया में कैसा व्यवहार करना चाहिए, इसे लेकर माता-पिता और शिक्षक उन्हें जागरूक करें। साथ ही स्कूलों और कॉलेजों, दिल्ली राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण और दिल्ली न्यायिक अकादमी जैसे संस्थानों को इस मामले पर कार्यक्रम, कार्यशालाएं और सम्मेलन आयोजित करने के लिए मैसेज भेजना भी समय की मांग है।


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