आरटीआइ में काम के बोझ का नहीं चलेगा बहाना, पढ़िए पूरी खबर
राज्य सूचना आयुक्त एनएस नपलच्याल ने कहा कि सूचना का अधिकार अधिनियम में काम के बोझ का बहाना नहीं चलेगा।
देहरादून, जेएनएन। सूचना का अधिकार अधिनियम में काम के बोझ का बहाना नहीं चलेगा। राज्य सूचना आयुक्त एनएस नपलच्याल ने हरिद्वार कलेक्ट्रेट के सामान्य सहायक की इस दलील को खारिज करते हुए 26 दिन के विलंब पर 6500 रुपये का जुर्माना लगाया है।
यह सूचना भी कलेक्ट्रेट के ही राजस्व सहायक ने मांगी थी। सूचना देने में हुए विलंब के बाद जब यह मामला सूचना आयोग पहुंचा तो समतुल्य लोक सूचनाधिकारी बनाए गए सामान्य सहायक जितेंद्र कुमार ने कहा कि सूचना देने में 26 नहीं, बल्कि 11 दिन का विलंब हुआ है। क्योंकि सूचना देने की अवधि के बीच 11 दिन का अवकाश भी रहा। उन्होंने दलील दी कि उनके पास दो-दो पटल का भार है और वह निकाय चुनाव में व्यस्त रहने के बाद लोकसभा चुनाव में भी व्यस्त रहे। प्रकरण में सुनवाई करते हुए सूचना आयुक्त ने कहा कि आरटीआइ एक्ट में सूचना देने के लिए 30 दिन का समय तय किया गया है, जबकि सामान्य सहायक इस बात को स्वयं स्वीकार कर रहे हैं कि विलंब हुआ है। लिहाजा, वह छूट के हकदार नहीं हैं।
सूचना में 108 दिन का विलंब, 25 हजार जुर्माना
सूचना देने में विलंब के लिए सिर्फ लोक सूचनाधिकारी ही दंड के भागी नहीं होते हैं, बल्कि वह कार्मिक भी जिम्मेदार माने जाते हैं, जिन पर आवेदनों को उचित पटल पर पहुंचाने की जिम्मेदारी होती है। ऐसे ही एक मामले में राज्य सूचना आयुक्त चंद्र सिंह नपलच्याल ने अल्मोड़ा की सोमेश्वर तहसील के मुहर्रिर ज्यूडीशियल विवेक कुमार पर 25 हजार रुपये का अधिकतम जुर्माना लगाया। देहरादून के चुक्खुवाला निवासी अभिषेक रावत ने सोमेश्वर तहसील से विभिन्न बिंदुओं पर सूचना मांगी थी। तय समय के भीतर सूचना न मिलने पर उन्होंने सूचना आयोग में अपील की।
प्रकरण की सुनवाई में स्पष्ट हुआ कि अभिषेक रावत का आरटीआइ का आवेदन लोक सूचनाधिकारी कार्यालय में छह फरवरी को प्राप्त हुआ, उसे समय पर मुहर्रिर ज्यूडीशियल ने संबंधित पटल तक पहुंचाया ही नहीं। इसके बाद जब उन्होंने 20 मार्च 2018 को प्रथम विभागीय अपीलीय अधिकारी के पास अपील की, तो भी समय पर पटल तक नहीं पहुंचाया गया। इसी के चलते सूचना निर्धारित 30 दिन के भीतर देने की जगह 108 दिन के विलंब से दी जा सकी।
अपने बचाव में मोहर्रिर ज्यूडीशियल ने इस लापरवाही को स्वीकार करते हुए कहा कि वह अल्पवेतन वाले कार्मिक हैं और काम की अधिकता के चलते वह समय पर आवेदन पत्र व अपील को उचित पटल तक नहीं पहुंचा पाए। हालांकि, इसे वाजिब कारण न मानते हुए आयोग ने उन पर 25 हजार रुपये का जुर्माना लगा दिया। तहसीलदार को निर्देशित किया गया कि वह मोहर्रिर ज्यूडीशियल के वेतन से जुर्माना की वसूली कर राजकोष में जमा कराना सुनिश्चित करें।
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