Sitapur Lok Sabha Seat: चुनावी तपिश में बुनियादी मुद्दे गरम लेकिन मुस्लिम वोट बैंक पर सबकी नजर, ग्राउंड रिपोर्ट
Sitapur Gorund Report मानवता की रक्षा के लिए देह-दान करने वाले दधीचि व ज्ञान की नगरी शिक्षा चिकित्सा बेरोजगारी आदि के मुद्दों से जूझ रही है। चुनावी तपिश में ये मुद्दे गर्मा रहे हैं। जनता मुद्दों पर मुखर तो है मगर इन्कार नहीं किया जा सकता है कि राजनीति जातीय समीकरणों की धुरी पर ही घूमेगी। मुस्लिम वोट किधर जाएगा सबकी दृष्टि इस पर भी है। जगदीप शुक्ल की रिपोर्ट
Sitapur Gorund Report: जगदीप शुक्ल, सीतापुर। चुनावी माहौल क्या चल रहा है, यह गुरुवार दोपहर लालबाग चौराहे पर एकत्र कुछ लोगों की चुनाव पर बहस बताती है। सुनील टंडन कहते हैं, ‘जात-पात के लफड़ों में पड़ने से बहुत नुकसान हो चुका है। अब मुद्दों पर ही मतदान करना है। देश की प्रगति में भागीदार बनना है।’ मुजीब सीतापुरी ने मुद्दे उछाल दिए, बोले-’लगातार देश प्रगति की राह पर आगे बढ़ रहा है, लेकिन शिक्षा, स्वास्थ्य, बेरोजगारी आदि मुद्दों का समाधान होना आवश्यक है।’
व्यापारी संजू पाल व्यापारियों का मुद्दा उठाते हैं। कहते हैं- ‘व्यापारियों के हित की भी बात होनी चाहिए। दिल्ली के लिए रेलवे की बेहतर सुविधा न होने से व्यापारियों को परेशानी उठानी पड़ती है। दिल्ली से माल लाने में किराया बहुत महंगा पड़ जाता है।’
उनकी इस बात से सहमत उत्तम वैश्य कहने लगे-’व्यापारियों की आर्थिक सुरक्षा जरूरी है लेकिन चुनाव में यह मुद्दा नहीं बनता।’ सीतापुर संसदीय क्षेत्र में मुद्दों की तपिश है लेकिन एक रोचक तथ्य यह भी है कि यहां पुराने साथियों का भी टकराव है।
भाजपा प्रत्याशी राजेश वर्मा पांचवीं बार चुनाव मैदान में हैं। 1999 व 2004 में बसपा से सांसद रहे। मोदी लहर में 2014 से लगातार दो बार भाजपा से सांसद हैं और हैट्रिक की ओर हैं। हालांकि, उनकी राह इतनी आसान भी नहीं लगती।
सामने कांग्रेस से राकेश राठौर और बसपा से महेंद्र सिंह यादव हैं। दोनों वर्ष 2019 के चुनाव में राजेश वर्मा के साथ ही थे। वर्ष 2017 में भाजपा के टिकट पर बिसवां से विधायक रह चुके महेंद्र सिंह भी इस बार भाजपा से दावेदारी कर रहे थे। टिकट न मिलने पर बागी होकर बसपा में शामिल हो गए।
राकेश राठौर भी 2017 में सदर से भाजपा के विधायक चुने गए थे। 2022 में टिकट कटने पर सपा में शामिल हो गए। सपा ने नगर पालिका चुनाव में टिकट नहीं दिया तो पत्नी नीलकमल को निर्दल चुनाव मैदान में उतारकर 12 हजार से अधिक मत हासिल किए। इसके बाद राकेश राठौर कांग्रेस में शामिल हो गए। कांग्रेस ने उन्हें प्रदेश महासचिव बनाने के साथ ही चुनाव मैदान भी उतारा है। सपा-कांग्रेस कार्यकर्ताओं में समन्वय बनाना उनके सामने बड़ी चुनौती होगी।
बात भाजपा की करें तो लोग कानून व्यवस्था की चर्चा जरूर करते हैं। आंख अस्पताल गेट पर खड़े रामसेवक बोलते हैं- ‘अब रात में भी चलने में भय नहीं लगता। रास्ते में जगह-जगह पुलिस खड़ी मिलती है।’ बीच में पप्पू राठौर केंद्र की आयुष्मान योजना का जिक्र कर कहते हैं-’ जरूरतमंदों के लिए अच्छा काम हो रहा है। शिक्षा व्यवस्था सुधर जाए तो और भी ठीक रहे।’
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संसदीय क्षेत्र का इतिहास
यहां से 1952, 1957 में कांग्रेस से उमा नेहरू, 1971 में जगदीश चंद्र दीक्षित, 1980, 84 और 89 राजेंद्र कुमारी वाजपेयी सांसद चुनी गई हैं। चार बार भाजपा प्रत्याशियों को जीत मिली है। इसमें 1991 व 1998 में जनार्दन मिश्र और 2014 में 2019 में राजेश वर्मा सांसद चुना गया है। बसपा को तीन बार जीत मिली है। 1999 व 2004 में राजेश वर्मा व 2009 में कैसर जहां को मतदाताओं ने दिल्ली भेजने का काम किया है। जनसंघ के दो और सपा व जनता पार्टी के एक-एक बार सांसद चुने गए हैं।
मुस्लिमों के रुख पर रहेगी दृष्टि
इस बार किसी प्रमुख दल ने मुस्लिम उम्मीदवार को मौका नहीं दिया है। ऐसे में मुस्लिम मतदाता चुनाव का रुख मोड़ने का काम करेंगे। ये मुकाबला तय कर सकते हैं। संसदीय क्षेत्र में सबसे ज्यादा 20 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता ही हैं। इसके बाद ब्राह्मण, कुर्मी, पासी, गौतम, यादव आदि बिरादरी आती हैं।
दिलचस्प तथ्य है कि मुस्लिम मतदाता अधिक होने के बावजूद इस सीट से दो बार ही मुस्लिम प्रत्याशी जीत सके। 1996 में सपा से मुख्तार अनीस व 2009 में बसपा से कैसर जहां जीती थीं। 2014 में कैसर जहां ने राजेश वर्मा को कड़ी टक्कर दी मगर, 51 हजार वोटों से हार गईं।
2019 में वह कांग्रेस से खड़ी हुईं और नकुल दुबे को मैदान उतारने वाली बसपा के लिए मुश्किल खड़ी कर दी। चार लाख से अधिक वोट पाकर नकुल दूसरे स्थान पर रहे, जबकि 96 हजार से अधिक वोट लेकर कैसर तीसरे स्थान पर।
घटे मतों ने भाजपा की बढ़ाई चिंता
संसदीय क्षेत्र में सीतापुर सदर, महमूदाबाद, बिसवां, महमूदाबाद, लहरपुर और सेउता विधानसभा क्षेत्र आते हैं। इसमें लहरपुर में सपा का विधायक है और अन्य भाजपा के हिस्से में हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव के सापेक्ष वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को कम मत मिले। सिर्फ बिसवां में अधिक मत मिले।
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