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Vat Savitri 2024: ...तो इसलिए महिलाएं रखती हैं वट सावित्री का व्रत, बड़ी रोचक है '14 पंखों' वाली परंपरा

Vat Savitri 2024 हिंदू धर्म में वट सावित्री पर्व का विशेष महत्व है। आचार्य सह पंडित दिनकर झा ने बताया कि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन पतिव्रता सावित्री अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से वापस लेकर आ गई थी। इस दिन सुहागिन महिलाएं पति की लंबी आयु एवं अच्छे स्वास्थ्य के लिए काफी श्रद्धा आस्था एवं विश्वास के साथ व्रत रखती हैं।

By Prashant Alok Edited By: Rajat Mourya Published: Fri, 24 May 2024 04:48 PM (IST)Updated: Fri, 24 May 2024 04:48 PM (IST)
कब मनाया जाएगा वट सावित्री का पर्व, हिंदू धर्म में क्या है इसकी मान्यता?

संवाद सूत्र, पुरैनी (मधेपुरा)। Vat Savitri Date 2024 ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को पति की दीर्घायु की कामना के लिए सुहागिन महिलाओं द्वारा वट सावित्री का पर्व इस बार आगामी छह जून को मनाया जाएगा। वट सावित्री का व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए काफी महत्वपूर्ण होता है। मान्यता है कि इससे उनका सुहाग अचल होता है। इसके एक दिन पूर्व यानी पांच जून को हर सुहागिन महिला उपवास कर विभिन्न प्रकार के फल, पकवान आदि से डलिया भरकर अगले दिन वटवृक्ष की पूजा करेंगी।

मालूम हो कि इस पर्व से सत्यवान एवं सावित्री की कथा का गहरा संबंध है। सावित्री ने वट वृक्ष की पूजा एवं व्रत करके ही अपने सतीत्व और तप के बल से अपने मृत पति सत्यवान को यमराज से जीतकर पुनः जीवित करा लिया था। यही कारण है कि यह व्रत वट सावित्री पर्व के नाम से जाना जाता है।

आचार्य सह पंडित दिनकर झा ने बताया कि वट वृक्ष के मूल में ब्रह्मा, मध्य में जनार्दन एवं अग्र भाग में भगवान शिव निवास करते हैं। उन्होंने बताया कि इस बार अमावस्या तिथि पांच जून बुधवार को शाम 7:54 से शुरू होकर अगले दिन यानी छह जून गुरुवार को शाम 6:07 पर समाप्त होगी। ऐसे में वट सावित्री अमावस्या व्रत छह जून को किया जाएगा।

सुहागिन महिलाएं करती हैं वट वृक्ष की पूजा (Vat Savitri Puja Vidhi)

वट सावित्री व्रत के मौके पर महिलाएं उपवास कर पांच तरह के फल व पकवान आदि से डलिया भरती हैं। पर्व के दिन समूह में सुहागिन महिलाओं द्वारा वट वृक्ष के समक्ष डलिया खोलकर बांस के पंखे पर फल एवं पकवान आदि चढ़ाकर सावित्री एवं सत्यवान की कथा कहती और सुनती हैं। इस दौरान सुहागिन महिलाएं वट वृक्ष के पेड़ में कच्चा धागा लपेटकर तीन या पांच बार परिक्रमा करती हैं। साथ ही वट वृक्ष को जल अर्पित कर कच्चा धागा गले में पहनती हैं।

वट वृक्ष को पहले पंखा झेलने की है परंपरा

वट सावित्री की पूजा के दौरान महिलाएं अपने-अपने बाल में बरगद के पत्ते को लगाती हैं। साथ ही बांस निर्मित पंखे में कच्चा धागा बांधकर पूजा करने के बाद वट वृक्ष को पहले पंखा झेलकर बाद में पति को पंखा झेलती हैं।

नवविवाहिताओं को 14 पंखा से पूजा करने की है परंपरा

पहली बार वट सावित्री व्रत रखने वाली नवविवाहिता घर से सज-धजकर माथे पर जल भरा कलश लेकर वट वृक्ष के पास जाती है। इस दौरान परिवार एवं आस-पड़ोस की महिलाएं उसके साथ पारंपरिक गीत गाते हुए वट वृक्ष के समीप पहुंचकर पूजा करती हैं। पहली बार पूजा करने वाली नवविवाहिता नैहर और ससुराल से संयुक्त रूप से बांस निर्मित 14 पंखा पूजा में रखती हैं।

वट सावित्री व्रत पर नव विवाहिता के ससुराल से दही, चूड़ा, फल, पकवान, कपड़ा, मिठाई, पंखा, श्रृंगार सामग्री सहित व्रती महिला एवं परिवार के अन्य महिलाओं के लिए भी नए कपड़े भेजे जाते हैं।

हिंदू धर्म में वट सावित्री पर्व का है विशेष महत्व

हिंदू धर्म में वट सावित्री पर्व का विशेष महत्व है। आचार्य सह पंडित दिनकर झा ने बताया कि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन पतिव्रता सावित्री अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से वापस लेकर आ गई थी। इस दिन सुहागिन महिलाएं पति की लंबी आयु एवं अच्छे स्वास्थ्य के लिए काफी श्रद्धा,आस्था एवं विश्वास के साथ व्रत रखती हैं।

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