वन महकमे ने समझा बारिश की बूंदों का महत्व, जंगलों में बूंदें सहेजेंगी खाल-चाल
उत्तराखंड में वन विभाग ने वर्तमान वर्षाकाल में वर्षा जल संरक्षण पर फोकस करने का निर्णय लिया गया है। इसके तहत जंगलों में वर्षा जल संचयन किया जाएगा।
देहरादून, [जेएनएन]: देर से ही सही आखिरकार वन महकमे को भी समझ आ गया कि बारिश की बूंदों को सहेजने में ही भलाई है। इस मर्तबा जंगल की आग ने पेशानी में बल डाले तो बात सामने आई कि यदि वर्षा जल संरक्षण के ठोस प्रयास होते तो जंगलों में नमी रहती और आग की घटनाएं कम होती। साथ ही वन संपदा भी बचती। इसे देखते हुए विभाग ने इस बार वर्षा जल संरक्षण के लिए खाल-चाल के पारंपरिक तौर-तरीकों पर फोकस करने का निर्णय लिया है। इसके तहत राज्यभर में करीब तीन हजार से अधिक खाल (तालाबनुमा बड़े गड्ढे) पुनर्जीवित करने के साथ ही नए खाल-चाल तैयार किए जाएंगे। अन्य विभागों की भी इसमें मदद ली जाएगी।
दरअसल, उत्तराखंड में इस मर्तबा जंगल की आग ने जिस प्रकार विकराल रूप धारण किया, उसने महकमे के साथ ही हर किसी के माथे पर बल डाल दिए थे। अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि राज्यभर में जंगल में आग की 2016 घटनाएं हुई, जिनमें करीब 4400 हेक्टेयर वन क्षेत्र को नुकसान पहुंचा। कारणों की पड़ताल हुई तो बात सामने आई कि यदि जंगलों में नमी बनाए रखने के प्रयास होते तो आग की घटनाएं कम होती। जिन स्थानों पर बारिश के पानी को सहेजने के प्रयास हुए, वहां जंगल आग से बचे रहे। इसे देखते हुए महकमे ने अब मानसून सीजन में बारिश की बूंदों को सहेजने का निश्चय किया है।
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प्रमुख वन संरक्षक (नियोजन एवं वित्तीय प्रबंधन) जय राज बताते हैं कि सूबे में बड़ी संख्या में प्राकृतिक जलस्रोत सूख चुके हैं या फिर इनमें जलस्तर निरंतर घट रहा है। जंगलों में नमी न होने का एक कारण ये भी रहा, जिससे इस बार आग अधिक लगी। उन्होंने बताया कि इस सबको देखते हुए वर्तमान वर्षाकाल में वर्षा जल संरक्षण पर फोकस करने का निर्णय लिया गया है।
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उन्होंने बताया कि राज्यभर के जंगलों में तीन हजार से अधिक खाल हैं, जिनमें से कइयों में गाद भर चुकी है। इन सभी को पुनर्जीवित करने के साथ ही हर प्रभाग में नए तहत खाल-चाल बनाए जाएंगे। इसके लिए निर्देश जारी किए जा चुके हैं। यही नहीं, जल संस्थान, स्वजल, जलागम, सिंचाई समेत अन्य विभागों की भी मदद ली जाएगी। साथ ही वन पंचायतों को भी खाल-चाल बनाने को प्रेरित किया जाएगा।
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