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Dabholkar Murder Case: कोर्ट ने जांच एजेंसियों के काम पर उठाए सवाल, मास्‍टरमाइंड तक न पहुंच पाने पर कही ये बातें

यूएपीए मामलों की विशेष अदालत ने 2013 की हत्या के मामले में हमलावरों सचिन अंदुरे और शरद कालस्कर को दोषी ठहराया और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई लेकिन कथित साजिशकर्ताओं डॉ वीरेंद्रसिंह तावड़े संजीव पुनालेकर और विक्रम भावे को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। ट्रायल कोर्ट ने कहा कि जांच एजेंसियां तर्कवादी डॉ. नरेंद्र दाभोलकर की हत्या के पीछे के मास्टरमाइंड्स को बेनकाब नहीं कर सकीं।

By Agency Edited By: Prateek Jain Published: Sat, 11 May 2024 11:07 AM (IST)Updated: Sat, 11 May 2024 11:07 AM (IST)
Pune News: तर्कवादी डॉ. नरेंद्र दाभोलकर की फाइल फोटो।

पीटीआई, पुणे। यूएपीए मामलों की विशेष अदालत ने 2013 की हत्या के मामले में हमलावरों सचिन अंदुरे और शरद कालस्कर को दोषी ठहराया और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई, लेकिन कथित साजिशकर्ताओं डॉ वीरेंद्रसिंह तावड़े, संजीव पुनालेकर और विक्रम भावे को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया।

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शुक्रवार को अपने फैसले में ट्रायल कोर्ट ने कहा कि जांच एजेंसियां तर्कवादी डॉ. नरेंद्र दाभोलकर की हत्या के पीछे के मास्टरमाइंड्स को बेनकाब नहीं कर सकीं और उन्हें आत्मनिरीक्षण करना चाहिए कि क्या यह महज विफलता थी या किसी सत्ता में बैठे व्यक्ति के प्रभाव के कारण जानबूझकर की गई निष्क्रियता थी।

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश पीपी जाधव ने फैसले में कहा कि जिन दो हमलावरों को दोषी ठहराया गया, वे मास्टरमाइंड नहीं हैं।

अपने आदेश में न्यायाधीश जाधव ने कहा कि तावड़े के खिलाफ हत्या के मकसद के बारे में सबूत थे और अपराध में शामिल होने के संबंध में पुनालेकर और भावे के खिलाफ उचित संदेह था, लेकिन अभियोजन मकसद और संदेह को सबूत में बदलकर इसे स्थापित करने में विफल रहा। अदालत ने कहा,

जहां तक एंडुरे और कालस्कर का सवाल है, यह बिना किसी संदेह के साबित हो गया है कि उन्होंने 20 अगस्त 2013 को पुणे शहर में दाभोलकर की गोली मारकर हत्या कर दी थी।

आदेश में कहा गया है कि अभियोजन पक्ष किसी भी आरोपी के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम की धारा 16 (आतंकवादी कृत्य के लिए सजा) और आईपीसी की धारा 120 बी (आपराधिक साजिश) के तहत अपराध साबित करने में विफल रहा।

अदालत ने कहा कि वैचारिक मतभेदों को छोड़कर, आंदुरे और कालास्कर की डॉ. दाभोलकर के साथ कोई व्यक्तिगत दुश्मनी या प्रतिद्वंद्विता नहीं थी। आदेश में कहा गया,

हत्या बहुत अच्छी तरह से तैयार योजना के साथ की गई है, जिसे अंदुरे और कलास्कर ने अंजाम दिया था। दोनों दोषियों की आर्थिक और सामाजिक स्थिति को देखते हुए ये मास्टरमाइंड नहीं हैं... हत्या का मास्टरमाइंड कोई और है। पुणे पुलिस और सीबीआई उन मास्टरमाइंडों का पता लगाने में विफल रही है। उन्हें आत्मनिरीक्षण करना होगा कि क्या यह उनकी विफलता है या सत्ता में किसी व्यक्ति के प्रभाव के कारण उनकी ओर से जानबूझकर निष्क्रियता है।

फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए मारे गए तर्कवादी की संतान हामिद और मुक्ता दाभोलकर ने कहा कि यह 11 साल बाद आया है। दाभोलकर परिवार ने अंधश्रद्धा निर्माण समिति (नरेंद्र दाभोलकर द्वारा स्थापित अंधविश्वास उन्मूलन समिति) द्वारा जारी एक बयान में कहा कि‍ फैसले ने भारतीय न्यायपालिका में उनके विश्वास की पुष्टि की है।

बयान में कहा गया है कि समिति वीरेंद्रसिंह तावड़े, संजीव पुनालेकर और विक्रम भावे को बरी करने के फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती देगी।

सनातन संस्था, हिंदू दक्षिणपंथी संगठन से जुड़े कुछ आरोपी बरी होने के बाद अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि उन्‍हें 'भगवा आतंक' के समर्थक के रूप में चित्रित करने की साजिश विफल हो गई है। साथ ही कहा कि दोषी अंदुरे और कलास्कर उनके संगठन से नहीं जुड़े हैं।


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