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Lok Sabha Election 2024: जहां कभी बोलती थी तूती, उस क्षेत्र में 10 साल से जीत को तरस रही कांग्रेस, कहां गए महारथी?

Lok Sabha Election 2024 कई वर्षों तक देश की सत्ता पर काबिज रहने वाली कांग्रेस जिसके तमाम नेताओं की तूती बोलती थी वह पिछले 10 वर्षों से कानपुर-बुंदेलखंड क्षेत्र में एक भी सीट नहीं जीत सकी है। उसके कई बड़े नेता नेपथ्य में चले गए हैं। कुछ बुजुर्ग हैं पर राजनीति में दो-दो हाथ कर अपनों की किस्मत लिख रहे हैं। पढ़ें कानपुर से खास रिपोर्ट...

By shiva awasthi Edited By: Sachin Pandey Published: Thu, 18 Apr 2024 04:23 PM (IST)Updated: Thu, 18 Apr 2024 04:23 PM (IST)
Lok Sabha Election 2024: INDI गठबंधन के तहत कांग्रेस के हिस्स में क्षेत्र की केवल झांसी व कानपुर सीटें हैं।

शिवा अवस्थी, कानपुर। लोकसभा चुनाव की दुंदुभि बजने के साथ ही सियासी रणबांकुरे महासमर में उतर चुके हैं। कांग्रेस को आईएनडीआई गठबंधन में शामिल होने के बाद कानपुर-बुंदेलखंड क्षेत्र में केवल झांसी व कानपुर सीटें ही मिली हैं। बार-बार गठबंधन, पार्टी की कमजोर होती जड़ें... कभी राजनीति के पुरोधा व महायोद्धा रहे उसके कई नेताओं को चुनावी समर से बाहर कर चुकी हैं।

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चुनाव प्रचार से रणनीति तक उनकी कोई मदद नहीं ले रहा है। इनमें सबसे प्रमुख व पहला नाम है 79 वर्षीय पूर्व केंद्रीय मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल का, जो कानपुर नगर निगम के मेयर रहे। फिर लोकसभा क्षेत्र से लगातार तीन बार सांसद चुने गए। इस दौरान उन्हें तत्कालीन केंद्र सरकार में कोयला मंत्री व गृह राज्यमंत्री का दायित्व भी मिला। 2014 व 2019 में वह लोकसभा का चुनाव लड़े पर हार मिली।

अब नहीं लगती भीड़

बुधवार को सियासी नब्ज टटोलने पोखरपुर स्थित उनके घर पहुंचने पर सन्नाटा मिला। अब कोई सियासी चहल-पहल नहीं है। यह वही घर है, जहां कभी अंदर से बाहर तक समर्थकों, कांग्रेस नेताओं व जनता की भीड़ रहती थी। दरवाजे से लेकर उन तक पहुंचने में कई बार सुरक्षा घेरे से गुजरना पड़ता था। पता चला कि वह अभी दिल्ली में हैं। बीमारी के कारण ज्यादातर दिल्ली में ही रहते हैं।

साल 2012 में कानपुर व अकबरपुर लोकसभा क्षेत्र के परिसीमन में उनकी अहम भूमिका रही, जिससे बीच शहर के तमाम इलाके अकबपुर सीट से जुड़ गए। धुर विरोधी पूर्व विधायक अजय कपूर से उनकी कतरब्योंत जगजाहिर रही। हालांकि, अजय अब भाजपा में हैं। वहीं, राजनीति के धुरंधर श्रीप्रकाश का कद अब नेपथ्य में है।

ऐसे ही कांग्रेस के एक और दिग्गज नेता हैं 82 वर्षीय पूर्व विधायक भूधर नारायण मिश्र। युवक कांग्रेस से जुड़े रहे भूधर की स्वर्गीय संजय गांधी से करीबी रही। संजय के विरुद्ध लखनऊ में मुकदमे के समय हर तारीख पर समर्थकों के साथ जाने व जनता में पकड़ से उनकी सियासी पारी आगे बढ़ी। अब वह बुजुर्ग हैं पर सक्रियता युवाओं जैसी है।

जी-जान से जुटे हैं

भले उनका आवास अकबरपुर लोकसभा क्षेत्र में है पर वर्तमान प्रत्याशी आलोक मिश्र के लिए जी-जान से जुटे हैं। शाम को जब उनके घर पहुंचे तो पुराने कांग्रेसी अतहर नईम, केके अवस्थी, आनंद मेहरोत्रा व एके शुक्ला के साथ वह रणनीति बनाते मिले। बोले, राजनीति में सक्रिय रहिए, कभी बूढ़े नहीं होंगे।

हालांकि, उन्हें टीस भी है कि कार्यकर्ताओं के बजाय स्काईलैब नेताओं पर पार्टी भरोसा जता रही, जो बंद होना चाहिए। पूर्व विधायक भूधर मिश्र बताते हैं कि हलीमुल्ला खां, मूलचंद्र सेठ, आफताब अहमद खां जाजमऊ, अंबिका प्रसाद शुक्ल लाल बंगला, पाली अरोड़ा गोविंद नगर व विनोद मालवीय आर्य नगर 34 साल पहले युवाओं के रूप में कांग्रेस के लिए काम करते थे। अब भी वैसे ही लगे रहते हैं, भले उनसे कांग्रेस का कोई प्रत्याशी बात करे, मिले या न मिले।

अन्य नेताओं का हाल

इसी तरह कभी चौबेपुर विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने गए 72 वर्षीय नेक चंद्र पांडेय काकादेव के आरएसपुरम में रहकर राजनीति में सक्रिय हैं। इनका घर कल्याणपुर विधानसभा क्षेत्र में होने के नाते अकबरपुर लोकसभा सीट में है। वह कानपुर सीट पर प्रत्याशी के पक्ष में सक्रिय हैं। इसी तरह पुराने नेता लल्लन अवस्थी तिलक हाल में हर दिन बैठ रहे हैं।

प्रदेश महासचिव हर प्रकाश अग्निहोत्री कानपुर से लेकर बुंदेलखंड तक सक्रियता से जुटे हैं। पूर्व विधायक संजीव दरियाबाद भी अपने पिता की लालता प्रसाद दरियाबादी की विरासत संभाल कांग्रेस के लिए काम कर रहे हैं। ऐसे ही 80 वर्षीय पूर्व विधायक हाफिज मोहम्मद उमर सुतरखाना में कानपुर सेंट्रल रेलवे स्टेशन के पास रह रहे हैं।

वह 1984 में विधायक चुने गए थे। क्राइस्टचर्च कॉलेज में पढ़ाई के दौरान ही छात्र राजनीति से जुड़े और फिर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीपी सिंह के करीबी होने से इन्हें टिकट मिला था। मुस्लिम क्षेत्रों में उनकी गहरी पकड़ है पर अब नई पीढ़ी के नेता उनके पास कम ही पहुंचते हैं।

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इसी तरह 84 वर्षीय पूर्व एमएलसी कुलदीप सिंह अशोक नगर गुरुद्वारा के पास रहते हैं। वह राजीव गांधी के करीबी रहे। सिख दंगों को लेकर मुखर आवाज उठाने पर उन्हें विधान परिषद में भेजा गया था। वह उम्रदराज हैं, अब इनकी ड्योढ़ी पर वैसे कार्यकर्ताओं की भीड़ नहीं जुट रही पर किताबों से घिरे रहते हैं। चुनाव में कोई न पूछे पर देश के लिए कुछ करने की ललक है।

वरिष्ठ कांग्रेस नेता शंकर दत्त मिश्र की जवानी तिलक हाल में बीत गई। उन्हें पार्टी से कुछ नहीं चाहिए पर वह रणनीति में हिस्सेदार रहते हैं। हाल ही में उन्हें कुछ नेताओं ने भला-बुरा कहा था, जिससे वो नाराज हुए पर फिर मान गए। चुनाव में प्रत्याशी के लिए कागजात तैयार कराना, पार्टी की ओर से प्रशासन की चुनावी बैठकों में शामिल होते हैं।

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चुनावी परिदृश्य से ही बाहर सलमान खुर्शीद

कांग्रेस के टॉप-फाइव नेताओं में शुमार पूर्व विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद का कभी इतना रसूख था कि फर्रुखाबाद लोकसभा सीट पर इनके विरुद्ध कोई पार्टी में प्रत्याशिता का प्रयास तक नहीं करता था पर अब वह चुनावी परिदृश्य से ही बाहर हैं। वर्ष 1984 में सांसद बने खुर्शीद आलम खां की राजनीतिक विरासत संभालने वाले उनके पुत्र सलमान खुर्शीद ने 1991 में राम लहर में भी फर्रुखाबाद से जीतकर दम दिखाया था। 2009 में भी सलमान यहां से सांसद चुने गए और विदेश मंत्री बने। 2014 के बाद से कांग्रेस यहां जीत के लिए तरस रही है। वर्तमान चुनाव में आईएनडीआईए घटक दल सपा ने यहां से प्रत्याशी उतारा है।

बुंदेलखंड में नसीमुद्दीन-खाबरी चुप, बाकी भी खाली

कभी बुंदेलखंड में राजनीति की सबसे सक्रिय धुरी कांग्रेस के नेताओं में चुप्पी है। महोबा में बड़ा चेहरा रहे कबरई निवासी पूर्व एमएलसी जयवंत सिंह, बेलाताल के अरविंद रावत, चरखारी के खेमचंद्र, आफाक सरवर, नंदराम राजपूत व तुलसीदास जैसे नेता अब चुप हैं। जालौन-गरौठा-भोगनीपुर संसदीय क्षेत्र में कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष बृजलाल खाबरी फिलहाल मैदान में नहीं हैं।

हमीरपुर में कांग्रेस 1985 के बाद से नेपथ्य में है। कभी विधायक रहे 75 वर्षीय जगदीश नारायण शर्मा अब वकालत तक सीमित हैं। पार्टी नेता भी उनसे कोई मदद लेने नहीं पहुंच रहे। बांदा में कांग्रेस नेता पूर्व मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी खाईंपार के रहने वाले हैं। उनके लखनऊ में अधिक रहने से यहां सक्रियता कम ही रहती है।

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