तीर्थाटन के साथ ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत के दर्शन, पर्यटक और तीर्थयात्री सहजता से कर सकते हैं सैर
यमुना घाटी में ऐसे स्थलों की भरमार है जो तीर्थाटन के साथ ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत भी समेटे हुए हैं। उत्तरकाशी जिले में समुद्रतल से 10610 फीट की ऊंचाई पर स्थित प्रसिद्ध यमुनोत्री धाम को जोड़ने वाले यात्रा मार्ग और यमुना नदी के किनारे कई धार्मिक ऐतिहासिक एवं रमणीक स्थल मौजूद हैं जिनकी सैर पर्यटक और तीर्थयात्री सहजता से कर सकते हैं।
शैलेंद्र गोदियाल, उत्तरकाशी। यमुना घाटी में ऐसे स्थलों की भरमार है, जो तीर्थाटन के साथ ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत भी समेटे हुए हैं। उत्तरकाशी जिले में समुद्रतल से 10610 फीट की ऊंचाई पर स्थित प्रसिद्ध यमुनोत्री धाम को जोड़ने वाले यात्रा मार्ग और यमुना नदी के किनारे कई धार्मिक, ऐतिहासिक एवं रमणीक स्थल मौजूद हैं, जिनकी सैर पर्यटक और तीर्थयात्री सहजता से कर सकते हैं।
इनमें लाखामंडल, थान गांव, गंगनानी, तिलाड़ी मैदान, खरसाली, गुलाबीकांठा जैसे पर्यटन स्थलों की सैर में आधे घंटे से लेकर दो घंटे तक का समय लगता है। ...तो आइए! परिचित होते हैं इनकी महत्ता, इतिहास, भूगोल, संस्कृति और लोक परंपराओं से। यकीन जानिए यमुनोत्री यात्रा के दौरान आप इन स्थलों पर जाने का लोभ संवरण न कर पाएंगे।
लाखामंडल में कराया था दुर्योधन ने लाक्षागृह का निर्माण
उत्तरकाशी जिले से लगे देहरादून जिले में यमुनोत्री हाईवे पर बर्नीगाड के निकट स्थित ऐतिहासिक एवं पौराणिक स्थल लाखामंडल में सभ्यता के अवशेष बिखरे पड़े हैं। समुद्रतल से 1372 मीटर की ऊंचाई पर स्थित लाखामंडल के अतीत को कौरव-पांडव से जोड़कर देखा जाता है।
मान्यता है कि दुर्योधन ने यहां पांडवों को मरवाने के लिए लाक्षागृह का निर्माण करवाया था। तब पांडवों ने एक गुफा की मदद से अपने प्राणों की रक्षा की थी। यह गुफा लाखामंडल गांव से एक किमी पहले सड़क के किनारे स्थित है। लाखामंडल में एक भव्य शिव मंदिर है।
साथ ही अन्य छोटे मंदिरों के अवशेष भी हैं, जिनका निर्माण काल 12वीं से 13वीं सदी के बीच का माना जाता है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने लाखामंडल को ऐतिहासिक धरोहर घोषित किया हुआ है। यमुनोत्री धाम के मुख्य पड़ाव बड़कोट से लाखामंडल पहुंचने के लिए 25 किमी की दूरी तय करनी पड़ती है।
ऋषि जमदग्नि की तपस्थली थान गांव
यमुनोत्री धाम को जोड़ने वाले यात्रा पड़ाव खरादी के निकट स्थित थान गांव को भगवान परशुराम के पिता ऋषि जमदग्नि की तपस्थली माना जाता है। गांव में ऋषि जमदग्नि के पौराणिक मंदिर के अलावा श्रीकृष्ण और सोमेश्वर महाराज का मंदिर भी है। यहां स्थित कुबेर भंडार में 12 शिवलिंग मौजूद हैं।
गांव के निकट एक स्थान ऐसा है, जहां ऋषि जमदग्नि की पत्नी रेणुका की बहन बेणुका का पति राजा सहस्रबाहु अपनी सेना लेकर पहुंचा था। तब रेणुका ने कामधेनु गाय की मदद से सहस्रबाहु की सेना को भोजन कराया था। इस स्थान को ‘सेना की सेरी’ कहते हैं। गांव में आप रवांई संस्कृति की झलक देख सकते हैं। थान गांव पहुंचने के लिए बड़कोट से 11 किमी की दूरी तय करनी पड़ती है।
प्रयागराज से पहले यमुना से गंगा की धारा का मिलन
यमुनोत्री यात्रा मार्ग पर बड़कोट से सात किमी दूर यमुना नदी के किनारे गंगनानी (गंगाणी) कस्बा पड़ता है, जो कि हाईवे से 300 मीटर की दूरी पर है। मान्यता है कि प्रयागराज से पहले यहां गंगा की एक धारा यमुना नदी में मिलती है।
यहां यमुना तट पर एक प्राचीन कुंड है, जिससे निकलने वाली जलधारा को गंगा की धारा माना जाता है। मान्यता है ऋषि जमदग्नि ने अपने तपोबल से यमुना तट पर गंगा की इस धारा को प्रकट किया था।
ऐतिहासिक तिलाड़ी मैदान
यमुनोत्री धाम के मुख्य पड़ाव बड़कोट से महज 3.5 किमी दूर यमुना नदी के किनारे ऐतिहासिक तिलाड़ी मैदान पड़ता है। यहां 30 मई 1930 को टिहरी राजशाही से हक-हकूक बचाने के लिए हजारों की संख्या में स्थानीय लोग इकट्ठा हुए थे।
राजशाही की पुलिस ने इन निहत्थे आंदोलनकारियों पर गोलियां चलाई, जिसमें 200 से अधिक लोग मारे गए और सौ से अधिक घायल हुए। जनआंदोलनों में यह पर्वतीय क्षेत्र का पहला युगांतकारी आंदोलन था। यहां बलिदानियों का स्मारक बना हुआ है। इन आंदोलनकारियों को स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा हासिल है।
तीर्थाटन, पर्यटन और लोक संस्कृति के दर्शन
समुद्रतल से 2700 मीटर की ऊंचाई पर स्थित खरसाली गांव के बीच में शनिदेव मंदिर स्थित है, जिसकी बड़कोट से दूरी 45 किमी है। मान्यता है कि अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने इस मंदिर को बनवाया था। तब पांडव खरसाली के निकट लाखामंडल भी आए थे। यह चार मंजिला मंदिर लकड़ी व पत्थर से बना हुआ है और अब तक कई भूकंप व आपदा झेल चुका है।
खरसाली गांव में यमुना का मंदिर भी है। कपाट बंद होने के बाद देवी यमुना की डोली इसी मंदिर में विराजती है। शीतकाल में शनि मंदिर के कपाट बंद रहते हैं और खरसाली गांव बर्फ से ढका रहता है। इसलिए शनि देवता के दर्शन का सबसे उचित समय चारधाम यात्राकाल ही है।
वैशाखी से लेकर 15 दिसंबर तक श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए आ सकते हैं। श्रावण संक्रांति पर दो दिन लगने वाला मेला खरसाली का मुख्य आकर्षण है। इस मेले में यमुना घाटी की लोक परंपरा और संस्कृति के दर्शन होते हैं।
सुखद अनुभूति कराता गुलाबी कांठा
यमुनोत्री धाम के निकट समुद्र तल से 12 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित गुलाबी कांठा आनंद की अनुभूति कराने वाला बुग्याल (घास का मैदान) है। चारों ओर से बर्फ की चादर ओढ़े गगन चूमते शिखरों के बीच गुलाबी कांठा सम्मोहन बिखेरता प्रतीत होता है। गुलाबी कांठा को जोड़ने वाले मार्ग पर घास-लकड़ी से बनी पारंपरिक छानियों में ठहरना और रामदाने के हलुवे का स्वाद खास अनुभूति कराता है।
बड़कोट से 38 किमी दूर हनुमान चट्टी से ही इस ट्रैक पर ग्रामीण जनजीवन की झांकी दिखने लगती है। गुलाबी कांठा में सूर्योदय का दृश्य पर्यटकों को खासा रोमांचित करता है। गुलाबी कांठा की सैर के लिए समर और विंटर, दोनों मौसम अनुकूल हैं। दिसंबर से मार्च तक गुलाबी कांठा पूरी तरह बर्फ से ढका रहता है।
इस दौरान यहां आने वाले पर्यटक स्कीइंग व स्नो बोर्डिंग का लुत्फ लेते हैं। जबकि, अप्रैल से नवंबर तक हरे-भरे बुग्याल मन को हर्षाते हैं। गुलाबी कांठा पहुंचने के लिए हनुमान चट्टी से से पैदल ट्रैक शुरू होता है। हनुमान चट्टी से तीन किमी दूर कंडोला थात और यहां से सात किमी दूर सीमा टाप पड़ता है। सीमा टाप से गुलाबी की दूरी चार किमी है।
खाने-ठहरने की पर्याप्त व्यवस्था
इन पर्यटन स्थलों में होटल व होम स्टे पर्याप्त संख्या में उपलब्ध हैं। यहां पर्यटकों की मांग के अनुरूप भोजन मिल जाता है। साथ ही स्थानीय राजमा की दाल, लाल भात, चावल की पापड़ी, गेहूं के आटे का हलुवा जैसे पारंपरिक पकवानों का जायका लिया जा सकता है।
इसके अलावा, पर्यटक मंडुवा, झंगोरा, चौलाई आदि मोटा अनाज भी खरीद सकते हैं। गुलाबी कांठा की सैर करने वालों के लिए हनुमान चट्टी में होटल के अलावा ट्रैकिंग एजेंसी और ट्रैकिंग के लिए टेंट व अन्य सामान भी उपलब्ध है।
ऐसे पहुंचें
बड़कोट यमुनोत्री धाम का मुख्य पड़ाव है। ऋषिकेश से यहां पहुंचने के लिए चंबा व धरासू होते हुए 169 किमी की दूरी सड़क मार्ग से तय करनी पड़ती है। जबकि, देहरादून से मसूरी होते हुए बड़कोट की दूरी 130 किमी है।
बड़कोट से उक्त सभी पर्यटन स्थलों तक पहुंचने के लिए 3.5 किमी से 45 किमी तक की दूरी तय करनी पड़ती है। बड़कोट व लाखामंडल को छोड़कर अन्य सभी स्थलों पर रात के वक्त ठंड काफी रहती है। इसलिए यहां आ रहे हैं तो गर्म कपड़े अवश्य साथ में लाएं।