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मौसम की मार: जहां इस समय जमी रहती थी बर्फ, वहां चल रही धूल भरी हवा; जानकार जता रहे चिंता

Global Warming छिपलकेदार में कही बर्फ नजर नहीं आ रही है और नहीं वर्षा हुई है। छिपलाकेदार के प्रमुख ब्रह्मकुंड का जलस्तर काफी नीचे पहुंच चुका है। जहां पर बीते वर्षों तक इस समय बर्फ रहती थी वहां धूल से भरी हवा चल रही है। कीड़ा-जड़ी के सबसे प्रमुख स्थल छिपलाकेदार तक धारचूला के ग्रामीण पहुंचे परंतु वहां की स्थिति को देखते हुए मायूसी हाथ लगी है।

By omprakash awasthi Edited By: Nirmala Bohra Published: Sat, 11 May 2024 01:59 PM (IST)Updated: Sat, 11 May 2024 01:59 PM (IST)
Global Warming: मौसम की मार कीड़ा जड़ी पर दोहन करने वाले वापस लौटे

संसू, जागरण. धारचूला : Global Warming: शीतकाल में काफी कम हिमपात कहें या फिर बीते वर्षों में उच्च हिमालय में कीड़ा-जड़ी का अत्यधिक दोहन, इसका प्रभाव इस बार नजर आने लगा है। कीड़ा-जड़ी दोहन के लिए गए ग्र्रामीण सामान उच्च हिमालय में छोड़कर वापस लौट चुके हैं।

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छिपलकेदार में कही बर्फ नजर नहीं आ रही है और नहीं वर्षा हुई है। छिपलाकेदार के प्रमुख ब्रह्मकुंड का जलस्तर काफी नीचे पहुंच चुका है। जहां पर बीते वर्षों तक इस समय बर्फ रहती थी वहां धूल से भरी हवा चल रही है। जिसे लेकर दोहनकर्ता परेशान है यही हाल नेपाल के क्षेत्रों में भी बना है।

जानकार लोगों ने चिंता जताई

कीड़ा-जड़ी क्षेत्र के इस हालात पर जानकार लोगों ने चिंता जताई है। बीते दो दशक से सीमांत की आर्थिकी बदलने वाली कीड़ा-जड़ी इस बार झटका देने जा रही है। मई माह में धारचूला, मुनस्यारी, बंगापानी तहसीलों के लोग कीड़ा जड़ी दोहन के लिए छिपलाकेदार, रालम, नागनीधूरा, सेला, नागलिंग, बालिंग और नजंग के ग्लेशियर वालें बुग्यालों में जाकर कीड़ा-जड़ी का दोहन करते आए हैं।

अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारी मूल्य में बिकने वाली कीड़ा जड़ी से इन क्षेत्र के गांवों की आर्थिकी में काफी बढ़ोतरी हो गई थी। अधिकांश ग्रामीण अपने परिवार के बुजुर्ग, बच्चे और एक सदस्य को घर पर छोड़ कर एक, डेढ़ माह का राशन पानी लेकर उच्च हिमालय में चले जाते थे। कीड़ा जड़ी 12 हजार फीट से अधिक ऊंचाई पर ही पाई जाती है। मई माह में ग्लेशियरों की बर्फ पिघलने पर जमीन से कीड़ा-जड़ी की फंगस बाहर निकलती है।

मौसम के मेहरबान होने का इंतजार

दोहनकर्ता कीड़ा-जड़ी वाले क्षेत्रों में टेट लगाकर रहते हैं। बर्फ पिघलने से जमीन में बनी नमी से कीड़ा-जड़ी को सुरक्षित दोहन किया जाता है। इसके लिए ग्रामीण पूरी तैयारी कर जाते हैं। इस बार भी कीड़ा-जड़ी के सबसे प्रमुख स्थल छिपलाकेदार तक धारचूला के ग्रामीण पहुंचे, परंतु वहां की स्थिति को देखते हुए मायूसी हाथ लगी है। सामान वहीं पर छोड़ कर ग्रामीण वापस लौट चुके हैं और मौसम के मेहरबान होने का इंतजार कर रहे है।

कीड़ा-जड़ी का दोहन मानसून आने तक ही होता है। छिपलाकेदार से लौटे ग्रामीणों ने बताया कि इस बार वहां पर बर्फ ही नहीं है और नहीं वर्षा हुई है। इस 12 हजार फीट से अधिक ऊंचाई पर तेज हवाएं चलती हैं ग्रामीणों के अनुसार पहली बार छिपलाकेदार में सूखी धूल भरी हवा चल रही है। उनका कहना है कि कम बर्फबारी और वर्षा नहीं होने से सबकुछ सूखा पड़ा है। जिसके चलते धूल भरी हवा चल रही है। वहां रह पाना संभव नहीं है। उनके अनुसार हिमपात नहीं होना और वर्षा नहीं होने से स्थिति खराब है। दो तीन पूर्व से जहां निचले क्षेत्रों में वर्षा हो रही है वहीं ऊंचाई वाले क्षेत्रों में न तो वर्षा और नहीं हिमपात हो रहा है।

ब्रह्मकुंड के जलस्तर काफी नीचे जा चुका है। इधर दारमा क्षेत्र के सेला, नागलिंग, बालिंग आदि कीड़ा-जड़ी वाले क्षेत्रों में अभी ग्लेशियर आए हैं। जिसके चलते कीड़ा-जड़ी दोहन अभी नहीं हो सकता है। बर्फ पिघलने के बाद ही स्थिति स्पष्ट होगी। मुनस्यारी से अभी ग्रामीण कीड़ा-जड़ी निकालने के लिए रालम, नागनीधुरा, राजरंभा क्षेत्र तक नहीं पहुंचे हैं। ग्रामीणों के पहुंचने के बाद ही स्थिति का पता चलेगा। पड़ोसी देश नेपाल से भी इसी तरह के समाचार मिले हैं। वहां भी लोग सामान पहुंचा कर वापस लौटे हैं। बीते दो वर्षों से चीन सीमा से लगे भारत और नेपाल के उच्च हिमालयी भू भाग में काफी कम बर्फबारी हुई है।


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