दिनभर की कुंठा की झलक होते हैं हमारे बुरे सपने
ब्रिटेन के शोधकर्ताओं ने अध्ययन के बाद निकाला निष्कर्ष, जिन चीजों को पाने में होते हैं असफल उन्हीं को बार-बार देखते हैं सपनों में...
लंदन (प्रेट्र)। रोज निकलने वाला सूरज अपने साथ नया सवेरा लाता है, लेकिन देखा जाए तो इसके साथ रोज सुबह जागते हैं अरबों लोगों के सपने। दुनिया के बहुसंख्य लोग रोज घर से नौकरी, तरक्की, पढ़ाई में अच्छे अंक जैसे कई सपने आंखों में लेकर निकलते हैं। बहुतों के पूरे होते हैं, तो बहुत अपने लक्ष्य से चूक जाते हैं। ऐसे में पैदा होती है कुंठा, जो तकिए पर बुरा सपना बनकर आती है।
जीवन की इस कड़वी सच्चाई को अब शोधकर्ताओं ने अध्ययन से साबित किया है। अध्ययन के मुताबिक, यदि किसी को बार-बार बुरे सपने आते हैं तो यह इस बात का संकेत है कि व्यक्ति की वे आधारभूत मनोवैज्ञानिक जरूरतें पूरी नहीं हो पा रहीं है, जिससे कि वह खुद को स्वतंत्र महसूस कर सके। कुंठा का शिकार व्यक्ति खुद को अलग थलग महसूस करता है और उसमें कार्य करने की योग्यता भी कम हो जाती है।
अध्ययन में यह बात जांची : शोधकर्ताओं के मुताबिक, कुंठा से ग्रसित ऐसे लोगों को यदि सपने आते हैं तो वह गलत संदर्भ में इसका मतलब निकालते हैं। रिपोर्ट के अनुसार, शोध पर इस बात पर ध्यान दिया गया है कि क्या
लोगों की मनोवैज्ञानिक जरूरतें पूरी होने का उनके सपनों से कोई संबंध है या नहीं।
इस तरह किया अध्ययन : कुंठा को लेकर शोधकर्ताओं ने दो अध्ययन किए हैं। पहले अध्ययन में 200 लोगों से पूछा गया कि वे सबसे ज्यादा सामान्य रूप से आने वाले सपनों के बारे मे बताएं, जबकि दूसरे अध्ययन में 110 लोगों को तीन दिन आए सपनों की डायरी का अध्ययन किया गया।
यह निकाला निष्कर्ष : शोधकर्ताओं ने इस बात को ध्यान में रखते हुए अध्ययन किया कि व्यक्ति को आने वाले सपनों का कोई संबंध मनोवैज्ञानिक जरूरतों से है। खासकर वे सपने जिन्हें बुरे कहा जाता है। आशंका है कि बुरे सपने तभी आते हैं जब रोजाना में व्यक्ति को गलत अनुभवों से गुजरना पड़ता हो।
ज्यादा अधूरे सपने, ज्यादा बुरे सपने : ब्रिटेन की कार्डिफ यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता नेट्टा के मुताबिक, जागृत अवस्था में हमारी मनोवैज्ञानिक जरूरतों के अनुभव ही हमारे सपनों में प्रतिबिंबित होते हैं। विशेषज्ञों का दावा है कि दोनों प्रकार के अध्ययन में पाया गया है कि कुंठा और भावनाएं एक विशेष प्रकार की मनोवैज्ञानिक जरूरतों से जुड़ी होती हैं और इनका प्रभाव रात में आने वाले सपनों में देखने को मिलता है। शोध में पाया गया कि जिनकी दैनिक मनोवैज्ञानिक जरूरतें पूरी नहीं होतीं, वे ज्यादा कुंठा में होते हैं। ऐसे लोगों को ज्यादा नकारात्मक सपने आते हैं। ऐसे लोगों में दुख की या गुस्से की भावनाएं ज्यादा देखने को मिलती है।
यह बताया उपचार : शोध विशेषज्ञ वींस्टेन के अनुसार, बार-बार सपने आना तनावपूर्ण मनोवैज्ञानिक अनुभवों को दर्शाता है और ऐसी स्थिति में व्यक्ति को उपचार या काउंसलर क जरूरत होती है। शोध में यह भी कहा गया है कि जब इंसान को बार बार सपने आते हैं तो यह समझ लेना चाहिए कि उसके जीवन में कोई ज्यादा तनावपूर्ण समस्या है, जिसका वह समाधान नहीं निकाल पा रहा।
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