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उत्‍तराखंड: मैदान की 20 सीटें होंगी निर्णायक

प्रदेश में सियासी अनिश्चितता के माहौल में जैसे राजनीतिक समीकरण बनते दिख रहे हैं, वे आने वाले विधानसभा चुनाव में मैदानी जिलों हरिद्वार व ऊधमसिंहनगर की 20 विधानसभा सीटों के निर्णायक स्थिति में आने के संकेत दे रहे हैं।

By sunil negiEdited By: Published: Wed, 27 Apr 2016 10:11 AM (IST)Updated: Wed, 27 Apr 2016 10:13 AM (IST)

देहरादून। प्रदेश में सियासी अनिश्चितता के माहौल में जैसे राजनीतिक समीकरण बनते दिख रहे हैं, वे आने वाले विधानसभा चुनाव में मैदानी जिलों हरिद्वार व ऊधमसिंहनगर की 20 विधानसभा सीटों के निर्णायक स्थिति में आने के संकेत दे रहे हैं। वजह यह है कि नौ विधायकों की बगावत के बाद निवर्तमान मुख्यमंत्री हरीश रावत कुमाऊं मंडल में सहानुभूति लहर को लेकर आशान्वित हैं, तो बागी विधायक रावत के खिलाफ गढ़वाल की उपेक्षा का सियासी दांव खेल चुके हैं। ऐसी स्थिति में यदि क्षेत्रीय संतुलन की सियासत हावी हुई, तो मैदानी जिलों की सीटें खासी अहम हो जाएंगी।
उत्तराखंड में राजनीतिक अनिश्चितता का यह घटनाक्रम भले ही कांग्रेस के नौ विधायकों की बगावत से शुरू हुआ, मगर निवर्तमान मुख्यमंत्री व कांग्रेस पार्टी इसके लिए सीधे तौर पर विपक्षी दल भाजपा और उसके केंद्रीय नेताओं पर दोष मढ़ रहे हैं। निवर्तमान मुख्यमंत्री इस मामले में भाजपा पर उत्तराखंड में तोड़फोड़ की राजनीति का आरोप लगाकर खुद को शहीद मुख्यमंत्री के तौर पर पेश कर रहे हैं। साफ है कि मौजूदा सियासी संकट के बीच आने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारियों में भी जुटे रावत सहानुभूति लहर पैदा होने को लेकर आशान्वित हैं।
कांग्रेस पार्टी की लोकतंत्र बचाओ यात्रा का फोकस मुख्य तौर पर गढ़वाल मंडल पर है, जिससे साफ है कि रावत कुमाऊं मंडल को लेकर खासे आश्वस्त हैं। उधर, नौ बागी विधायकों ने स्वर्गीय हेमवतीनंदन बहुगुणा की जयंती पर जिस तरह गढ़वाल की राजनीति का सियासी कार्ड खेला, वह भी इसी बात का संकेत है। साथ ही, हरीश रावत पर गैरसैंण के मामले पर सिर्फ राजनीति करने का आरोप लगाया है, उससे गढ़वाल की उपेक्षा के मुद्दे को हवा देने की रणनीति के संकेत भी मिल रहे हैं। यानी, कुमाऊं व गढ़वाल के इर्दगिर्द घूमती दिख रही सियासत में मैदानी जिले अलग थलग नजर आ रहे हैं।
यह दीगर बात है कि विधानसभा चुनाव के मद्देनजर यदि क्षेत्रीय राजनीतिक संतुलन की यह रणनीति वास्तव में परवान चढ़ी, तो फिर दो मैदानी जिलों की 20 विधानसभा सीटें ही प्रदेश में नई सरकार का भविष्य तय करने में निर्णायक हो सकती हैं। सीटों की संख्या के लिहाज से 11 विधानसभा सीटों वाला हरिद्वार जिला प्रदेश का सबसे बड़ा जिला है, जबकि ऊधमसिंहनगर जिले में नौ सीटें हैं। ऐसे में गढ़वाल व कुमाऊं के बीच छिड़ती दिख रही इस राजनीतिक जंग के बाद सियासत का अगला अखाड़ा इन दो मैदानी जिलों में भी खुल सकता है।


दो मैदानी जिलों की विधानसभा सीटें

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हरिद्वार जिला:

हरिद्वार, बीएचइएल रानीपुर, ज्वालापुर, भगवानपुर, झबरेड़ा, पिरान कलियर, रुड़की, खानपुर, मंगलौर, लक्सर, हरिद्वार ग्रामीण।

ऊधमसिंहनगर जिला:
जसपुर, काशीपुर, बाजपुर, गदरपुर, रुद्रपुर, किच्छा, सितारगंज, नानकमत्ता, खटीमा।

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