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भाजपा मोदी के भरोसे, सपा को समीकरणों का सहारा; जनता किसके सिर सजाएगी ताज? पढ़ें खीरी से Ground Report

Kheri Ground Report पिछले चुनाव में सपा संग गठबंधन करने वाली बसपा इस बार अकेले ही मैदान में है लेकिन बसपा की स्थिति डांवाडोल है। सपा के उत्कर्ष वर्मा ‘साइकिल’ को आगे निकालने की कोशिश में पसीना बहा रहे हैं। ऐसे में मुख्य लड़ाई भाजपा और सपा के बीच ही दिख रही है। इस रिपोर्ट से समझिए खीरी की जनता का रुख...

By Jagran News Edited By: Aysha Sheikh Published: Sat, 11 May 2024 02:58 PM (IST)Updated: Sun, 12 May 2024 09:34 AM (IST)
भाजपा मोदी के भरोसे, सपा को समीकरणों का सहारा; जनता किसके सिर सजाएगी ताज? पढ़ें खीरी से Ground Report

अजय जायसवाल, लखीमपुर। टाइगर रिजर्व दुधवा नेशनल पार्क और छोटी काशी(गोला गोकर्णनाथ शिव मंदिर) से देश-दुनिया में खासतौर से पहचान रखने वाले लखीमपुर खीरी जिले का तिकुनिया कांड इनदिनों फिर सुर्खियों में है। तकरीबन ढाई वर्ष पहले तिकुनिया हिंसा में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री और स्थानीय सांसद अजय मिश्रा टेनी के बेटे आशीष मिश्रा का नाम आने पर विपक्ष मोदी सरकार पर हमलावर रहा लेकिन भाजपा ने खीरी लोकसभा सीट पर तीसरी बार टेनी को उतारने में गुरेज नहीं की।

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टेनी के ताल ठोकने पर सपा प्रमुख अखिलेश यादव से लेकर बसपा सुप्रीमो मायावती चुनावी सभाओं में तिकुनिया कांड को जोर-शोर से उठा रही हैं। हालांकि, तिकुनिया कांड का तिकुनिया के आसपास भी कोई असर नहीं दिख रहा। तमाम दूसरे कारणों से टेनी के प्रति क्षेत्रवासियों की नाराजगी तो देखने-सुनने को मिल रही लेकिन टेनी पर निशाना साधने वाले भी मोदी के मुरीद हैं।

कांग्रेस के विपक्षी गठबंधन आइएनडीआइए में शामिल सपा के उत्कर्ष वर्मा ‘कमल’ की घेराबंदी कर ‘साइकिल’ को आगे निकालने की कोशिश में जहां पसीना बहा रहे हैं वहीं बसपा की स्थिति डांवाडोल है। ऐसे में अबकी काटें की टक्कर में मुख्य लड़ाई भाजपा के टेनी और सपा के उत्कर्ष के बीच ही दिख रही है। पेश है बहुचर्चित खीरी लोकसभा सीट के चुनावी परिदृश्य पर राज्य ब्यूरो प्रमुख अजय जायसवाल की रिपोर्ट-

कभी कांग्रेस के दबदबे वाली खीरी लोकसभा सीट पर पिछले एक दशक से ‘कमल’ खिल रहा है। संसदीय क्षेत्र में शामिल पांचों विधानसभा लखीमपुर, गोला गोकर्णनाथ, पलिया, निघासन व सुरक्षित सीट श्रीनगर पर भी भाजपा का कब्जा है। पांच वर्ष पहले के लोकसभा चुनाव में भाजपा के अजय मिश्रा टेनी ने खीरी सीट पर दूसरी बार जीत दर्ज की थी। 53.62 प्रतिशत वोट हासिल करने वाले टेनी ने बसपा के साथ गठबंधन में शामिल सपा की डा. पूर्वी वर्मा को 2,18,807 मतों के अंतर से शिकस्त दी थी। टेनी को 6,09,589 जबकि पूर्वी को 3,90,782 वोट मिले थे। 92,155 मतों के साथ कांग्रेस तीसरे स्थान पर खिसक गई थी।

अठारहवीं लोकसभा के हो रहे चुनाव में भाजपा ने तो हैट-ट्रिक लगाने के लिए एक बार फिर टेनी को ही मैदान में उतारा है लेकिन सपा ने प्रत्याशी बदलते हुए पूर्व विधायक उत्कर्ष वर्मा पर दांव लगाया है। गौर करने की बात है कि पिछले चुनाव में सपा संग गठबंधन करने वाली बसपा अकेले ही मैदान में है। सपा से गठबंधन के चलते पिछले चुनाव में यहां न दिखाई देने वाली बसपा वर्ष 2014 में भी रनरअप से आगे खाता खोलने में कामयाब नहीं हो सकी थी। दो बार से तीसरे स्थान पर रहने वाली कांग्रेस अबकी सपा से गठबंधन के चलते मैदान से बाहर है।

लगभग 25 प्रतिशत वंचित समाज की आबादी के साथ ही खीरी सीट पर कुर्मी और लोध किसानों का दबदबा माना जाता है। अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यहां से जीते 17 सांसदों में 10 वर्मा ही रहे हैं। ब्राह्मण बिरादरी की 14 प्रतिशत जबकि 15 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम समाज की आबादी मानी जाती है।

अन्य प्रमुख जातियों में राजपूत की पांच, यादवों की साढ़े चार और सिख की चार प्रतिशत से अधिक होने का अनुमान लगाया जाता है। वर्ष 1991 की रामलहर में पहली बार भाजपा ने कांग्रेस को हराकर खीरी सीट पर ‘कमल’ खिलाया था। वर्ष 1998 में भाजपा से सीट छीनने वाली सपा के रवि प्रकाश वर्मा ने हैट-ट्रिक लगाई। दो दशक के इंतजार के बाद वर्ष 2009 में कांग्रेस ने जफर अली नकवी के जरिए वापसी की लेकिन 2014 की मोदी लहर में नकवी तीसरे पायदान पर पहुंच गए और 18 वर्ष बाद भाजपा एक बार फिर ‘कमल’ खिलाने में कामयाब रही थी।

भाजपा के अजय मिश्रा टेनी, बसपा के अरविंद गिरि को 1,10,274 मतों के अंतर से हराकर पहली बार सांसद बने थे। टेनी को 36.98 प्रतिशत यानि 3,98,578 वोट मिले जबकि गिरि ने 2,88,304 हासिल किए थे। नकवी 1,83,940 वोट के साथ तीसरे और चौथे स्थान पर रहे सपा के रवि को 1,60,112 वोट मिले थे।

तिकुनियां से नेपाल की सीमा के करीब टेनी के गांव बनवीरपुर की ओर जाने वाली सिंगल रोड को देखकर नहीं लगता कि मंत्री का क्षेत्र होने से यहां विकास के ढेरो कार्य हुए हैं और समस्याएं कम हैं। अक्टूबर 2021 में जहां तिकुनिया कांड हुआ था वहीं से चंद कदम पर परिवार संग रहने वाले लक्खा सिहं कुरदने पर भी घटना के बारे में इतना ही कहते हैं कि मीडिया में जैसा दिखाया गया वह पूरा सच नहीं था।

बात बीच में रोकते हुए घर के सामने से गुजरती टूटी-फूटी सड़क दिखाकर बताते हैं कि हमारे केंद्रीय गृह राज्य मंत्री टेनी का गांव इसी सड़क पर तीन किलोमीटर आगे है। कभी-कभार इधर से गुजरते हैं लेकिन 10 वर्ष में सड़क की दुर्दशा उन्हें नहीं दिखी। नाराजगी भरे लहजे में कहते हैं कि ऐसे में उनसे बाढ़, ट्रेन की बढ़िया सुविधा, निराश्रित पशुओं की समस्या के स्थायी समाधान की भी कोई क्या उम्मीद करे?

मोदी-योगी के कामकाज का जिक्र करते ही कहते हैं कि उनसे कैसी नाराजगी लेकिन सांसद से दुखी हूं। वोट देने के सवाल पर कहते हैं कि अब तक तो ‘कमल का फूल’ ही खिलाते रहे लेकिन आगे का बता नहीं सकता। मंत्री के गांव में रहने वाले हरद्वारी लाल, सोनू और बहोरी पुजारी कहते हैं कि वह(टेनी) तो राजा हैं। हम लोगों को मुफ्त अनाज मिल रहा है, कुछ को घर भी मिला है, वोट तो मोदी को ही देना है।

तिकुनिया बाजार में दवाओं के कारोबारी अर्जन सिंह कहते हैं कि लोग टेनी से चिढ़ते जरूर हैं लेकिन मोदी-योगी से नहीं। क्षेत्र की मुस्लिम आबादी का जिक्र करते हुए कहते हैं कि यहां एक पाकिस्तान चौराहा भी है लेकिन योगी सरकार में सब शांत हैं। चुनावी नतीजे पर कहते हैं कि टेनी से नाराज रहने वाले भी मोदी-योही को छोड़कर कहां जाएंगे? यहां तक की ज्यादातर सिख भी और कहीं जाने वाले नहीं हैं। हां, अबकी सपा से सीधी लड़ाई में कांटे की टक्कर दिख रही है। टेनी के जीतने का अंतर जरूर घट सकता है लेकिन खिलेगा तो ‘कमल’ ही।

वहीं बिलरायां के नुसरत को लगता है कि अबकी जबरदस्त टक्कर है जबकि खुशीराम बराबर की टक्कर मानते हैं। गोला विधानसभा क्षेत्र के नौरंगाबाद के शिव प्रसाद मौर्य और भीरा चौराहे पर मिले अशोक कुमार चौरसिया भी मोदी के मुरीद होने से कमल के साथ हैं। वंचित समाज से आने वाले अंबारा गांव के मिश्रीलाल बताते हैं कि पहले वह बहन जी को वोट देते थे लेकिन अब मोदी जी के साथ हैं। मायावती पर नाराजगी जताते हुए कहते हैं कि उऩ्होंने तो पत्थर के सैकड़ों हाथी लगाने में ही करोड़ों बर्बाद कर दिए।

श्रीनगर विधानसभा क्षेत्र के रुकन्दीपुर में दुकान खोले संजय, विमल कहते हैं कि अबकी ‘साइकिल’ का जोर है। बसपा के सवाल पर कहते हैं कि पहले भी तो कभी यहां उसे जीत नहीं मिली है और इस बार तो बाहरी प्रत्याशी अंशय कालरा के खड़ा होने से ‘हाथी’ की सेहत और खराब हो सकती है। हां, बसपा समर्थकों को जरूर लगता है कि पंजाबी होने के नाते उनके प्रत्याशी को किसान आंदोलन के चलते भाजपा से नाराज सिख मतदाताओं का वोट मिल सकता है।

लखीमपुर विधानसभा क्षेत्र के ओयल कस्बे में मेडिकल स्टोर खोले मयंक बरनवाल को लगता है कि उत्कर्ष वर्मा अच्छा लड़ रहे हैं। सीट पर कुर्सी ज्यादा होने का फायदा उत्कर्ष को मिलेगा। मुस्लिम भी पूरी तरह से सपा के साथ है। पेपरलीक होने के चलते नौकरी न मिलने पर सरकार से नाराज अमित कहते है कि किताबें भी सस्ती नहीं हैं। सिर्फ मुफ्त अनाज और मकान के दम पर भाजपा वोट चाहती है।

शहर में राजा पैलेस के रहने वाले उज्जवल को लगता है कि अबकी भाजपा और सपा में सीधी लड़ाई से कहा नहीं जा सकता कि किसका पलड़ा भारी है? हालांकि, खीरी सीट पर फिर ‘कमल’ खिलाने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, गृहमंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह सहित पार्टी के दूसरे कई वरिष्ठ नेता भी यहां आ चुके हैं।

गठबंधन में शामिल कांग्रेस की नहीं दिख रही सक्रियता

खीरी सीट पर हैट-ट्रिक लगाने वाले रवि प्रकाश वर्मा एक बार फिर अपनी बेटी पूर्वी वर्मा को चुनाव मैदान में उतारना चाह रहे थे। अबकी सपा से टिकट न मिलता देख कांग्रेस पार्टी में शामिल हुए लेकिन विपक्षी गठबंधन आइएनडीआइए में सपा-कांग्रेस के बीच सीटों के बंटवारे में खीरी सीट सपा के कोटे में चली गई।

ऐसे में टिकट न मिलने से नाराज रवि ने कांग्रेस तो अब तक नहीं छोड़ी है लेकिन बताया जा रहा है कि उन्होंने गाड़ी और घर पर से कांग्रेस के झंडे उतार दिए हैं। रवि कहीं सपा के लिए प्रचार करते हुए भी नहीं दिख रहे हैं। उनके साथ ही दूसरे कांग्रेसी भी मैदान में दिखाई नहीं दे रहे। चर्चा तो इस बात की भी है कि रवि, सपा के बजाय अंदरखाने भाजपा के मददगार साबित हो रहे हैं। भाजपा को भी लगता है कि रवि की नाराजगी से कहीं न कहीं उऩ्हें कुर्मी वोट का फायदा मिलेगा।

भाजपा के तीन विधायकों की नाराजगी की भी चर्चा

खीरी सीट के पांचों भाजपा विधायक में लखीमपुर सदर सीट से योगेश वर्मा और श्रीनगर से मंजू त्यागी तो टेनी को जिताने के लिए क्षेत्र में सक्रिय हैं लेकिन पलिया के विधायक रोमी साहनी, गोला गोकर्णनाथ के अमन गिरी और निघासन के शशांक वर्मा के बारे में चर्चा है कि वे पुरानी राजनीतिक अदावत व टेनी के खराब व्यवहार के चलते उनके प्रचार से कटे-कटे हुए हैं।

न वे टेनी के नामांकन में शामिल हुए और न ही सभी बड़े नेताओं की सभाओं में दिख रहे। बताया जा रहा है कि तिकुनिया कांड को देखते हुए अबकी टेनी का टिकट कटने की चर्चा के चलते विधायक रोमी साहनी खुद भी टिकट के प्रबल दावेदार थे। हालांकि, नाराजगी की बात से इंकार करते हुए विधायक यही दिखाने की कोशिश में हैं कि वे प्रचार में जुटे तो हैं।


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