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    देश की सबसे बड़ी दूरबीन तैयार, बेल्जियम से पीएम मोदी करेंगे राष्ट्र को समर्पित

    आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (एरीज) की देखरेख में नैनीताल जिले के देवस्थल में स्थापित देश की सबसे बड़ी दूरबीन (टेलीस्कोप) कल से काम करना शुरू कर देगी। बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व बेल्जियम के प्रधानमंत्री चाल्र्स मिचेल ब्रसेल्स में बटन दबाकर टेलीस्कोप को राष्ट्र को समर्पित करेंगे।

    By sunil negiEdited By: Updated: Wed, 30 Mar 2016 12:59 PM (IST)

    नैनीताल। आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (एरीज) की देखरेख में नैनीताल के देवस्थल में स्थापित देश की सबसे बड़ी दूरबीन (टेलीस्कोप) कल से काम करना शुरू कर देगी। बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व बेल्जियम के प्रधानमंत्री चाल्र्स मिचेल संयुक्त रूप से ब्रसेल्स में बटन दबाकर टेलीस्कोप को राष्ट्र को समर्पित करेंगे। देवस्थल में मुख्य अतिथि केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. हर्षवर्धन होंगे। 3.6 मीटर व्यास की ऑप्टिकल दूरबीन डेढ़ सौ करोड़ की लागत से नौ साल में तैयार की गई है।

    परियोजना प्रबंधक बृजेश कुमार व एरीज के निदेशक डॉ. वहाबउद्दीन ने बताया कि दूरबीन का निर्माण कार्य वर्ष 2007 में शुरू हो गया था। इस दूरबीन निर्माण में सात प्रतिशत हिस्सेदारी बेल्जियम की, जबकि 93 प्रतिशत भारत की है। कल सांय 5.45 बजे प्रधानमंत्री मोदी व बेल्जियम के प्रधानमंत्री मिचेल संयुक्त रूप से दूरबीन का बटन दबाकर राष्ट्र को समर्पित करेंगे। इसके लिए देवस्थल में सभी तैयारियां पूरी कर ली गई है।

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    इधर केंद्रीय मंत्री डॉ. हर्षवर्धन देवस्थल में आयोजित कार्यक्रम में शिरकत करेंगे। उन्होंने बताया कि एशिया की पहली ऐसी दूरबीन होगी जो चारों दिशाओं का अध्ययन करने में सक्षम होगी। इसके अलावा क्रिटिकल आब्र्जवेशन करने में भी यह दूरबीन मील का पत्थर साबित होगी।

    दूरबीन की टेस्टिंग सफल हो चुकी है। पिछले साल दूरबीन के स्टोलेशन का कार्य पूरा कर लिया गया था। टेस्टिंग में करीब छह से अधिक माह का समय लग गया। देवस्थल में एक्टीवेशन कार्यक्रम के दौरान प्रोजेक्ट मैनेजमेंट बोर्ड के चेयरमैन प्रो. पीसी अग्रवाल के अलावा एरीज के वैज्ञानिक व अधिकारी भी मौजूद रहेंगे।
    अंतरिक्ष के रहस्य उजागर करने में मिलेगी मदद
    ब्रह्मांड के जिन रहस्यों को अभी तक नहीं जाना जा सका था उन्हें उजागर करने में यह दूरबीन मील का पत्थर साबित होगी। खोज की दिशा में आकाश गंगाओं की उत्पत्ति, तारों का जीवन चक्र, ब्लैक होल की कार्यविधि के अलावा कई अन्य रहस्य इस दूरबीन के जरिये जाने जा सकेंगे। इस दूरबीन के स्थापित हो जाने से भारतीय वैज्ञानिकों के लिए अध्ययन कार्य आसान हो जाएंगे। इससे पूर्व वैज्ञानिकों को अन्य देशों की शरण लेनी पड़ती थी।
    अध्ययन के लिए लिहाज से अहम है देवस्थल
    आसमान के ओब्जरवेशन के लिहाज से देवस्थल बेहद उपयोगी स्थान है। यहां से आसमान चारों तरफ साफ नजर आता है। हवा, ध्वनि व प्रकाश के बाधा भी बहुत कम है। कई बार अध्ययन के बाद इस स्थान का चयन दूरबीन लगाने के लिए किया गया, जिसमें एस्ट्रोनोमी से संबंधित वैज्ञानिकों की टीम शामिल रही थी।
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