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उत्‍तराखंड का यह गुरुकुल तैयार कर रहा है वेदों के महारथी

टिहरी जिले के ग्राम फैगुल स्थित वेद विगनान (विज्ञान) महाविद्यापीठ में वेदों के महारथी तैयार हो रहे हैं। वर्तमान में विद्यापीठ में 30 बच्चे वेद-वेदांग की पढ़ाई कर रहे हैं।

By Sunil NegiEdited By: Published: Sat, 27 May 2017 02:58 PM (IST)Updated: Sun, 28 May 2017 05:05 AM (IST)
उत्‍तराखंड का यह गुरुकुल तैयार कर रहा है वेदों के महारथी
उत्‍तराखंड का यह गुरुकुल तैयार कर रहा है वेदों के महारथी

नई टिहरी, [अनुराग उनियाल]: असोम के चिरान जिले के कोयलावाला गांव का 11 वर्षीय पीतांबर तीन साल पहले तक नशे के आदी अपने पिता के गुस्से और परिवार की मजबूरी का प्रत्यक्षदर्शी रहा। नशे के इस भयानक रूप ने बचपन में ही उसे अंदर तक तोड़कर रख दिया। 

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लेकिन, आज वेद मंत्रों को उच्चारण करता पीतांबर एक दिव्य बालक नजर आता है। साथ ही उसका आत्मबल भी लौट आया है। ऐसा संभव हो पाया टिहरी जिले के ग्राम फैगुल स्थित वेद विगनान (विज्ञान) महाविद्यापीठ के प्रयासों से। जहां पर कई प्रदेशों के बच्चों को वेद-वेदांग का निश्शुल्क ज्ञान दिया जा रहा है।

नई टिहरी से 25 किमी दूर फैगुल गांव आधुनिक युग में भी गुरुकल पद्धति से वेदों के महारथी तैयार कर रहा है। वर्ष 2005 में यहां पर श्रीश्री रविशंकर ट्रस्ट की ओर से महाविद्यापीठ की स्थापना की गई। विद्यापीठ में छठवीं से 12वीं तक की वेद-पुराणों का अध्ययन कराया है। फिलवक्त यहां उत्तराखंड के अलावा असोम, प.बंगाल, उत्तर प्रदेश व हिमाचल प्रदेश के बच्चे अध्ययन कर रहे हैं।

पीतांबर को भी आठ साल की उम्र में असोम के एक शिक्षक यहां लेकर आए। इसी के साथ हुई उसके नए जीवन की शुरुआत। आज वह आसानी से वेद-पुराण के मंत्रों का उच्चारण कर लेता है। वर्तमान में विद्यापीठ में 30 बच्चे वेद-वेदांग की पढ़ाई कर रहे हैं। इसकी शुरुआत सुबह चार बजे योग-ध्यान से होती है। फिर सभी बच्चे रुद्र पूजा और वेदों का ज्ञान लेते हैं। 

विद्यापीठ का मुख्य ध्येय भारतीय दर्शन एवं संस्कृति के प्रति बच्चों को जागरूक करना है। विद्यापीठ के छात्र सुमित मिश्रा कहते हैं कि यहां पर आने के बाद जीवन में एक नया बदलाव आया है। विद्यापीठ में ही सभी छात्रों के लिए रहने-खाने की व्यवस्था की गई है। 

वहीं, वेद विगनान महाविद्यापीठ के प्रबंधक स्वामी विश्वचैतन्य का कहना है कि धर्म-संस्कृति के संरक्षण के लिए विद्यापीठ की स्थापना की गई है। हम अपनी सनातन संस्कृति का ज्ञान दुनियाभर में अपने शिष्यों के माध्यम से फैलाने का प्रयास कर रहे हैं।

वहीं, स्थानीय निवासी विनोद उनियाल का कहना है कि विद्यापीठ में बच्चों को शिक्षा एवं संस्कार दोनों एक साथ दिए जा रहे हैं। इससे नए दौर के युवाओं में बेहतर संदेश जा रहा है। ऐसेप्रयास अन्य स्थानों पर भी किए जाने चाहिये।

उधर, स्थानीय निवासी कुशाल सिंह रावत का कहना है कि विद्यापीठ काफी पहले से संचालित हो रहा है। यहां की शांत वादियों में हमारी सनातन संस्कृति का ज्ञान बच्चों को दिया जा रहा है। इसका लाभ स्थानीय बच्चों को भी मिल रहा है।

ऐसे होता है विद्यापीठ में प्रवेश 

वेद विगनान महाविद्यापीठ में पांचवीं पास कोई भी बच्चा छठवीं में प्रवेश ले सकता है। प्रवेश के लिए बच्चे की आसान परीक्षा ली जाती है, जिसमें सफल रहने के बाद दाखिला मिल जाता है। पढ़ाई के लिए अभिभावकों को कोई फीस नहीं देनी पड़ती।

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