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शादी के बाद महज तीन दिन ही पति को देख सकी थी अमरा, फिर आई शहीद होने की खबर

वर्ष 1971 में भारत पाक युद्ध में शहीद हुए एक जवान की पत्नी अमरा देवी ने अपनी पति की पहली तस्वीर 47 साल बाद देखी। वह कहती हैं यह तस्वीर उनके जीवन की सबसे बड़ी पूंजी है।

By Sunil NegiEdited By: Published: Sun, 16 Dec 2018 08:09 AM (IST)Updated: Sun, 16 Dec 2018 10:26 PM (IST)
शादी के बाद महज तीन दिन ही पति को देख सकी थी अमरा, फिर आई शहीद होने की खबर
शादी के बाद महज तीन दिन ही पति को देख सकी थी अमरा, फिर आई शहीद होने की खबर

उत्‍तरकाशी, शैलेंद्र गोदियाल। वर्ष 1971 में भारत-पाक युद्ध में शहीद हुए गाडर्समैन सुंदर सिंह की पत्नी अमरा देवी ने अपनी पति की पहली तस्वीर 47 साल बाद देखी। 65 वर्ष की अमरा देवी कहती हैं कि वर्ष 1971 में उनकी शादी हुई थी और शादी के दो-तीन दिन बाद पति अपनी ड्यूटी पर चले गए। इसके बाद केवल उनके शहीद होने की खबर ही मिली। वह कहती हैं कि पति की यादों को संजोने के लिए उनके पास एक तस्वीर तक नहीं थी। इस बार जब जिला सैनिक कल्याण बोर्ड उत्तरकाशी और जिलाधिकारी डॉ. आशीष चौहान ने प्रयास किया तो उनके पति की एक धुंधली सी तस्वीर आई। वह कहती हैं यह तस्वीर उनके जीवन की सबसे बड़ी पूंजी है। 

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उत्तरकाशी के डुंडा ब्लॉक के पटारा गांव निवासी सुंदर सिंह गढ़वाल राइफल में थे। वह गाडर्स सेंटर कामटी (महाराष्ट्र) में तैनात थे। वर्ष 1971 में जब उनकी शादी हुई, तब भारत-पाक युद्ध भी शुरू हो गया। उनकी छुट्टी रद कर दी गई और तत्काल ड्यूटी ज्वाइन करने के लिए तार आया। युद्ध में सुंदर सिंह शहीद हो गए। तब से हर वर्ष विजय दिवस के आयोजन पर सुंदर सिंह के परिजनों और पत्नी को आमंत्रित किया जाता है, लेकिन शहीद को श्रद्धांजलि देने के लिए परिवार और सैनिक कल्याण के पास उनकी एक तस्वीर तक नहीं थी।

सैनिक कल्याण बोर्ड और जिला प्रशासन ने पिछले वर्ष इसके लिए प्रयास किया। जिलाधिकारी डॉ. आशीष चौहान ने स्मृति के आधार पर चित्र बनाने के लिए अमरा देवी से पूछा, लेकिन उन्होंने बताया कि उन्हें पति की सूरत ज्यादा याद नहीं है। वे शादी के बाद अपने पति को ढंग से देख भी नहीं पाई थी।

इसके बाद जिला सैनिक कल्याण अधिकारी कमांडर डीडी पंत, सहायक सैनिक कल्याण अधिकारी सुबेदार चंदर सिंह रावत ने गाडर्स सेंटर कामटी महाराष्ट्र से संपर्क साधा। उत्तरकाशी के जिलाधिकारी डॉ. आशीष चौहान ने बताया कि कई बार पत्राचार के बाद शहीद की तस्वीर मिल सकी।

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