श्रीनगर मेडिकल कॉलेज सेना को सौंपने की हो रही तैयारी
श्रीनगर मेडिकल कॉलेज में व्यवस्थाएं पटरी पर न आने के चलते राज्य सरकार इस कॉलेज को सेना की मेडिकल कोर को सौंपने पर विचार कर रही है।
श्रीनगर गढ़वाल [जेएनएन]: तमाम कोशिशों के बाद भी श्रीनगर मेडिकल कॉलेज में व्यवस्थाएं पटरी पर न आने के चलते राज्य सरकार इस कॉलेज को सेना की मेडिकल कोर को सौंपने पर विचार कर रही है। सैद्धांतिक सहमति के बाद अब आगामी 27 अप्रैल को लखनऊ में चिकित्सा शिक्षा विभाग की सेना के उच्चाधिकारियों के साथ इस मुद्दे पर बातचीत होनी है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने पौड़ी जिले के बुघाणी गांव में पत्रकारों से बातचीत में यह जानकारी साझा की।
मुख्यमंत्री रावत ने बताया कि हालिया दिल्ली दौरे के वक्त इस संबंध में उनकी दिल्ली में सेना के उच्चाधिकारियों से वार्ता हुई है, जो सकारात्मक रही। आमजन को चिकित्सा सुविधा देने और मेडिकल कॉलेज की आधी सीटें उत्तराखंडवासियों के लिए आरक्षित करने पर सैन्य अधिकारियों से साथ पहले दौर की चर्चा की गई।
सैन्य अधिकारी सैद्धांतिक रूप से इस प्रस्ताव पर सहमत हैं। 27 अप्रैल को अगले दौर की वार्ता के लिए उत्तराखंड के चिकित्सा शिक्षा निदेशक डा. आशुतोष सयाना आर्मी मेडिकल कोर के वरिष्ठ अधिकारियों से वार्ता करने के लिए लखनऊ जा रहे हैं।
वार्ता में प्रस्ताव के बिंदुओं पर विस्तार से विचार विमर्श कर किसी नतीजे पर पहुंचने का प्रयास किया जाएगा। समझौते में स्थानीय लोगों के हितों का पूरा ख्याल रखा जाएगा।
मुख्यमंत्री का मानना है कि श्रीनगर मेडिकल कॉलेज सेना की मेडिकल कोर का हिस्सा बनने के बाद स्थानीय लोगों को विशेषज्ञ डाक्टरों की सुविधा मिल जाएगी, साथ ही सेना को भी संसाधनयुक्त मेडिकल कॉलेज मिलने से इसके संचालन में ज्यादा दिक्ततें पेश नहीं आएंगी। सैन्य बाहुल्य होने के नाते सैनिक परिवारों को भी इसका लाभ मिल सकेगा।
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2008 में स्थापित श्रीनगर मेडिकल कॉलेज का अव्यवस्थाओं से पीछा अब तक नहीं छूट पाया। दो साल बाद ही यहां से फैकल्टियों के जाने को सिलसिला चल पड़ा, जो अभी तक जारी है। नौ सालों में नौ प्राचार्य यहां योगदान दे चुके हैं। इन्हें रोकने के सरकार के प्रयास सफल नहीं हो पा रहे हैं।
वर्तमान में सीनियर रेजीडेंट के 80 फीसद और असिस्टेंट प्रोफेसर के 28 फीसद पद रिक्त चल रहे हैं। यही स्थिति स्टाफ नर्स के 350 पदों के मुकाबले केवल 140 ही कार्यरत हैं। इसका खामियाजा समुचित इलाज न मिल पाने के रूप में लोगों को भुगतना पड़ रहा है। पांच सालों से यह केवल रेफर सेंटर बना हुआ है।
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