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Karakat Lok Sabha Seat: काराकाट में जाति की फसल काटने की आपाधापी, जीत-हार में निर्दलीय ही होंगे निर्णायक

पवन सिंह के शोर में जीत-हार का भी आकलन काराकाट क्षेत्र के राजनीतिक समीकरण को अगर देखा जाए तो एनडीए की जीत में हमेशा असरदार राजपूत जाति के वोटर रहे हैं। ऐसे में चुनावी दंगल के निर्दलीय कूदे पवन सिंह ने उपेंद्र कुशवाहा की टेंशन बढ़ा रखी है। इलाके में पवन सिंह के फिल्मी लटके-झटके का जादू युवाओं के सर चढ़ कर बोल रहा है।

By Dina Nath Sahani Edited By: Rajat Mourya Published: Mon, 27 May 2024 02:45 PM (IST)Updated: Mon, 27 May 2024 02:49 PM (IST)
काराकाट में जाति की फसल काटने की आपाधापी, जीत-हार में निर्दलीय ही होंगे निर्णायक (फाइल फोटो)

दीनानाथ साहनी, पटना। Karakat Lok Sabha Election 2024 जेठ की गर्मी अपने रंग में है। थककर चुप बैठी है जनता और नेता हवा में हैं। जमीन पर जाति की फसल वोटबैंक के रूप में लहलहा रही है। काराकाट संसदीय क्षेत्र में सभी दल जाति की फसल काटने के लिए दम लगा रहे हैं। आम लोगों को देखने-सुनने और बतियाने से पता चलता है कि कद्दावर नेता उपेन्द्र कुशवाहा (एनडीए उम्मीदवार) संसद पहुंचने के लिए क्यों इसी इलाके को पंसद करते हैं।

लव-कुश समीकरण को साधने के लिए यह सीट मुफीद रही है, मगर इस बार उन्हें बकायदा लड़ना पड़ रहा है। उनकी लड़ाई उन्हीं के स्वजातीय राजाराम सिंह (महागठबंधन उम्मीदवार) से है, मगर भोजपुरी फिल्मों के स्टार पवन सिंह की निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में एंट्री से मुकाबला और रोचक हो गया है। यहां निर्दलीय जीत-हार में निर्णायक साबित होंगे।

कुनबों के दायरे में 'ताज' का वजूद

काराकाट क्षेत्र में कुनबों की चर्चा और जीत-हार के गुणा-भाग हर खेमे के लोगों की जुबान पर है। माना जा रहा है कि जो खास कुनबों को साधेगा, उसी के सर जीत का 'ताज' सजेगा। रोचक यह कि जिस इलाके में खास कुनबे का दबदबा है वहां उस कुनबे के नेताओं को घुमाया जा रहा है, मतदाताओं को अपने पक्ष में करने हेतु मनुहार किया जा रहा है।

डेहरी के नवाडीह नहर पुल के निकट पेड़ की छांव में बैठे कई ग्रामीण मिले। चुनाव पर चर्चा छेड़ने पर जनार्दन सिंह, सतेन्द्र सिंह, अवध सिंह और मिथिलेश सिंह के लबोलुआब एक जैसे थे-अरे, इधर नेता जी तो पांच साल पर ही नजर आते हैं। उधर ही घूम कर चले जाते हैं। वोट के सवाल पर जनार्दन सिंह तमतमा उठे-उम्मीदवारों के चेहरे को अभी तक देखा नहीं है। वोटिंग के दिन देखा जाएगा, किसे वोट देना है।

रहरा गांव से दस किलोमीटर आगे बढ़ने पर बरेम बाजार पड़ता है। चाय-नाश्ते दुकान पर कई लोग बैठे मिले। जीत-हार का गणित समझाने लगे। ई कटेगा, ऊ बंटेगा, ऊ जुटेगा। फलां रेस में है... ऊ पवनबा के कम न आंकऊ। ओबरा के छकबनबिगहा और नवरतनचक गांव में सड़क के किनारे किसानों से मुलाकात हुई। समझाने लगे-देखिए, लड़ाई तो उपेन्द्र कुशवाहा और राजाराम सिंह के बीच ही है।

पवन सिंह तो चुनाव को भांड रहे हैं। गोह के सिहाड़ी और पचरुखिया गांव में विनय प्रसाद गुप्ता, अनिल कुमार व कृष्णा यादव कहने लगे कि विकास कोई चुनावी मुद्दा नहीं है। जाति से ही तय होगा कि कौन जीतेगा, कौन हारेगा? नोखा के दिनेश सिंह, सतीश यादव और संजीव चंद्रवंशी मानते हैं कि इस बार लड़ाई जबर्दस्त है।

डुमरां के छोटे लाल चौधरी और नोखा के महावीर प्रसाद जातीय समीकरण को बताने लगे कि दोनों प्रमुख उम्मीदवार कुशवाहा जाति से हैं। इस बार कुशवाहा वोट बंटना तय है।

पवन सिंह ने बढ़ाई कुशवाहा की टेंशन!

पवन सिंह के शोर में जीत-हार का भी आकलन काराकाट क्षेत्र के राजनीतिक समीकरण को अगर देखा जाए तो एनडीए की जीत में हमेशा असरदार राजपूत जाति के वोटर रहे हैं। ऐसे में चुनावी दंगल के निर्दलीय कूदे पवन सिंह ने उपेंद्र कुशवाहा की टेंशन बढ़ा रखी है। इलाके में पवन सिंह के फिल्मी लटके-झटके का जादू युवाओं के सर चढ़ कर बोल रहा है। उनके साथ सेल्फी लेने वालों की भीड़ है।

पवन सिंह के प्रचार के शोर में एनडीए और महागठबंधन के समर्थक हार-जीत का आकलन में जुटे हैं। ओबरा के व्यापारी सिकन्दर चौधरी और सेवानिवृत्त रेल अधिकारी शंभू प्रसाद एक स्वर में कहते हैं- यह जरूरी नहीं कि पवन सिंह के साथ सेल्फी लेने वाले नौजवान उन्हें ही वोट देंगे। हमलोग लालू-राबड़ी सरकार के दौर में एक खास जाति से परेशान रहे हैं। हमें वह दौर नहीं चाहिए।

दाउदनगर के कारोबारी जगदीश अग्रवाल कहते हैं- उपेन्द्र कुशवाहा से नाराजगी है पर पवन सिंह के चुनाव लड़ने से एनडीए के वोट पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा। सिकौढ़ी गांव के शिक्षक जवाहर मांझी कहते हैं-इस बार माले के राजाराम सिंह की जीत की उम्मीद है, क्योंकि उसके साथ महागठबंधन का आधार वोट भी है।

नासरीगंज में सेवानिवृत्त शिक्षक काशीनाथ सिंह व चंद्रशेखर पांडेय जातियों का गणित समझाने लगे-एनडीए और महागठबंधन के बीच में पवन सिंह ने आकर राजपूत वोटों का समीकरण बिगाड़ दिया है। हर जात में नौजवान उसके पीछे पागल दीख रहा है। वह कितना और किन-किन को प्रभावित करेंगे, इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। मगर हार और जीत के लिए जातीय गोलबंदी मायने रखेगी। लोगों से बातचीत से जाहिर है, इस गलाकाट जातीय गोलबंदी का चुनाव परिणाम, असर का गवाह होगा।

पिछले चुनाव नतीजे 2019 में

  • जदयू के महाबली सिंह जीते। वोट पाये- 3,98,408
  • रालोसपा के उपेन्द्र कुशवाहा हारे। वोट पाये- 3,13,866

2014 के नतीजे

  • रालोसपा के उपेन्द्र कुशवाहा जीते। वोट पाए- 3,38,892
  • राजद की कांति सिंह हारी। वोट पाए- 2,33,651

2009 के नतीजे

  • जदयू के महाबली सिंह जीते। वोट पाए- 1,96,946
  • राजद की कांति सिंह हारी। वोट पाए- 1,76,463

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