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लाइसेंस खत्म, डॉक्टर्स की लापरवाही और अग्निकांड में सात मासूमों की मौत... बेबी केयर अस्पताल हादसे की Inside Story

Delhi Baby Car Hospital Fire विवेक विहार के बेबी केयर न्यू बोर्न अस्पताल में अग्निकांड हादसे से पूरी दिल्ली को झकझोर कर दिया है। पुलिस को जांच में अस्पताल और डॉक्टरों की लापरवाही भी सामने आई है। अस्पताल में आग लगने से छह नवजातों की जलकर मौत हो गई जबकि एक बच्चा आग लगने से दो घंटे पहले बीमारी से मर गया था।

By Jagran News Edited By: Geetarjun Published: Sun, 26 May 2024 11:07 PM (IST)Updated: Sun, 26 May 2024 11:07 PM (IST)
विवेक विहार में बेबी केयर अस्पताल आग लगने के बाद।

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। विवेक विहार के बेबी केयर न्यू बोर्न अस्पताल में अग्निकांड हादसे से पूरी दिल्ली को झकझोर कर दिया है। पुलिस को जांच में अस्पताल और डॉक्टर्स की लापरवाही भी सामने आई है। अस्पताल में आग लगने से छह नवजातों की जलकर मौत हो गई, जबकि एक बच्चा आग लगने से दो घंटे पहले बीमारी से मर गया था।

आग लगते ही अस्पताल कर्मचारी हुए फरार

हादसे के वक्त अस्पताल में दो डॉक्टर्स, छह नर्स और एक सुरक्षाकर्मी मौजूद था। जो नवजातों की परवाह किए बिना अपनी जान बचाकर भाग खड़े हुए। हादसे के 12 घंटे के बाद पुलिस ने अस्पताल संचालक डॉ. नवीन खीची व अस्पताल के डॉ. आकाश को गिरफ्तार कर लिया।

जान से खिलवाड़, सिर्फ पांच बेड की थी अनुमति

विवेक विहार के बेबी केयर न्यू बोर्न अस्पताल में वर्षों से नवजात शिशुओं के जीवन से खिलवाड़ हो रहा था। दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य विभाग की नर्सिंग होम सेल से मिले साक्ष्य के अनुसार, 31 मार्च में पंजीकरण अवधि खत्म होने से पहले इस अस्पताल को कागजों में मात्र पांच बेड की अनुमति थी। लेकिन हकीकत में नियमों को ताक पर रख कर इसमें नवजात शिशुओं के लिए 16 नियोनेटल बेड लगाए हुए थे।

बीएएमएस डॉक्टर कर रहे थे इलाज

मानक के अनुसार डॉक्टर भी नहीं था। बीएएमएस डॉक्टर इसमें बच्चों की देखरेख करता था। नियम के अनुसार, बीएएमएस डॉक्टर बच्चों का इलाज नहीं कर सकते, इसके लिए एमडी डॉक्टर चाहिए होता है। इन कमियों को जांचने व कार्रवाई करने की जिम्मेदारी दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय की है, जिसकी मुखिया इसकी निदेशक डॉ. वंदना बग्गा हैं। इनसे घटना व कार्रवाई के संबंध में फोन करके व वॉट्सएप के जरिये पक्ष मांगा गया, लेकिन इन्होंने कोई जवाब नहीं दिया।

एक बेड के आसपास पर्याप्त खाली जगह नहीं

नियमानुसार एक नियोनेटल बेड के लिए 60 वर्ग फीट जगह होना जरूरी है। ये बेड छोटा होता है, उसके आसानी से आसपास चारों ओर आवाजाही के लिए इतनी जगह का प्रविधान नियम में किया गया है। लेकिन इस अस्पताल में 10 से 15 वर्ग फीट जगह में ही एक-दूसरे से सटाकर बेड रखते हुए थे।

अस्पताल में थी ये खामियां

सीढ़ियां करीब दो फीट चौड़ी और घुमावदार थी, जिससे आपात स्थिति में भाग पाना मुश्किल है। भूतल पर संकरी गैलरी है, जिसकी वजह से दिक्कत अधिक हुई। इस अस्पताल में प्रवेश और निकासी एक जगह से थी, जबकि नियमानुसार अलग-अलग होनी चाहिए।

पीछे की गली की ओर एक कमरे के दरवाजे को यह कागजों में निकासी का रास्ता बताते रहे, लेकिन यह हमेशा बंद रहता था। इस कमरे में फोटोथेरेपी और इंक्यूबेटर रखे थे। यही वजह रही कि इस दरवाजे को खोला नहीं जा सका। इस अस्पताल में फाल्स सीलिंग लगी थी, जो उखड़ कर नीचे आ गई।

न ही एनओसी और न ही थे आग से सुरक्षा के इंतजाम

इस अस्पताल के पास दमकल विभाग की एनओसी नहीं थी। फायर अलार्म और अग्निशमन यंत्र भी नहीं लगे थे। इसे जांचकर कार्रवाई करने का जिम्मा दमकल विभाग का है, जिसके प्रमुख डायरेक्टर अतुल गर्ग हैं। इस घटना के मामले में कार्रवाई को लेकर गर्ग का कहना है कि अस्पताल के पास एनओसी थी अथवा नहीं, इस बारे में उन्हें अभी पुख्ता जानकारी नहीं है।

इस संबंध में दिल्ली पुलिस के विशेष आयुक्त कानून एवं व्यवस्था रवींद्र सिंह यादव का कहना है कि दमकल विभाग से एनओसी के बारे में कोई जानकारी नहीं मिलने पर पुलिस ने जब अस्पताल के मालिक डॉ. नवीन खीची से एनओसी के बारे में पूछताछ की तब उसने बताया कि नियम के अनुसार, उसके अस्पताल को फायर एनओसी की जरूरत नहीं थी, इसलिए नहीं ली थी।

बड़ी बिल्डिंग में फायर एनओसी की जरूरत होती है। छोटी बिल्डिंग में फायर एनओसी की जरूरत नहीं होती है। इस तरह की जानकारी मिलने के बाद पुलिस फायर एनओसी के लिए क्या नियम होते हैं इस बारे में पता लगा रही है।

सिलेंडर फटने से हादसे की आशंका

सिलेंडर फटने से हुआ हादसा अस्पताल की पहली मंजिल पर नवजात भर्ती होते थे और भू-तल पर ऑक्सीजन सिलेंडर रखे जाते थे। सूत्रों का कहना है कि ऑक्सीजन गैस रीफिलिंग के दौरान सिलेंडर फटा है, जिससे अस्पताल में आग लगी है। आग लगने पर एक के बाद एक 14 सिलेंडर फटते चले गए और आग ने विकराल रूप ले लिया। सिलेंडर के फटने से हुए धमाकों से पूरा क्षेत्र गूंज उठा। आग की लपटों ने पड़ोसियों के घरों को अपनी चपेट में ले लिया। इसमें पड़ोस में रहने वाले ललित और धनेजा नाम के व्यक्तियों के घर भी जल गए।

कई धाराओं में मुकदमा दर्ज

विवेक विहार थाना ने संचालक के खिलाफ गैर इरादतन हत्या, किसी व्यक्ति की जान को नुकसान पहुंचाना, लापरवाही से मौत समेत कई धाराओं में प्राथमिकी की है। हालांकि, आग लगने के सही कारणों को पता नहीं चल सका है।

निगम के दावे को खारिज कर रहे लोग

नगर निगम के रिकार्ड के अनुसार, वर्ष 2015 से यह अस्पताल विवेक विहार की सी-54 बिल्डिंग में भूतल और प्रथम तल पर चल रहा था। यह बिल्डिंग वर्ष 2001-02 में बनाई गई थी, इसका नक्शा स्वीकृत है। निगम की ओर से बताया गया कि इस बिल्डिंग में अस्पताल या नर्सिंग होम चलाना मान्य है, क्योंकि इसका भू-उपयोग मिश्रित है। लेकिन आसपास के लोग बता रहे हैं कि सिर्फ चार साल से यह अस्पताल चला रहा था।


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