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Lok Sabha Election 2024: बंगाल की इस सीट पर मामूली अंतर से हारी थी भाजपा, इस बार कड़ी टक्कर की उम्मीद

West Bengal Lok Sabha Election 2024 आरामबाग संसदीय क्षेत्र बंगाल की प्रमुख लोकसभा सीटों में से एक है। एक समय यह वामपंथियों का गढ़ था। 1980 से 2009 तक इस सीट से लगातार माकपा जीतती रही। पिछले दो चुनाव से यहां तृणमूल कांग्रेस का कब्जा है लेकिन पिछली बार बेहद मामूली अंतर से हारने वाली भाजपा से इस बार सीट पर TMC को कड़ी टक्कर मिलने की उम्मीद है।

By RAJEEV KUMAR Jha Edited By: Sachin Pandey Published: Sun, 28 Apr 2024 12:10 PM (IST)Updated: Sun, 28 Apr 2024 12:10 PM (IST)
Lok Sabha Election 2024: आरामबाग सीट पहले माकपा का गढ़ थी, बाद में तृणमूल ने इस पर दबदबा बनाया।

राजीव कुमार झा, कोलकाता। माकपा के दिग्गज नेता रहे अनिल बसु ने आरामबाग से  2004 के लोकसभा चुनाव में रिकॉर्ड 5,92,502 वोटों के बड़े अंतर से जीत हासिल की थी, जो देश में लोकसभा चुनावों में जीत का सबसे बड़ा अंतर था। कई वर्षों तक उनके नाम यह रिकॉर्ड रहने के बाद भाजपा की प्रीतम मुंडे ने 2014 में महाराष्ट्र के बीड लोकसभा क्षेत्र से सबसे बड़ी जीत हासिल कर उनका रिकार्ड तोड़ दिया था।

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आरामबाग सीट पर पहले माकपा बड़े अंतर से जीतती रही है, लेकिन 2011 में वाममोर्चा शासन का खात्मा कर राज्य की सत्ता में आने के बाद ममता बनर्जी की अगुवाई वाली तृणमूल कांग्रेस ने यहां अपना दबदबा बढ़ाया। 2014 में तृणमूल ने पहली बार यह सीट जीती थी। तब से यहां तृणमूल का कब्जा है। 2014 और 2019 में लगातार दो बार से इस सीट से जीतती आ रही तृणमूल की अपरूपा पोद्दार (आफरीन अली) फिलहाल यहां से सांसद हैं। 

तृणमूल को कड़ी चुनौती

2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा यह सीट महज 1142 वोटों से हार गई थी। भाजपा ने इस क्षेत्र में लगातार अपनी ताकत बढ़ाई है। इस बार इस सीट पर कड़ी टक्कर है। आरामबाग से दो बार से सांसद रहीं अपरूपा पोद्दार को इस बार तृणमूल ने टिकट नहीं दिया है। उनकी जगह पार्टी ने मिट्टी के घर में रहने वाली मिताली बाग को मैदान में उतारा है, जो पेशे से आंगनबाड़ी कर्मी हैं। वह हुगली जिला परिषद की सदस्य भी हैं।

वहीं, भाजपा ने इस सीट से अरूप कांति दिगर को उतारा है। माकपा की तरफ से विप्लब कुमार मोइत्रा मैदान में हैं। मुख्य मुकाबला तृणमूल व भाजपा के बीच ही है। 2009 से यह संसदीय सीट अनुसूचित जाति (एससी) के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित है। इस सीट पर पांचवें चरण में 20 मई को चुनाव होने हैं। आरामबाग लोकसभा अंतर्गत कुल सात विधानसभा सीट हैं। इनमें हरिपाल, तारकेश्वर, पुरशुरा, आरामबाग (एससी), गोघाट (एससी), खानाकुल व चंद्रकोना शामिल हैं। इनमें से छह विधानसभा क्षेत्र हुगली जिले में हैं जबकि एक सीट चंद्रकोना पश्चिम मेदिनीपुर जिले में है।

विधानसभा चुनाव में भाजपा ने चौंकाया

2019 के लोकसभा चुनाव में महज 1142 वोटों से हारने वाली भाजपा ने 2021 के विधानसभा चुनाव में भी यहां बेहतर प्रदर्शन कर सबको चौंका दिया था। इस लोकसभा की चार विधानसभा सीटों पर भाजपा जबकि तीन पर तृणमूल का कब्जा है। भाजपा ने इस क्षेत्र में लगातार अपना जनाधार बढ़ाया है।

बाढ़ है प्रमुख समस्या

राजधानी कोलकाता से लगभग 100 किलोमीटर दूर आरामबाग क्षेत्र के लोगों के लिए दशकों से बाढ़ एक प्रमुख मुद्दा है। सुदूर ग्रामीण और निचले हिस्से में स्थित इस क्षेत्र के लोगों को हर साल बाढ़ की समस्या से जूझना पड़ता है। हर चुनाव में विभिन्न राजनीतिक दलों ने उन्हें इससे निजात दिलाने के वादे किए, लेकिन उन्हें पूरा नहीं किया।

हर बार चुनाव के समय आरामबाग को जिला बनाने का मुद्दा भी उठता रहा है। आरामबाग क्षेत्र में 95 प्रतिशत लोग गांवों में रहते हैं। आरामबाग से जिला सदर जाने में करीब दो- तीन घंटे लग जाते हैं। परिणामस्वरूप आम लोगों की जीवनयात्रा एवं विकास की स्वभाविक गति के मामले में आरामबाग पीछे है।

वामपंथियों का था गढ़

इस लोकसभा सीट का गठन 1967 में हुआ था। यहां के राजनीतिक इतिहास पर नजर डालें तो पहले इस सीट पर वामपंथियों का जलवा था। पहली बार फॉरवर्ड ब्लाक के अमियो नाथ बोस ने यहां से चुनाव जीता। उन्होंने कांग्रेस के एस चौधरी को पराजित किया था। 1971 में भाकपा के मनोरंजन हाजरा ने यहां से जीत दर्ज कर यह सीट फॉरवर्ड ब्लॉक से छीन ली। 1977 में जनता पार्टी के प्रफुल्ल चंद्र सेन ने जीत दर्ज की।

देश में इमरजेंसी के बाद जनता पार्टी अस्तित्व में आई थी। 1980 में फिर से इस सीट पर माकपा ने वापसी की। माकपा के विजय कृष्ण मोदक ने जीत दर्ज की। 1980 से 2009 तक यहां माकपा का जलवा बरकरार रहा। 1984 में माकपा के टिकट पर अनिल बसु यहां से पहली बार सांसद बने। उसके बाद 1989, 1991, 1996, 1998, 1999 व 2004 तक अपनी विजय यात्रा उन्होंने जारी रखी। 1984 से 2004 तक इस सीट से अनिल बसु ने लगातार सात बार जीत हासिल की। 2009 में माकपा के शक्ति मोहन मलिक ने जीत दर्ज की। उसके बाद 2014 में तृणमूल ने यहां कब्जा जमाया।

धार्मिक व ऐतिहासिक जुड़ाव

आरामबाग का धार्मिक व ऐतिहासिक जुड़ाव भी रहा है। आरामबाग के ही कामारपुकुर में मां काली के परम भक्त स्वामी रामकृष्ण परमहंस का जन्म हुआ था। हुगली जिले के ही राधानगर में रामकृष्ण की पत्नी मां सारदा देवी का भी जन्म हुआ था। बंगाल के लोगों के लिए अब ये दो स्थान तीर्थ स्थान की तरह हैं। रामकृष्ण परमहंस मां काली के अनन्य उपासक थे। कहा जाता है कि उनकी भक्ति से प्रभावित होकर स्वयं मां काली ने उन्हें दर्शन दिया था। रामकृष्ण परमहंस के ही शिष्य स्वामी विवेकानंद ने हिंदू धर्म का पूरे विश्व में प्रचार-प्रसार किया और रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी, जिसका मुख्यालय हावड़ा के बेलूर मठ में है।

आपसी कलह से जूझ रही है तृणमूल

आरामबाग में तृणमूल आपसी कलह से जूझ रही है। पार्टी ने मौजूदा सांसद अपरूपा पोद्दार को टिकट नहीं दिया है। उनकी जगह मिताली बाग को टिकट दिए जाने से कई नेता नाराज हैं। टिकट कटने से अपरूपा सार्वजनिक तौर पर अपनी नाराजगी जता चुकी है। अपनी भड़ास निकालते हुए उन्होंने कहा था, चुनाव लड़ने के लिए पैसा नहीं होने के कारण मुझे इस बार टिकट नहीं दिया गया। उन्होंने जिले के पार्टी के ही कुछ नेताओं पर निशाना साधते हुए कहा था, मुझे क्यों टिकट नहीं मिला, इसका उत्तर हुगली के एक सांसद एवं दो मंत्री दे सकते हैं, उन्हें पता था कि चुनाव लड़ने के लिए मेरे पास पैसे नहीं हैं।

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उन्होंने यह बात ममता दीदी को बताई हो। बताया गया कि अपरूपा का इशारा श्रीरामपुर के सांसद व तृणमूल उम्मीदवार कल्याण बंद्योपाध्याय एवं हुगली से राज्य मंत्रिमंडल में शामिल स्नेहाशीष चक्रवर्ती एवं बेचाराम मन्ना की ओर था। उनके आरोपों पर कल्याण बनर्जी ने कहा था कि तृणमूल में पैसा देखकर टिकट नहीं मिलता। मंत्री स्नेहाशीष चक्रवर्ती ने भी कहा था कि किसी की सिफारिश से टिकट नहीं मिलता, क्योंकि दीदी को सब पता है।

आरामबाग में तृणमूल के भीतर अंदरूनी कलह का असर चुनाव प्रचार पर दिख रहा है। इससे पार्टी का शीर्ष नेतृत्व भी चिंतित है। नाराज नेताओं व कार्यकर्ताओं को मनाने का क्रम जारी है। पिछले चुनाव में 1142 वोटों से जीतने वाली तृणमूल के लिए इस बार यह सीट बचाना बड़ी चुनौती है।

2019 में भाजपा को मिले थे इतने वोट

2019 के लोकसभा चुनाव में आरामबाग से तृणमूल की अपरूपा पोद्दार को 6,49,929 वोट (44.14 प्रतिशत मत) मिले थे। वहीं, दूसरे स्थान पर रहने वाले भाजपा के तपन कुमार राय को 6,48,787 वोट (44.06 प्रतिशत मत) मिले थे और वह मात्र 1142 वोटों से हार गए थे। तीसरे स्थान पर रहने वाले माकपा उम्मीदवार शक्ति मोहन मलिक को 1,00,520 वोट ही मिले थे। इससे पहले 2014 के लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज करने वाली तृणमूल की अपरूपा पोद्दार को 7,48,764 (54.94 प्रतिशत) वोट मिले थे।

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हालांकि उस वक्त माकपा दूसरे स्थान पर थी। माकपा उम्मीदवार शक्ति मोहन मलिक को 4,01,919 वोट (29.51 प्रतिशत) मिले थे। वहीं, 2014 में भाजपा उम्मीदवार मधुसूदन बाग को 1,58,480 (11.63 प्रतिशत) वोट मिले थे। 2009 में भाजपा के मुरारी बेरा को 57,903 (4.96 प्रतिशत) वोट मिले थे। हर चुनाव में भाजपा ने यहां लगातार अपनी ताकत बढ़ाई है।

पीएम मोदी कर चुके पहली सभा

अरामबाग में पिछली बार जिस तरह से भाजपा ने तृणमूल को कड़ी चुनौती दी थी और बहुत कम वोटों से यह सीट हारी थी, उसके बाद पार्टी ने यहां कड़ी मेहनत की है। भाजपा इस सीट को लेकर कितनी गंभीर है, इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि इस वर्ष लोकसभा चुनाव की घोषणा से पहले बंगाल में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आरामबाग से ही प्रचार का शंखनाद किया था। उन्होंने आरामबाग में ही पहली सभा की थी। इस सभा से 7,200 करोड़ रुपये की विभिन्न सरकारी परियोजनाओं का उद्घाटन किया।

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