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Bengal: 2010 के बाद जारी सभी OBC प्रमाणपत्र HC ने किए रद, ममता बोलीं- हमें मंजूर नहीं ये आदेश; PM ने कहा- कोर्ट का फैसला INDI गठबंधन पर तमाचा

कलकत्ता उच्च न्यायालय ने बुधवार को पश्चिम बंगाल में कई वर्गों का ओबीसी दर्जा खत्म कर दिया और राज्य में सेवाओं और पदों में रिक्तियों के लिए 2012 के अधिनियम के तहत इस तरह के आरक्षण को अवैध पाया। हाई कोर्ट के इस आदेश के परिणामस्वरूप करीब पांच लाख ओबीसी प्रमाणपत्र रद कर दिए गए। सीएम ममता बनर्जी ने कोर्ट के इस आदेश को मानने से इनकार कर दिया है।

By Jagran News Edited By: Narender Sanwariya Published: Wed, 22 May 2024 06:07 PM (IST)Updated: Wed, 22 May 2024 08:30 PM (IST)
कलकत्ता हाई कोर्ट ने ममता सरकार के शासनकाल में जारी किए गए सभी ओबीसी सर्टिफिकेट रद किए। (File Photo)

राज्य ब्यूरो, जागरण, कोलकाता। कलकत्ता हाई कोर्ट बुधवार को वर्ष 2010 के बाद तृणमूल सरकार द्वारा जारी कई वर्गों के अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) प्रमाणपत्र को असंवैधानिक बताते हुए उसे रद कर दिया है। फैसला सुनाए जाने के बाद रद किए गए प्रमाणपत्र का इस्तेमाल किसी भी रोजगार प्रक्रिया में नहीं किया जा सकेगा। हाई कोर्ट के इस आदेश के परिणामस्वरूप करीब पांच लाख ओबीसी प्रमाणपत्र रद कर दिए गए। यह ओबीसी को आरक्षण लाभ प्रदान करने के लिए जारी किया जाने वाला प्रमाणपत्र है।

भविष्य में सिर्फ इन्हें ओबीसी माना जाएगा

कलकत्ता हाई कोर्ट के न्यायाधीश तपोब्रत चक्रवर्ती और न्यायाधीश राजशेखर मंथा की पीठ ने कहा कि 2010 के बाद जितने भी ओबीसी प्रमाणपत्र जारी किए गए हैं, वे कानून के मुताबिक नहीं बनाए गए हैं। इसलिए इन्हें रद किया जाना चाहिए। लेकिन साथ ही हाई कोर्ट ने कहा है कि इस निर्देश का उन लोगों पर कोई असर नहीं होगा जो पहले ही इस प्रमाणपत्र के जरिए नौकरी पा चुके हैं या नौकरी पाने की प्रक्रिया में हैं। अन्य लोग अब इस प्रमाणपत्र का उपयोग रोजगार प्रक्रिया में नहीं कर सकेंगे। पीठ ने कहा कि इसके बाद राज्य विधानसभा को यह तय करना है कि ओबीसी कौन होगा। पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग ओबीसी की सूची निर्धारित करेगा। इस सूची को राज्य विधानसभा को भेजना होगा। जिनके नाम विधानसभा द्वारा अनुमोदित किए जाएंगे उन्हें भविष्य में ओबीसी माना जाएगा।

2012 में दायर किया गया था मामला

जिस मामले के आधार पर हाई कोर्ट ने यह आदेश दिया, वह मामला 2012 में दायर किया गया था। वादियों की ओर से अधिवक्ताओं ने कहा कि वाममोर्चा सरकार ने 2010 में एक अंतरिम रिपोर्ट के आधार पर पश्चिम बंगाल में अन्य पिछड़ा वर्ग बनाया था। उस श्रेणी को ओबीसी-ए नाम दिया गया था। लेकिन इसके अगले वर्ष वाममोर्चा सरकार सत्ता से हट गई। 2011 में तृणमूल सत्ता में आई और उसने इस वर्ग पर अंतिम रिपोर्ट के बिना एक सूची बनाई और कानून बनाया। जिसके आधार पर तृणमूल सरकार के खिलाफ मामला दर्ज किया गया। वादियों ने कानून को तुरंत खारिज करने के लिए अदालत में याचिका दायर की। उन्होंने कहा कि तृणमूल सरकार द्वारा लिया गया फैसला पश्चिम बंगाल पिछड़ा कल्याण आयोग अधिनियम 1993 के खिलाफ है। परिणामस्वरूप वास्तविक पिछड़े वर्ग के लोग सरकारी अवसरों से वंचित हो रहे हैं। इसलिए सरकार को उक्त कानून के मुताबिक प्रमाणपत्र देना चाहिए।

हाई कोर्ट का फैसला इंडी गठबंधन पर बड़ा तमाचा : पीएम

-प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि हाई कोर्ट का फैसला इंडी गठबंधन पर बड़ा तमाचा है। बंगाल सरकार ने वोट बैंक के लिए मुसलमानों को ओबीसी प्रमाणपत्र दे दिए थे। यह वोटबैंक, तुष्टीकरण की राजनीति हर हद पार कर रही है।

अदालत का फैसला बिल्कुल सही : एनसीबीसी

दूसरी ओर, राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) के अध्यक्ष हंसराज अहीर ने कलकत्ता हाई कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि 2023 में हमारी समीक्षा के दौरान हमने देखा कि 2010 के बाद बंगाल में 65 मुस्लिम जातियों और छह हिंदू जातियों को ओबीसी सूची में जोड़ा गया। हमने इस संबंध में एक रिपोर्ट मांगी थी लेकिन राज्य सरकार ने हमें कोई रिपोर्ट नहीं दी।

हाई कोर्ट का आदेश स्वीकार्य नहीं : ममता

बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि वह हाई कोर्ट के इस निर्णय को स्वीकार नहीं करेंगी। बंगाल सरकार द्वारा लाया गया ओबीसी आरक्षण जारी रहेगा, इसे कोई नहीं छीन सकता है। हमने घर-घर सर्वेक्षण करने के बाद विधेयक बनाया था और मंत्रिमंडल तथा विधानसभा ने इसे पारित कर दिया था। उन्होंने कहा है जज को निर्देश देकर यह फैसला करवाया गया है।

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