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अब विश्व धरोहर बनेगा उत्तराखंड का यह मंदिर समूह, पढ़ें खबर

उत्तराखंड के 124 मंदिरों के अनूठे समूह जागेश्वर धाम को विश्व धरोहर का दर्जा दिलाने की तैयारी शुरू हो गई है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) ने जागेश्वर मंदिर समूह का नाम यूनेस्को (यूनाइटेड नेशन्स एजुकेशनल, साइंटिफिक एंड कल्चरल ऑर्गेनाइजेशन) संरक्षण की संभावित सूची में शामिल कर लिया है।

By BhanuEdited By: Published: Wed, 17 Feb 2016 10:05 AM (IST)Updated: Wed, 17 Feb 2016 01:17 PM (IST)
अब विश्व धरोहर बनेगा उत्तराखंड का यह मंदिर समूह, पढ़ें खबर

देहरादून (सुमन सेमवाल)। उत्तराखंड के 124 मंदिरों के अनूठे समूह जागेश्वर धाम को विश्व धरोहर का दर्जा दिलाने की तैयारी शुरू हो गई है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) ने जागेश्वर मंदिर समूह का नाम यूनेस्को (यूनाइटेड नेशन्स एजुकेशनल, साइंटिफिक एंड कल्चरल ऑर्गेनाइजेशन) संरक्षण की संभावित सूची में शामिल कर लिया है।
अब वैश्विक मानकों के आधार पर अल्मोड़ा जिले में स्थित जागेश्वर धाम की खूबियों और ऐतिहासिकता को क्रमबद्ध कर डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) तैयार की जाएगी। ताकि उसे स्वीकृति के लिए यूनेस्को को भेजा जा सके।
एएसआइ की देहरादून स्थित विज्ञान शाखा में ‘इमर्जिंग ट्रेंड्स इन दि कंजर्वेशन ऑफ कल्चरल हेरिटेज’ विषय पर आयोजित कार्यशाला में एएसआइ के निदेशक (पुरातत्व) डॉ. सैयद जमाल हसन ने यह बात सार्वजनिक की।
डॉ. हसन के अनुसार किसी भी धरोहर को यूनेस्को के संरक्षण के अधीन लाने के लिए पहली कार्रवाई है कि संबंधित धरोहर को संभावित सूची में शामिल किया जाए।
उन्होंने बताया कि करीब एक साल तक धरोहर का नाम संभावित सूची में रहता है और फिर उसे अंतिम स्वीकृति के लिए संस्कृति मंत्रालय को भेजा जाता है।
अल्मोड़ा जनपद के जागेश्वर धाम को यूनेस्को के विश्व मानचित्र पर पहचान दिलाने का पहला पड़ाव पार कर लिया गया है। संस्कृति मंत्रालय की मुहर लगते ही जरूरी औपचारिकताएं पूरी कर प्रस्ताव यूनेस्को को भेज दिया जाएगा।
ऐतिहासिक महत्व
जागेश्वर धाम उत्तराखंड की पहली ऐसी ऐतिहासिक विरासत है, जिसे विश्व विरासत बनाने की तैयारी की जा रही है। डॉ. हसन ने बताया कि जागेश्वर मंदिर समूह तीन कालों (कत्यूरीकाल, उत्तर कत्यूरीकाल व चंद्र काल) में अस्तित्व में आया। इनकी अवधि छठी से नवीं सदी के मध्य बताई जाती है। उस समय उत्तर भारत में गुप्त साम्राज्य था, इसी कारण यहां के मंदिरों में गुप्त साम्राज्य की झलक भी नजर आती है।
धार्मिक महत्व
पुराणों के अनुसार भगवान शिव और सप्तऋषियों ने यहां तपस्या की थी। कहा जाता है कि प्राचीन समय में जागेश्वर मंदिर में मांगी गई मन्नतें उसी रूप में स्वीकार हो जाती थीं।
इस कारण इसका भारी दुरुपयोग भी होने लगा था। आठवीं सदी में आदि शंकराचार्य जागेश्वर आए थे और उन्होंने महामृत्युंजय मंदिर में स्थापित शिवलिंग को कीलित कर दुरुपयोग रोकने की व्यवस्था की थी।
माना गया कि इसके बाद बुरी कामना करने वालों की मनोकामनाएं पूरी नहीं होती थी और केवल मंगलकारी मनोकामनाएं ही पूरी होने लगीं।
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