Move to Jagran APP

इस मंदिर में बेल पत्र अर्पित करने से खुश हो जाते हैं शिव

हरिद्वार स्थित बिल्वकेश्वर महादेव मंदिर पर भगवान शंकर बेल पत्र चढ़ाने से ही प्रसन्न हो जाते हैं। श्रावण मास में यहां दूर-दराज से कांवड़िये पहुंचकर गौरीकुंड में स्नान करते हैं।

By BhanuEdited By: Published: Sat, 23 Jul 2016 01:00 PM (IST)Updated: Sat, 23 Jul 2016 01:03 PM (IST)

हरिद्वार, [जेएनएन]: हरिद्वार स्थित बिल्वकेश्वर महादेव मंदिर पर भगवान शंकर मात्र बेल पत्र चढ़ाने से ही प्रसन्न हो जाते हैं। श्रावण मास में यहां दूर-दराज से कांवड़िये पहुंचते हैं और गौरीकुंड में स्नान कर पुण्य अर्जित करते हैं।
बिल्वकेश्वर महादेव मंदिर का वर्णन स्कंद पुराण के केदारखंड में किया है। माता पार्वती ने तीन हजार वर्ष तक यहां तपस्या की थी। तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने यहां साखा के रूप में दर्शन देकर माता पार्वती को विवाह का वरदान दिया था। तभी से यह स्थल बिल्वकेश्वर नाम से प्रसिद्ध है।

loksabha election banner

पढ़ें:-शिव की अद्भुत माया, यहां प्रकृति करती है शिव का जलाभिषेक
मंदिर के पुजारी महंत शीतलबंध ने बताया कि बिल्वकेश्वर महादेव मंदिर अतिपवित्र, पापनाशक, सकल कामनादायक, पुत्रप्रद व धनप्रद स्थल है। मंदिर को बिल्व तीर्थ के नाम से भी जाना जाता है। बिल्व तीर्थ (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) रूप में फल देने वाला स्थल है।

पढ़ें:-उत्तराखंड में भी है कोणार्क, जानने को क्लिक करें
मंदिर के पूर्व भाग से निरंतर जल की धारा बहती रहती है। जल के स्मरण मात्र से गंगा स्नान का फल मिलता है। यहां वर्तमान में नीम के वृक्ष के नीचे भगवान बिल्वकेश्वर का शिवङ्क्षलग स्थापित है।

पढ़ें-केदारनाथ मंदिर की है अनोखी कहानी, भूमि में समा गए थे शिव
शिवलिंग के दक्षिण भाग में मणि से भूषित मस्तक वाला अश्वतर नाम का महानाग है। उन्होंने बताया कि शिवरात्रि व सावन माह में यहां भगवान शंकर का रूद्राभिषेक व अनुष्ठान किया जाता हैं।

PICS: टपकेश्वर महादेव मंदिर, प्रकृति करती है जलाभिषेक
सावन में दर्शन को पहुंचते हैं कांवड़िये
सावन में यहां भगवान बिल्वकेश्वर के दर्शन करने पहुंचते हैं। मंदिर प्रबंध समिति की ओर से यहां कांवड़ियों के लिए नि:शुल्क रहने, खाने का प्रबंध किया है। प्रतिदिन सैकड़ों कांवड़िये भगवान बिल्वकेश्वर के दर्शन कर यहां स्थित गौरीकुंड में स्नान कर पुण्य अर्जित करते हैं।
पढ़ें-केदारनाथ मंदिर इतने सौ सालों तक दबा रहा बर्फ के अंदर, जानने के लिए पढ़ें.


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.