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UP Lok Sabha Election: यूपी के इन सीटों को माना जाता है भगवा गढ़, इस बार और रोचक होगा रण

UP Lok Sabha Election गोरखपुर मंडल में लोकसभा चुनाव के सातवें चरण में अंतिम कील यहीं ठोकने की तैयारी है। 10 साल से जीत के रथ पर सवार भाजपाई लगातार तीसरी बार विजय पताका लहराने को तैयार हैं। इंडी गठबंधन के लड़ाके सत्ता विरोधी लहर और जाति-धर्म का समीकरण बनाकर मुकाबले को रोचक बनाने में जुटे हैं। रजनीश त्रिपाठी की रिपोर्ट...

By Jagran News Edited By: Vivek Shukla Published: Thu, 23 May 2024 08:16 AM (IST)Updated: Thu, 23 May 2024 08:16 AM (IST)
गोरखपुर मंडल में नाथपीठ की ऐसी आभा है कि यहां असंतोष भी बेअसर नजर आते हैं।

 राजनीति के सारे समीकरण नतमस्तक नजर आते हैं, जब आप गढ़ में झांकते हैं। जाति की जुगलबंदी न जोड़-तोड़ का असर। नाथपीठ की ऐसी आभा कि असंतोष भी बेअसर। यह परिचय गोरखपुर मंडल की उन छह लोकसभा सीटों का है, जो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह क्षेत्र का रुतबा रखती हैं।

गोरखपुर: नाथपीठ का वर्चस्व तोड़ना कठिन चुनौती

पहले पूर्वांचल और अब प्रदेश की राजनीति का शक्ति केंद्र। 1989 से अब तक देश में लहर चाहे किसी की रही हो, गोरखपुर सीट नाथपीठ की ही रही। पहले हिंदू महासभा फिर भाजपा से तीन बार सांसद बने गोरक्षपीठाधीश्वर ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ ने विरासत शिष्य योगी आदित्यनाथ को सौंपी तो उन्होंने भी पांच बार सांसद बनकर भाजपा को अजेय रखा।

2017 में वह मुख्यमंत्री बने तो उपचुनाव में सपा के प्रवीण निषाद ने झटका दिया, लेकिन 2019 के आम चुनाव में रवि किशन शुक्ल को तीन लाख मतों से जिताकर भाजपा ने यह सीट अपने नाम कर ली। फिल्म अभिनेता रवि किशन भाजपा से फिर मैदान में हैं। इंडी गठबंधन ने अभिनेत्री काजल निषाद को प्रत्याशी बनाया है। विधानसभा के दो और महापौर का चुनाव एक बार लड़ चुकीं काजल मुस्लिम, यादव व निषाद वोटों का समीकरण बनाकर मैदान में हैं।

उनके सामने नाथपीठ के प्रति निषादों की आस्था, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का प्रभाव, भाजपा की सहयोगी निषाद पार्टी के प्रमुख डा. संजय निषाद और पूर्व राज्यसभा सदस्य जयप्रकाश निषाद चुनौती बनकर खड़े हैं। मुस्लिम और दलित वोटों का समीकरण बनाकर बसपा से मैदान में उतरे जावेद सिमनानी मतदाताओं के बीच अपनी पहचान बनाने में जुटे हैं।

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देवरिया: मजबूत प्रतिद्वंद्वियों में कड़ी होती टक्कर

ब्राह्मण बहुल देवरिया सीट पर दो बार बाहरी उम्मीदवार उतारकर विरोध झेल चुकी भाजपा ने दिल्ली आइआइटी के छात्र रहे बरपार के शशांक मणि त्रिपाठी को प्रत्याशी बनाया है। शशांक मणि राजनीतिक विरासत के भी धनी हैं। आइसीएस अफसर रहे बाबा सुरति नारायण मणि त्रिपाठी गोरखपुर विश्वविद्यालय के संस्थापक, दो विश्वविद्यालयों के कुलपति और दो बार एमएलसी रहे।

थलसेना में लेफ्टिनेंट जनरल पद से सेवानिवृत्त पिता श्रीप्रकाश मणि भी दो बार सांसद रहे। चाचा श्रीनिवास मणि गौरी बाजार के विधायक तो दूसरे चाचा आइपीएस श्रीविलास मणि उप्र पुलिस में डीजीपी पद से सेवानिवृत्त हैं। बीटेक के बाद एमबीए करके समाजसेवा में आने वाले शशांक मणि की लड़ाई कांग्रेस प्रत्याशी अखिलेश प्रताप सिंह से है।

रुद्रपुर के विधायक रहे अखिलेश की पहचान समर्थकों के बीच विकास पुरुष की है। विपक्ष में रहते हुए रुद्रपुर में सड़कों का जाल बिछाने का श्रेय गिनाकर वह वोट मांग रहे हैं। गठबंधन के यादव, मुस्लिम समीकरण में बिरादरी के क्षत्रिय वोटों को जोड़ कर वह स्वयं को सीधे मुकाबले में ला रहे हैं। सौम्य स्वभाव और पुराने संबंधों के सहारे ब्राह्मण मतों को खींचने में लगे अखिलेश सिंह यदि इसमें सफल हो गए तो देवरिया सीट पर नए चेहरों के बीच रोमांचक जंग देखने को मिलेगी।

कुशीनगर: राजा की प्रतिष्ठा दांव पर

ऐसी सीट जहां प्रत्याशी ही नहीं, राजा की प्रतिष्ठा भी दांव पर है। भाजपा प्रत्याशी सांसद विजय कुमार दूबे ने 2014 के मुकाबले 2019 में भाजपा को चार गुणा अधिक मतों के अंतर से जीत दिलाई थी। कुर्मी-सैंथवार बहुल इस सीट पर गठबंधन ने पूर्व विधायक जनमेजय सिंह के बेटे सैंथवार अजय कुमार सिंह पिंटू को प्रत्याशी बनाकर घेराबंदी की तो भाजपा ने बिरादरी के छत्रप कहे जाने वाले ‘राजा’ आरपीएन सिंह को प्रचार की कमान सौंप दी। कुशीनगर का परिणाम आरपीएन की बिरादरी पर पकड़ भी बताएगा।

कुर्मी-सैंथवार मतों को लेकर खींचतान के बीच पूर्व मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने ताल ठोककर मुकाबले रोचक कर दिया है। अन्य पिछड़ा वर्ग के मतों रिझाने में जुटे स्वामी की काट भाजपा ने पूर्व विधायक नथुनी प्रसाद कुशवाहा को पाले में करके की। बसपा ने शुभनारायण चौहान को उतारा है। कुशीनगर में पार्टी के बेस वोट के साथ दूसरे के वोटबैंक में जो सेंधमारी कर ले गया, समझिये ताज उसके सिर सज गया।

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महराजगंज: चौधराहट को चौधरी की चुनौती

महराजगंज भाजपा का मजबूत किला है। 1999 और 2009 को छोड़ दें तो यहां से आठ बार लोकसभा का चुनाव लड़ने वाले केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री पंकज चौधरी छह बार सांसद बन चुके हैं। भाजपा ने नौवीं बार पंकज चौधरी को प्रत्याशी बनाया है।

सातवीं बार लोकसभा पहुंचने की तैयारी में लगे पंकज की घेराबंदी के लिए इंडी गठबंधन ने उनकी बिरादरी के ही कांग्रेसी विधायक वीरेन्द्र चौधरी को मैदान में उतारा है। कुर्मी, सैंथवार और पटनवार बहुल सीट पर बिरादरी के वोटों में सेंध लगाने के साथ मुस्लिम, यादव गठजोड़ को वीरेन्द्र जीत का आधार मानकर चल रहे हैं।

बसपा ने इस सीट पर मौसमे आलम के रूप में मुस्लिम प्रत्याशी उतारकर गठबंधन को मुश्किल में डालने की चाल चली है। मोहम्मद मौसमे आलम दलित मतदाताओं के साथ यदि मुस्लिम मतों में सेंध लगा गए तो कांग्रेस प्रत्याशी की मुश्किल बढ़ जाएगी।

बांसगांव: मोदी-योगी के भरोसे जीत की कोशिश

बांसगांव सुरक्षित गोरखपुर-बस्ती मंडल की इकलौती सीट है, जिसे 77 वर्षों के इतिहास में सुभावती पासवान के रूप में एक मात्र महिला सांसद चुनने का गौरव प्राप्त है। सुभावती के बेटे तीन बार के सांसद कमलेश पासवान को भाजपा ने चौथी बार उम्मीदवार बनाया है।

गुरु गोरक्षनाथ पर अटूट आस्था रखने वाले मतदाताओं ने कांग्रेस लहर में भी यहां भाजपा को जीत दिलाई है। मोदी के नाम और योगी के काम के सहारे मैदान में उतरे कमलेश के लिए जनता की नाराजगी दूर करना चुनौती है। बसपा छोड़ कांग्रेस में आए सदल प्रसाद इंडी गठबंधन से प्रत्याशी हैं।

लगातार तीन चुनाव हार चुके सदल प्रसाद सहानुभूति, मुस्लिम, यादव समीकरण के अलावा सवर्ण मतदाताओं में पैठ के चलते कमलेश को चुनौती दे रहे हैं। बसपा प्रत्याशी और पूर्व आयकर आयुक्त डा. रामसमुझ बसपा के बेस वोटों के साथ सवर्ण मतदाताओं को अपने पक्ष में करने में जुटे हैं, जो सदल के लिए मुश्किल का कारण है। इस सीट पर दलित वोटों का रुख जीत-हार का परिणाम तय करेगा।

सलेमपुर: बसपा ने बिगाड़ा सपा का समीकरण

अपने तीन विधानसभा क्षेत्रों को बलिया जनपद से साझा करने वाली सलेमपुर सीट पर लड़ाई रोमांचक है। जीत की हैट ट्रिक लगाने के इरादे से भाजपा ने सांसद रवीन्द्र कुशवाहा को प्रत्याशी बनाया है। दो बार के सांसद रवीन्द्र कुशवाहा के पिता हरिकेवल कुशवाहा भी यहां से दो बार सांसद बन चुके हैं।

सामान्य होते हुए भी पिछड़ा वर्ग के प्रत्याशी को सांसद बनाने वाली कुशवाहा, राजभर बहुल सीट पर गठबंधन ने पूर्व सांसद रमाशंकर राजभर को प्रत्याशी बनाकर सीधा मुकाबला करने की तैयारी की। इसी बीच बसपा ने पूर्व प्रदेश अध्यक्ष भीम राजभर को प्रत्याशी बनाकर नई चुनौती खड़ी कर दी।

अब सपा और बसपा प्रत्याशी राजभर वोटों को अपने पाले में करने में जुटे हैं। यदि राजभर वोटों का ध्रुवीकरण नहीं हुआ तो भाजपा के लिए लड़ाई आसान हो जाएगी।


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