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चंबल के डकैत मलखान सिंह की कहानी, उनके भाई की जुबानी

80 के दशक में मध्य प्रदेश के भिंड जिले में चंबल के डाकू मलखान सिंह के भाई ने बदरी और केदार यात्रा परिवार के साथ की। इस दौरान उन्होंने बेहिचक अपने भाई की कहानी भी बयां की।

By BhanuEdited By: Published: Fri, 26 May 2017 09:53 AM (IST)Updated: Sat, 27 May 2017 05:04 AM (IST)
चंबल के डकैत मलखान सिंह की कहानी, उनके भाई की जुबानी

ऋषिकेश, [हरीश तिवारी]: 80 के दशक में मध्य प्रदेश के भिंड जिले में चंबल के डाकू मलखान सिंह का नाम सुनकर रूप कांप उठती थी, लेकिन 1982 में आत्मसमर्पण के बाद मलखान सिंह अब सामाजिक जीवन जी रहा है। 1976 में भाई प्रभुदयाल की हत्या का बदला लेने के लिए मलखान ने अपने भाई निरंजन सिंह और रामसेवक के साथ मिलकर पांच लोगों की हत्या कर दी थी। इसके बाद मलखान फरार हो गया और निरंजन व रामसेवक को जेल हुई। 

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वर्तमान में पूरा परिवार सामाजिक जीवन बिता रहा है। निरंजन सिंह पत्नी रामकली समेत अन्य कुटुंबीजनों के साथ बीते दिनों चारधाम यात्रा करने आए थे। यात्रा से लौटकर उन्होंने आत्मीय संतोष व्यक्त किया। अब वह रामेश्वरम धाम की यात्रा पर जाएंगे।

मध्य प्रदेश के जिला भिंड के ग्राम बिलाव निवासी 75 वर्षीय निरंजन ङ्क्षसह परिहार पत्नी रामकली व गांव के अन्य रिश्तेदारों के साथ 12 मई को चारधाम यात्रा के लिए यहां आए थे। गांव के 17 लोग इस दल में शामिल हैं। 

ऋषिकेश में बस टर्मिनल कंपाउंड पांडाल के नीचे अपने अन्य साथियों का इंतजार करते मिले निरंजन सिंह ने बताया कि उनकी चारधाम यात्रा बहुत अच्छी रही। हां, केदारनाथ मार्ग पर जरूर थोड़ा अव्यवस्था देखने को मिली। यहां चलने वाले खच्चर यात्रियों से टकराते हैं। ऐसी ही टक्कर से उनकी पत्नी मामूली रूप से चोटिल भी हुई। फिर भी उन्होंने आत्मीय संतोष व्यक्त किया। बताया कि वह तीर्थनगरी से गंगाजल लेकर जा रहे हैं, जिसे रामेश्वरम धाम में चढ़ाया जाएगा। 

मलखान सिंह के बारे में बात करने पर भाई निरंजन सिंह ने खुलकर हर बात कही। बोले, 'मलखान मेरेचाचा के लड़के हैं। हमारा संयुक्त परिवार है। 1976 में गांव में रंजिश के चलते मलखान सिंह के भाई प्रभुदयाल की कुछ लोगों ने हत्या कर दी थी। उसके बाद मलखान सिंह, दूसरे भाई रामसेवक और मैंने पांच लोगों की हत्या कर दी।

मलखान सिंह फरार हो गए और मैं व रामसेवक जेल चले गए। नौ साल की सजा काटी और रिहा हो गए। निरंजन के मुताबिक मलखान सिंह ने गांव के सरपंच को भी गोली मारी थी। मगर, वो मरा नहीं, बल्कि इस गोली से गांव का सुदामा पंडित मर गया। 1982 में मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के आश्वासन पर मलखान ने गिरोह के सदस्यों सहित आत्मसमर्पण कर दिया। वर्तमान में मलखान सिंह सपा की राजनीति में हैं। 

निरंजन सिंह बताते हैं कि उन्होंने 1965 में पुंछ और 1971 में बाड़मेर (राजस्थान) में सेना में रहते हुए पाकिस्तान के खिलाफ जंग भी लड़ी। भाई रामसेवक भी फौज में थे। परिवार के छह लोगों ने फौज में रहकर देश की सेवा की है। 

मलखान सिंह पर 20 हत्याओं का आरोप और ढाई लाख रुपये ईनाम उस वक्त घोषित था। मगर, मलखान ने कभी भी गरीब को नहीं सताया। वक्त और हालात ने मलखान और हमें यह सब करने को मजबूर किया था।

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