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जमीन को बंजर बना रही ये विदेशी घास, इंसान ही नहीं जानवरों के लिए भी है खतरनाक, नष्ट करने का सिर्फ ये तरीका

आप कहीं भी जाएं आपको गाजर घास आसानी से दिख जाएगी। गाजर घास को विदेशी घास भी कहते हैं। दिखने में भले ही ये घास आपको खूबसूरत लगे लेकिन ये घास उपजाऊ जमीनों को बंजर बनाने का काम कर रहा है। यह विदेशी घास न सिर्फ खेतों पर बुरा असर डालती है बल्कि लोगों और पशुओं को भी जानलेवा बीमारियों की ओर धकेलने का काम करती है।

By Narendra Kumar Anand Edited By: Mohit Tripathi Published: Wed, 08 May 2024 06:23 PM (IST)Updated: Wed, 08 May 2024 06:23 PM (IST)
जमीन को बंजर बना रही गाजर घास। (जागरण फोटो)

दिवाकर सिंह सूरज, भवानीपुर (पूर्णिया)। खेत हो या सड़क या फिर रेलवे ट्रैक... आप कहीं भी जाएं, आपको गाजर घास आसानी से दिख जाएगी। गाजर घास को विदेशी घास भी कहते हैं। दिखने में भले ही ये घास आपको खूबसूरत लगे, लेकिन ये घास उपजाऊ जमीनों को बंजर बनाने का काम कर रहा है।

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यह विदेशी घास न सिर्फ खेतों पर बुरा असर डालती है, बल्कि लोगों और पशुओं को भी जानलेवा बीमारियों की ओर धकेलने का काम करती है।

प्रगतिशील किसान डॉ. अमित प्रकाश सिंह और प्रो. शम्भू प्रसाद सिंह कहते हैं इस घास पर पेस्टीसाइड का प्रभाव भी नहीं के बराबर होता है। इस घास पर घास मारने वाले दवाइयों के उपयोग के बाद भी यह नहीं मरता है, जबकि इसके बगल का अन्य खर-पतवार दवाइयों के हल्के प्रभाव से ही खत्म हो जाते हैं।

काफी ज्यादा मात्रा में तेजी से फैल रहे इस विदेशी घास को नष्ट करने के लिए वर्तमान समय में कोई कारगर उपाय नहीं होने से यहां की उपजाऊ भूमि जहां बंजर होने के कगार पर पहुंच रही है। वहीं, इसके प्रभाव में आकर यहां के लोग काफी ज्यादा चर्मरोग से ग्रसित होते जा रहे हैं।

कैसे पहुंचा विदेशी घास

जानकारों ने बताया कि यह विदेशी घास का बीज सर्वप्रथम साठ के दशक में मेक्सिको एवं अमेरिका से आयातित गेहूं के साथ यहां पहुंचा था। जिस वजह से यहां के रेलवे पटरियों के अगल-बगल में कुछ मात्रा में इस घास को देखा गया था।

इसके बाद धीरे-धीरे यहां के सड़कों के किनारे और खेतों में काफी मात्रा में यह विदेशी घास फैल गया है। इसके बाद क्षेत्र में आये बाढ़ के द्वारा भी यह यहां की  उर्वरा जमीन में काफी मात्रा में फैली थी।

किसानों ने बताया कि सड़क किनारे यह विदेशी घास सड़क निर्माण में बाहर से लाये जाने वाले गिट्टी के माध्यम से यहां पहुंचा है। इस कारण  यह विदेशी घास सड़कों के किनारे काफी मात्रा में उग आया है।

बताया जाता है कि सड़कों के किनारे उग आये इस घास का दुष्प्रभाव सड़कों से गुजरने वाले राहगीरों पर काफी ज्यादा पड़ा है। जिस वजह से वर्तमान समय में यहां चर्मरोग से ग्रसित रोगियों की संख्या में काफी इजाफा हुआ है।

पशुओं पर डाल रहा है प्रभाव

विदेशों से यहां आए इस घास में काफी ज्यादा जहरीला पदार्थ मौजूद है। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसंधान में यह बात सामने आई है कि इस विदेशी घास के प्रभाव से जहां पशुओं में मुंह के रोग काफी ज्यादा हो रहे हैं। वहीं, इसके खाने से पशुओं में बांझपन का प्रकोप काफी ज्यादा हो रहा है।

ग्रामीण क्षेत्र के पशुपालकों में भी इस घास को लेकर काफी चिंता बनी हुई है। वैज्ञानिक कृषि विज्ञान केंद्र जलालगढ़ के कृषि वैज्ञानिक डॉ. कृष्ण मुरारी सिंह ने बताया कि इस विदेशी घास को पार्थेनियम के नाम से जाना जाता है।

उन्होंने बताया कि इस विदेशी घास के संपर्क में आने से मनुष्य के शरीर पर काफी दुष्प्रभाव पड़ता है। इसके संपर्क में आने से मनुष्य के शरीर में जहां चर्मरोग पकड़ लेता है, वहीं इसके संपर्क से शरीर में फोले भी आ सकते हैं।

सामूहिक उन्मूलन एकमात्र कारगर उपाय

वैज्ञानिक डॉ. सिंह ने बताया कि यह घास बहुत ज्यादा विषैली होती है। इसे नष्ट करने के लिए अभी कोई कारगर दवाई उपलब्ध नहीं हो पाया है।

उन्होंने बताया कि काफी खतरनाक इस विदेशी घास को नष्ट करने के लिए इसका सामूहिक रूप से उन्मूलन ही एक मात्र कारगर उपाय है।

ऐसे करें नष्ट

लोगों को अपने हाथ में दस्ताने का उपयोग कर इसे सामूहिक रूप से जड़ से उखाड़ने का काम करना पड़ेगा। उखाड़े गए इस विदेशी घास के पौधे को एक जगह एकत्रित करके इसे नष्ट करना इसका सबसे कारगर उपाय है।

कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि इसके उन्मूलन का काम इस पौधे में फूल  लगने से पहले करना पड़ेगा, नहीं तो इसके ऊपर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

तैयार कर सकते हैं कंपोज्ड  खाद 

उन्होंने बताया कि उखाड़े गए पौधे को लोगों के द्वारा मिट्टी के गड्ढे में दबाकर इससे कंपोज्ड खाद  भी तैयार किया जा सकता है। हालांकि, यह काम इस विदेशी घास के पौधे में फूल  लगने से पहले करना पड़ेगा। अन्यथा इसके बीज खेतों में काफी फैल सकते हैं।

कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि समय रहते अगर इस विदेशी घास के उन्मूलन की  तरफ सामूहिक रूप से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया, तो इसके दुष्प्रभाव से यहां की  उपजाऊ जमीन बंजर हो जाएगी।

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