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'जज बने रहने लायक नहीं', सीजेएम बांदा के आचरण पर इलाहाबाद हाई कोर्ट की तीखी टिप्पणी

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बुधवार को सीजेएम बांदा के आचरण पर तीखी टिप्पणी की। कोर्ट ने तो यहां तक कह दिया कि भगवान दास गुप्ता जज बने रहने लायक नहीं हैं। कोर्ट ने कहा कि एक जज की तुलना अन्य प्रशासनिक पुलिस अधिकारियों से नहीं की जा सकती। हालांकि जज भी अन्य अधिकारियों की तरह लोकसेवक है किंतु ये न्यायिक अधिकारी नहीं जज हैं।

By Jagran News Edited By: Abhishek Pandey Published: Thu, 23 May 2024 08:09 AM (IST)Updated: Thu, 23 May 2024 08:09 AM (IST)
'जज बने रहने लायक नहीं', सीजेएम बांदा के आचरण पर इलाहाबाद हाई कोर्ट की तीखी टिप्पणी

विधि संवाददाता, प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बुधवार को सीजेएम बांदा के आचरण पर तीखी टिप्पणी की। कोर्ट ने तो यहां तक कह दिया कि भगवान दास गुप्ता जज बने रहने लायक नहीं हैं।

कोर्ट ने कहा कि एक जज की तुलना अन्य प्रशासनिक पुलिस अधिकारियों से नहीं की जा सकती। हालांकि जज भी अन्य अधिकारियों की तरह लोकसेवक है, किंतु ये न्यायिक अधिकारी नहीं, जज हैं। इन्हें भारतीय संविधान से संप्रभु शक्ति का इस्तेमाल करने का अधिकार प्राप्त है।

न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी तथा न्यायमूर्ति एमएएच इदरीसी की खंडपीठ ने बिजली विभाग अलीगंज, लखनऊ के अधिशासी अभियंता मनोज कुमार गुप्ता, एसडीओ फैजुल्लागंज, दीपेंद्र सिंह व संविदा कर्मी राकेश प्रताप सिंह की याचिका स्वीकार करते हुए यह आदेश दिया है।

कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि अधीनस्थ अदालत का कोई भी जज बिना जिला जज की सहमति व विश्वास में लिए व्यक्तिगत हैसियत से अति गंभीर अपराधों के अलावा अन्य मामलों में मुकदमा न लिखाए।

कोर्ट ने ऐसा आदेश सभी अदालतों में सर्कुलेट करने के लिए महानिबंधक को आदेशित किया है। कोर्ट ने जजों के व्यक्तित्व, पद की गरिमा व उच्च आदर्शों का उल्लेख करते हुए मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी (सीजेएम) बांदा भगवान दास गुप्ता के आचरण को लेकर तीखी टिप्पणी की है।

कोर्ट ने कहा कि बकाया बिजली बिल भुगतान की कानूनी लड़ाई हारने के बाद उन्होंने अधिकारियों को सबक सिखाने के लिए प्राथमिकी लिखा दी।

कोतवाली, बांदा के पुलिस अधिकारी ने सीजेएम की कलई खोल कर रख दी। एसआइटी जांच में आरोपों को अपराध नहीं माना गया। हाई कोर्ट ने बिजली विभाग के अधिकारियों के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी रद कर दी।

कोर्ट ने कहा कि एक जज का व्यवहार, आचरण, धैर्यशीलता व स्वभाव संवैधानिक हैसियत के अनुसार होना चाहिए। खंडपीठ ने पूर्व चीफ जस्टिस आरसी लहोटी की किताब का उल्लेख करते हुए कहा कि जज जो सुनते हैं, देख नहीं सकते और जो देखते हैं, उसे सुन नहीं सकते। जज की अपनी गाइडलाइंस है।

चर्चिल का उल्लेख करते हुए कहा कि जजों में दुख सहन करने की आदत होनी चाहिए और हमेशा सतर्क रहना चाहिए। उनका व्यक्तित्व उनके फैसलों से दिखाई पड़ना चाहिए।

मुकदमे के तथ्यों के अनुसार बांदा के सीजेएम ने लखनऊ के अलीगंज में मकान खरीदा। इस पर लाखों रुपये बिजली बिल बकाया था। विभाग ने वसूली नोटिस दी तो मकान बेचने वाले सहित बिजली विभाग के अधिकारियों के खिलाफ अदालत में कंप्लेंट केस दाखिल किया।

अपर सिविल जज लखनऊ ने समन जारी किया। बाद में बिजली विभाग के अधिकारियों का समन वापस ले लिया गया। यह कानूनी लड़ाई सीजेएम हाई कोर्ट तक हारते गए तो बांदा कोतवाली में अधिकारियों के खिलाफ इंस्पेक्टर दान बहादुर को धमका कर प्राथमिकी दर्ज करा दी। इसे हाई कोर्ट में चुनौती दी गई।

खंडपीठ ने कहा कि जज ने व्यक्तिगत हित के लिए पद का दुरुपयोग किया। साथ ही इस पर भी आश्चर्य प्रकट किया कि 14 वर्ष में मजिस्ट्रेट ने केवल पांच हजार रुपये ही बिजली बिल जमा किया है।

पूछने पर कहा कि सोलर पावर इस्तेमाल कर रहे हैं। बिजली विभाग के अधिकारियों पर घूस मांगने का भी आरोप लगाया। उन्होंने बकाया 2,19,063 रुपये बिजली बकाये का भुगतान नहीं किया। कोर्ट ने एसआइटी जांच कराई तो एफआइआर के अनुरूप कोई अपराध नहीं मिला। खंडपीठ ने कहा कि याचियों के खिलाफ कोई केस नहीं बनता।

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