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Kedarnath Helicopter Landing: प्रतिदिन ढाई सौ उड़ानें और रेस्क्यू मैनेजमेंट शून्य, कुछ ऐसा है उच्च हिमालयी क्षेत्र में हेली सेवाओं का हाल

Kedarnath Helicopter Emergency Landing समुद्रतल से 11657 फीट की ऊंचाई पर स्थित केदारनाथ धाम के लिए यात्राकाल के दौरान इस बार नौ हेली सेवा प्रदाता कंपनियां तीन सेक्टर सिरसी गुप्तकाशी व फाटा से नौ हेलीपैड से हेली सेवाएं संचालित कर रही हैं। उच्च हिमालयी क्षेत्र में स्थित केदारनाथ में यात्राकाल के दौरान प्रतिदिन हेलीकाप्टरों की लगभग ढाई सौ उड़ानें हो रही हैं।

By kedar dutt Edited By: Nirmala Bohra Published: Sat, 25 May 2024 11:08 AM (IST)Updated: Sat, 25 May 2024 11:08 AM (IST)
Kedarnath Helicopter Emergency Landing: हेलीपैड पर कोई सुरक्षा कर्मी तक नहीं था।

राज्य ब्यूरो, जागरण  देहरादून: Kedarnath Helicopter Emergency Landing: उच्च हिमालयी क्षेत्र में स्थित केदारनाथ में यात्राकाल के दौरान प्रतिदिन हेलीकाप्टरों की लगभग ढाई सौ उड़ानें हो रही हैं, लेकिन बचाव के लिए रेस्क्यू मैनेजमेंट शून्य है। शुक्रवार को केदारनाथ क्षेत्र में हेलीकाप्टर की इमरजेंसी लैंडिंग में भी यह दृष्टिगोचर हुआ। हेलीपैड पर कोई सुरक्षा कर्मी तक नहीं था।

तकनीकी खराबी के कारण हेलीकाप्टर अनियंत्रित हुआ तो अफरातफरी का आलम था। रेस्क्यू मैनेजमेंट जैसी कोई बात नहीं दिखी। ऐसे में हेली सेवाओं के संचालन में रेस्क्यू को लेकर प्रश्न खड़े होना स्वाभाविक है।  समुद्रतल से 11657 फीट की ऊंचाई पर स्थित केदारनाथ धाम के लिए यात्राकाल के दौरान इस बार नौ हेली सेवा प्रदाता कंपनियां तीन सेक्टर सिरसी, गुप्तकाशी व फाटा से नौ हेलीपैड से हेली सेवाएं संचालित कर रही हैं।

प्रतिदिन ढाई सौ के लगभग उड़ानें

स्थिति यह है कि प्रतिदिन ढाई सौ के लगभग उड़ानें हो रही हैं। प्रतिवर्ष यात्राकाल में लगभग डेढ़ लाख लोग हेली सेवाओं का उपयोग कर केदारनाथ पहुंचते हैं। यद्यपि, इस संवेदनशील उच्च हिमालयी क्षेत्र में हेली सेवाओं के इतनी बड़ी संख्या में संचालन को लेकर पर्यावरणप्रेमी पूर्व में चिंता जता चुके हैं। बावजूद इसके हेली सेवाओं के संचालन में सुरक्षा इंतजाम पर अक्सर प्रश्न उठते आए हैं।

यद्यपि, हेली कंपनियों के लिए निश्चित ऊंचाई पर उड़ान, पायलट के पास पर्याप्त अनुभव, हेलीपैड पर प्रशिक्षित स्टाफ की व्यवस्था समेत कई प्रविधान हैं, लेकिन इन सुरक्षा मानकों की अनदेखी हो रही है। इसे लेकर तंत्र की निगरानी व्यवस्था भी प्रश्नों के घेरे में है।

यद्यपि, यात्रा प्रारंभ होने से पहले हेली सेवाओं के मामले में तमाम तरह की तकनीकी जांच के बाद ही अनुमति देने की बात कही जाती है, लेकिन दुर्घटनाएं होने पर इनकी कलई भी खुलकर सामने आ जाती है। पिछले 11 साल के कालखंड में क्षेत्र में 10 हेली दुर्घटनाएं हो चुकी हैं। इनकी जांच भी हुई, लेकिन इनकी रिपोर्ट शायद ही कभी सार्वजनिक हुई हों।

जांच रिपोर्ट के आधार पर सुरक्षा को लेकर क्या कदम उठाए गए, यह किसी को नहीं मालूम। ऐसे में स्थिति का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है कि हेली सेवाओं को कितनी गंभीरता से लिया जा रहा है। उम्मीद की जा रही है कि ताजा घटनाक्रम से सबक लेते हुए उत्तराखंड नागरिक उड्डयन विकास प्राधिकरण और डीजीसीए इस दिशा में गंभीरतापूर्वक कदम उठाएंगे।


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